अमरावती

बीरवा की महफिल और डफली का थाप में रंगा ढाल महोत्सव

विदर्भ के साढे 5 हजार गांवों में 2 दिन चलेगा लाठी नृत्य व महफिल का दौर

अमरावती/दि.14– विदर्भ के साढे 5 हजार गांवों में रहने वाले गोंडगोवारी समाज द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी दीपावली के पर्व पर ढाल महोत्सव मनाया जा रहा है. जिसमें बीरवा की महफिल और डफली की थाप के चलते पारंपारिक व सांस्कृतिक रंग चढा दिखाई दे रहा है. साथ ही आगामी 2 दिनों तक लाठी नृत्य व महफिल का दौर लगेगा.

बता दें कि, ढाल पूजन उत्सव को आदिवासी गोंड गोवारी समाज की संस्कृति माना जाता है. आद्य धर्मगुरु पाहांदी पारी कुपार लिंगों व माता जंगो रायताड के प्रतिक स्वरुप अपने दिवंगत पूर्वजों के रुप में दोमुखी पुरुष व चारमुखी स्त्री के नाम की ढाल बनाकर लक्ष्मी पूजन वाले दिन पूजा की गई. जिसके अगले दिन पाडवा पर आदिवासी गोंडगोवारी जनजाति के युवकों व बुजुर्गों ने अपने पैरों में घुंगरु बांधकर पारंपारिक व आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया.

इतिहास की परंपरा को संभाल रहा आदिवासी गोंड गोवारी समाज आद्य धर्मगुरु पाहांदी पारी कुपार लिंगों व माता जंगो रायताड ने मिलकर ताडसावरी के वृक्ष के नीचे सगा सामाजिक व्यवस्था निर्माण कर कोया धर्म की स्थापना की तथा माता गली कंकली के बेटों को कोया धर्म की दीक्षा प्रदान की थी. जिसके चलते समाज को एक नई दिशा मिली थी और सगा बिडार (गोंदोला) परिवार में प्रेमभाव व एक-दूसरे की निस्वार्थ सेवा का भाव निर्माण हुआ. गोवारी (कोपाल) जमात भी गोंदोला परिवार का भी एक हिस्सा है. इसी के चलते आदिवासी गोंड गोवारी समाजबंधु काटसावरी के वृक्ष के नीचे ही ढाल पूजन करते है और यह परंपरा 300 वर्ष से भी अधिक समय से चली आ रही है.

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