चुनाव लडने के इच्छुक उम्मीदवारों में फिर निराशा
स्थानीय स्वराज्य हेतु विविध पर्व-उपक्रम निमित्त की गई तैयारी हुई बुकार

अमरावती /दि.29– स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण से संबंधित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा आगामी 25 फरवरी को सुनवाई होने वाली है. जिसके चलते विगत 3 वर्षों से स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव को लेकर रहने वाली अनिश्चितता नये साल में दूर हो जाएगी, ऐसी उम्मीद लेकर चल रहे चुनाव लडने के इच्छुकों को एक बार फिर निराशा हुई है.
उल्लेखनीय है कि, महानगरपालिका व अन्य स्थानीय स्वायत्त निकायों का चुनाव लडने के इच्छुकों ने करीब साढे तीन, चार वर्ष पहले से तैयारी करनी शुरु कर दी है. महाविकास आघाडी के कार्यकाल दौरान नये सिरे से प्रभाग रचना घोषित की गई थी और 4 की बजाय 3 सदस्यीय प्रभाग रचना की घोषणा हुई थी. उसी दौरान ओबीसी संवर्ग हेतु आरक्षित सीटों का मुद्दा अदालत में चला गया. उस वक्त शुरुआती दौर में कांग्रेस व भाजपा सहित प्रमुख राजनीतिक दलों ने ओबीसी हेतु आरक्षित सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार ही देने की तैयारी दर्शायी थी. परंतु चुनाव ही नहीं हुए. जिसके बाद हर 6 माह में चुनाव की चर्चा होने लगी और फिर महायुति की सत्ता आने पर एक बार फिर वर्ष 2017 की प्रभाग रचना अनुसार 4 सदस्यीय प्रभाग पद्धति से चुनाव होने की संभावना बलवती हुई. जिसके चलते प्रशासन द्वारा महाविकास आघाडी के कार्यकाल दौरान की गई तमाम तैयारियां व्यर्थ चली गई.
इसी बीच राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद महानगरपालिका चुनाव को लेकर उत्सुकता का दौर तेज हुआ तथा नई सरकार सहित विरोधी दलों के नेताओं ने भी जल्द ही स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव जल्द होने की संभावना जतानी शुरु की. यद्यपि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले ने स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव को लेकर नये सरकार के स्थापना से ही संदेह जताया था. लेकिन इसके बावजूद चुनाव के लिए उत्साही वातावरण बनना शुरु हो गया था और 3-4 माह में यानि अप्रैल तक चुनाव होने का अनुमान जताया जाने लगा. परंतु जनवरी माह के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने दो बार तारीखों को आगे बढा दिया. जिसके चलते अब चुनाव कब व कैसे होंगे. इसे लेकर चर्चा शुरु हो गई है.
चुनाव की संभावना व प्रभाग रचना का अनुमान लगाते हुए चुनाव लडने के इच्छुकों ने अब तक 4 से 5 बार अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में मोर्चाबंदी करनी शुरु की तथा अपने कार्यकर्ताओं के जरिए विविध उपक्रम, कार्यक्रम व अभियान चलाकर जनता तक पहुंचने का प्रयास किया. साथ ही पर्व एवं त्यौहारों वाले दिनों में खुले हाथ से आर्थिक सहायता के चलते दान पावतियां भी दी. लेकिन हर बार इच्छुकों की आशाओं पर पानी फिर गया. दो दिन पूर्व भी गणतंत्र दिन के निमित्त कई नेता व चुनाव लडने के इच्छुक काफी सक्रिय दिखाई दिये. चूंकि इन दिनों स्थानीय स्वायत्त निकायों में स्थानीय जनप्रतिनिधि नहीं है. जिसके चलते विधायकों सहित नेता का रुकबा रखने वाले पूर्व पार्षदों पर काम का बोझ काफी अधिक बढ गया है. क्योंकि कही पर भी कोई भी समस्या पैदा होने पर लोगों की भीड ऐसे नेताओं के यहां ही होने लगती है और ऐसे नेताओं को ही सर्वसामान्यों के रोष का सामना करना पडता है. जिसके चलते अब यह अपेक्षा व्यक्त की जा रही है कि, स्थानीय स्वायत्त निकायों में प्रशासक राज जल्द से जल्द खत्म हो तथा स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव भी जल्द कराये जाये.