अमरावतीलेख

अनुशासन प्रिय स्मृतिशेष श्यामसुंदरजी टावरी

श्री. श्यामसुंदर टावरी का जन्म नवंबर 1943 को सिवनी में नानाजी के यहां हुआ. उन्होंने नाम रखा श्यामसुंदर. उमरी ग्राम जहां खेती-बाडी, बगीचे थे वहां उनका बचपन बीता. शिक्षा के लिए वे सावनेर रहने आ गए. 7 वर्ष की उम्र में नगर परिषद शाला मेें दाखिला लिया. 11वीं मैट्रिक की शिक्षा भालेराव हाईस्कूल, सावनेर से 1961 में द्बितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की. 10 वर्ष की उम्र से ही घर को संभाल लिया. किराणा-अनाज, सब्जी खरीदना, गाय का कोठा साफ करना, दूध निकालना आदि सभी कार्य किए. सबकुछ शून्य होने के बाद महाविद्यालयीन पढाई के लिए अमरावती रहने आ गए. यहां पढाई के साथ बहीखाते लिखना, माताजी की गंभीर बीमारी में दवाखाने में भरती कर सेवा करना, दवा, टीफीन लाना ले जाना करने से पढाई छोडनी पडी. विदर्भ के सुप्रसिद्ध बर्तन कारखाने में उन्हें नौकरी मिल गई थी. एक वर्ष में ही काटा करने वाले से मैनेजर पद मिल गया. मानो जिवन का अनुभव प्राप्त करने की शाला में प्रवेश मिला हो. अकस्मात कारखाना बंद होने के बाद उसी कंपनी के काम से डेढ वर्ष मुंबई रहे. फिर वहां के वातावरण से तालमेल नहीं बैठने से अमरावती आ गए. श्यामसुंदरजी का विवाह सौ. शांतादेवी के साथ पिपाड (राजस्थान) निवासी श्रीनिवासजी राठी एवं माताजी रंभादेवी की पुत्री के साथ 2 दिसंबर 1965 को अमरावती में संपन्न हुआ. उन्हें राजस्थान से यहां आने पर एक नया वातावरण मिला. जिससे सौ. शांतादेवी को यहां पर समरस होने पर समय लगा.
बडी नौकरी छोडकर अनुभव, अर्हता, शिक्षा नहीं होने से उन्हें छोटी नौकरी करनी पडी. वहां पत्र-व्यवहार, हिसाब-किताब रखना इत्यादी का बढिया प्रशिक्षण मिला. उसी को बदौलत 1972 में ब्रजलाल बियाणी विज्ञान महाविद्यालय में बुलाकर क्लर्क की नौकरी दी गई. वहां पर महाविद्यालय अधिक्षक के पद तक पहुंचे. 2001 में सेवा से निवृत्त होने पर उनकी पुनश्च नियुक्ति की गई. यह दायित्व सन 2007 तक मानद कार्यकर्ता के रुप में संभालते रहे. महाविद्यालय में उत्कृष्ट कार्य के लिए विश्वविद्यालय की ओर से समारोह में 50 ग्राम का चांदी के मेडल प्रदान कर सम्मानित किया गया. महाविद्यालयों को अरबों रुपए मूल्य की जगह केवल ढाई लाख में मिलवाकर देने में टावरीजी का बडा योगदान रहा. उसी प्रकार संस्था को अल्पसंख्यांक का दर्जा दिलवाने में महत प्रयास किए. महाविद्यालय की नौकरी के साथ सामाजिक कार्य की भी शुरुआत हो गई थी. 1974 से सामूहिक विवाह की श्रृंखला 21 वर्ष तक शुरु रखने में तथा 1988 से विवाह योग्य युवक-युवतियों का परिचय सम्मेलन आयोजन में विशेष योगदान रहा. 1987 से श्रृंखलाबद्ध सामाजिक संगठन में नींव की पत्थर बने और धीरे-धीरे महासभा संगठन की राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे. इस अवधि में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए उन्हें 6-7 बार सम्मानित किया गया. स्थानीय श्री महेश सेवा समिति ने भी दखल लेकर उन्हें जीवन गौरव पुरस्कार से अखिल भारतीय माहेश्वरी महासभा के अध्यक्ष बंसीलालजी राठी गौरवपत्र दिया तथा आचार्य किशोर व्यास ने शाल श्रीफल देकर आशीर्वाद प्रदान किया. 1990 में वे स्थानीय तखतमल श्रीवल्लभ होमियोपैथी महाविद्यालय के मानद सचिव निर्वाचित हुए. लगातार 21 वर्षों तक इसी पद पर रहने के बाद इस्तीफा दे दिया. इस अवधि में संस्था को नई दिशा और विकास की गति मिली. अस्पताल के लिए तीन मंजिल इमारत का निर्माण, छात्रावास के लिए स्वतंत्र भवन निर्माण हुआ. महाविद्यालय की गणना देश के 10 होमिओपैथी महाविद्यालय में होने लगी. मैैं, तखतमल श्रीवल्लभ महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर था. सचिव होने के नाते मेरा प्रतिदिन उनसे निकट संबंध का संपर्क बना. टावरीजी अत्यंत अनुशासनप्रिय, कानून से काम करने में निष्णात थे. सेवानिवृत्त होने पर अनेक प्रस्ताव मिले पर किसी और जरुरतमंद को इसका लाभ हो, अत: सुझाव स्वीकार नहीं किए. उन्हें लिखने का शौक 1978 से लगा. उनके जीवनकाल में 7 किताबें, 750 से अधिक लेख प्रकाशित हुए. आखिर 24 जनवरी 2022 को 78 वर्ष की आयु में काल के आगोश में उनका जीवन समा गया और पीछे रह गई उनकी स्मृतिशेष.
– प्राचार्य डॉ. रामगोपाल तापडिया,
एमडी (होमियो.)
9422159636

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