अमरावती

20 वर्षों से जंगल नहीं गये, जंगल को ही खेत में लाया!

मेलघाट के आदिवासी किसान पर वृत्तचित्र, तीन एकड़ में 38 प्रकार की सेंद्रीय फसल

परतवाड़ा/दि.23 – निसर्ग की आंखमिचौली के कारण विदर्भ के किसान आत्महत्या कर रहे हैं. मात्र, मेलघाट के आदिवासी कोरकू किसान निसर्ग की शरण में न जाते हुए तीन एकड़ खेत में सालभर में सेंद्रिय पध्दति से करीबन 38 प्रकार की फसलें ले रहे हैं. अभिनेता अमिर खान के पानी फाऊंडेशन व्दारा इसकी दखल लेते हुए किसान पर वृत्त चित्र तैयार किया है.
मौजीलाल भिलावेकर (मान्सुधावडी, तह. धारणी निवासी) यह इस मेहनती किसान का नाम है. उन्होंने वन खेती के मॉडल बनाये हैं. मौजीलाल भिलावेकर ने बताया कि वे गत 15-20 वर्षों से जंगल में नहीं गये, बल्कि जंगल ही खेत में लाया है. खेती की जमीन पर उन्होंने 200 से अधिक विविध प्रकार की आय देने वाले पेड़ लगाये हैं. आम, फणस, बांस आदि विविध प्रजाति के पेड़ों से प्रति वर्ष उन्हें 60 से 70 हजार रुपए मिलते हैं.
खेत में विविध प्रकार की साग सब्जी, सोयाबीन, दो प्रकार के गेहूं, कपास इन फिसलों सहित विविध 38 प्रकार का उत्पादन मौजीलाल भिलावेकर ले रहे हैं फिर भी वे बीजों को स्वयं उत्पादित किये गये फसलों से ही तैयार करते हैं. गेंडूर खाद व गोबर खाद का इस्तेमाल करते हैं. फसलों पर की जाने वाली फवारणी का द्रव्य रासायनिक नहीं होता बल्कि घर में ही तैयार किया जाता है. इसलिए निरोगी खेती में अधिकाधिक उत्पादन होने की जानकारी उन्होंने दी.

पगार देणार शेत का चित्रीकरण

पानी फाऊंडेशन की टीम ने दो वर्षों से अथक परिश्रम लेते हुए मौजीलाल भिलावेकर की खेती करने का तरीका सहित मासिक आय पर चित्रीकरण किया. अन्य किसानों के लिये प्रेरणादायी साबित हो, इस उद्देश्य से इस वृत्तचित्र की निर्मिति की गई. पगार देणार शेत यह नाम रखकर रविवार को वह ऑनलाइन प्रदर्शित किया गया. इस वृत्तचित्र को आमिर खान, पानी फाऊंडेशन के सीईओ सत्यजित भटकल, दिग्रस के डॉ. मिलिंद देशमुख, वाशिम के जिला कृषि अधिकारी शंकर तोटावार, राहुरी के मृदा शास्त्रज्ञ अनिल दुरगुडे, कीटकशास्त्रज्ञ राजेन्द्र जाधव ने देखा. इस वृत्तचित्र के लिए सहायक दिग्दर्शक तथा अभ्यासक के रुप में पूर्व जिला समन्वयक धनंजय सायरे थे. इसके लिये गीता बेलपत्रे, सुरेश सावलकर ने विशेष सहकार्य किया.

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