अमरावती/दि. 3 – डॉ. हेडगेवार अस्पताल-भाराणी क्रिटिकल केयर यूनिट, आयसीयू में किडनी पीड़ित मरीजों पर हिमोडायलेसिस उपचार किया जा रहा है. यह सुविधा आयसीयु में उपलब्ध होने से इसका लाभ अनेक मरीजों ने लिया. डॉ. अरुण हरवाणी, डॉ. गणेश बनसोड, डॉ. श्यामसुंदर गिरी, डॉ. रोहित हातगावकर की टीम द्वारा मरीजों पर उपचार किया जा रहा है.
डॉक्टरों व्दारा किडनी के मरीजों को उनके मूत्रपिंड की कार्यक्षमता कितनी है, यह देखकर ही मरीजों को डायलेसिस की सलाह दी जाती है. 800 रुपए प्रति डायलेसिस के अनुसार माफक दर में यह प्रक्रिया की जाती है. वहीं बेडसाईड डायलेसिस की दर 2000 रुपए है.
लक्षण
– किडनी ग्रस्त मरीजों में कई बार रक्तप्रवाह के बेकार पदार्थों का उचित निचरा नहीं होता, जिससे थकान, एकाग्रता कम होना, भूख न लगना, जी मचलना, उल्टीयां, त्वचा में खुजली, हाथ-पैरों में दर्द, स्नायु दर्द या क्रॅम्प समान लक्षण दिखाई देते हैं. इसे युरेमिया कहा जाता है.
मरीज का डायलिसिस कब करना चाहिए?
मरीज के मूत्रपिंड निकामी होने पर डायलिसिस करना चाहिए. वहीं किडनी खराब होने पर शरीर में आवश्यकता से अधिक द्रव्य पदार्थ जमा होते हैं. जिससे फेफड़ों के कार्य पर असर होता है व मरीज को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है.
एसिड बढ़ना या शरीर में पोटेशियम का प्रमाण बढ़ने से यह तकलीफ होती है. पोटेशियम यह शरीर का एक महत्वपूर्ण इलोक्ट्रोलाइट्स है. जिससे किडनी का कार्य सुचारु रहता है. लेकिन किडनी का कार्य बंद होने पर शरीर में पोटेशियम के रक्त का प्रमाण बढ़ने लगता है. मूत्रपिंड का कार्य व्यवस्थित नहीं होता. डायलिसिस से शरीर के पोटेशियम का प्रमाण पूर्ववत रखने में मदद होती है. डायलिसिस करने के अनेक प्रकार है. लेकिन हिमोडायलिसिस एवं पेरिटोनीएल डायलिसिस यह दो प्रकार सामान्यतः किये जाते हैं. डॉ. हेडगेवार हॉस्पीटल व भाराणी आयसीयु में हिमोडायलिसिस किया जाता है.
इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉक्टर ने कहा कि इस प्रक्रिया के लिए मरीज को अस्पताल में रखना पड़ता है. तज्ञ डॉक्टरों की देखरेख में यह प्रक्रिया की जाती है. इस प्रक्रिया में मरीज के शरीर का खून डायलिसिस मशीन के पंप द्वारा शुद्ध किया जाता है व फिर से मरीज के शरीर में छोड़ा जाता है. इस प्रक्रिया के लिए चार घंटे का समय लगते हैं या सप्ताह में तीन बार करनी पड़ती है.
हिमोडायलिसिस प्रक्रिया में रक्तप्रवाह तेजी से बहाकर ले जाने के लिए मरीज की गर्दन या पैर में नली व कॅथटर बिठाई जाती है. जिसमें इन्फेक्शन का धोखा अधिक रहता है. फिलहाल आधुनिक तकनीकी का उपयोग करते हुए बिठाये जाने वाली एवीग्राफ्ट या एवीफिस्ट्रला के कारण मरीज में इन्फेक्शन का प्रमाण नियंत्रण में आया है. डायलिसिस करने से मरीज को स्वास्थ्य व जीवनदान मिलने में मदद होती है. सहयोगी डॉ. शिल्पा गारोडे व कर्मचारी डॉ. हरवाणी, डॉ. बनसोड, डॉ. गिरी, डॉ. हातगावकर के मार्गदर्शन में मरीजों पर सफल उपचार कर रहे हैं.