भाजपा की अंतर्गत कलह ले डूबी
पार्टी सहित मित्र दलों पर चिंतन करने की नौबत
* कांग्रेस और उनके घटक दलोें के अच्छे दिन
अमरावती/ दि. 5- लोकसभा चुनाव में अमरावती संसदीय क्षेत्र से भाजपा ्रप्रत्याशी को कांटे के मुकाबले में 19731 वोट से पराजित होना पडा. महाविकास आघाडी के कांग्रेस प्रत्याशी बलवंत वानखडे की जीत के बाद अब कांग्रेस सहित सहयोगी दलों के अच्छे दिन आ गये है. वहीं अब अमरावती सहित विदर्भ की सात सीटों पर मिली हार के बाद भाजपा की अंतर्गत कलह को सुलझाने के लिए भाजपा सहित मित्र दलों को चिंतन करने की नौबत आन पडी है.
अमरावती संसदीय क्षेत्र के चुनाव नतीजे में मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित हुए है. बलवंत वानखडे को सर्वाधिक अमरावती विधानसभा क्षेत्र से ही वोट मिले है. शहर के मुस्लिम बहुल इलाके में बलवंत वानखडे को भारी मतदान हुआ. इस कारण उन्हें अमरावती से 41 हजार से अधिक वोटो की बढत मिली. मुस्लिम मतदाताआेंं का भाजपा उम्मीदवार के प्रति रोष और कांग्रेस उम्मीदवार के प्रति सहानुभूति दिखाई दी. वहीं शहर के भाजपा पदाधिकारी और विधायक रवि राणा के बीच रही राजनीतिक द्बेष भावना और अनेक बार घटी विविध घटनाओं के साथ होते रहे आरोप- प्रत्यारोप और अचानक भाजपा से बडी निकटता के बाद नवनीत राणा को भाजपा की उम्मीदवारी मिलने पर स्थानीय भाजपा पदाधिकारी और कार्यकर्ता दातों तले उंगलियां दबाकर बैठ गये. पार्टी के निर्णय के सामने उनकी कुछ नहीं चली. फिर भी अंतर्गत कलश शुरू हुई थी. इस चुनाव में यह चित्र दिखाई दिया. स्थानीय कार्यकर्ताओं के प्रति राणा समर्थको द्बारा दिखाए गये अविश्वास के कारण भी अनेक भाजपा पदाधिकारी व कार्यकर्ता व्यथित थे. लेकिन यह भी सोचा जाना जरूरी था कि भाजपा ने पहली बार अमरावती लोकसभा में उम्मीदवार दिया है और फिर भी इस चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पडा. अमरावती से ही राणा को सबसे कम वोट मिले. इस हार का कारण स्थानीय भाजपा सहित मित्र दलों को देखकर उस पर चिंतन करने की नौबत आ गई है. आगामी विधानसभा और पश्चात मनपा के चुनाव को देखते हुए रणनीति तैयार करना जरूरी है.
दूसरी तरफ बलवंत वानखडे की जीत ने कांग्रेस सहित महाविकास आघाडी के घटक दलों ने एकजुटता रही. इस कारण उनके अच्छे दिन आ गये है. अमरावती जिले में कांग्रेस के तीन विधायक है. अब सांसद भी कांग्रेस का रहने से जिले में कांग्रेस और मजबूत होनेवाली है. कांग्रेस के साथ आघाडी के सहयोगी दलों की राजनीतिक ताकत भी निश्चित रूप से बढेगी. शिवसेना उबाठा और एनसीपी (शरद पवार गुट) को इसका विधानसभा और मनपा चुनाव में फायदा हो सकता है. वहीं महागठबंधन के सामने महाविकास आघाडी की कडी चुनौती रहनेवाली है.