विधानसभा चुनाव में काम नहीं करेगा ‘डीएमके’ फैक्टर
लोकसभा में जमकर दिखाई दिया था असर
* 6 माह में ही बदल गये राजनीति के जातिगत समीकरण
अमरावती/दि.24- विगत लोकसभा चुनाव के समय अमरावती जिले में ‘डीएमके’ यानि दलित, मुस्लिम, कुणबी-(मराठा) का जाति समीकरण काफी असरकारक साबित हुआ था. जो महाविकास आघाडी के लिए फायदेमंद रहा. जिसके चलते मविआ प्रत्याशी बलवंत वानखडे की चुनाव में जीत हुई. ऐसे में इसी ‘डीएमके’ फैक्टर को विधानसभा चुनाव में भी भुनाने की महाविकास आघाडी द्वारा पूरी तैयारी करनी शुरु की गई थी. परंतु विगत 6 माह के दौरान जिले में कुछ ऐसी राजनीतिक उथल पुथल हुई है और इस समय विधानसभा चुनाव हेतु मविआ सीटों के बंटवारे व उम्मीदवारों की घोषणा को लेकर जिस तरह की नीति अपनाई जा रही है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि, विधानसभा चुनाव में ‘डीएमके’ फैक्टर इतना अधिक प्रभावी नहीं होगा, जितना यह समीकरण लोकसभा चुनाव के समय असरकारक था.
बता दें कि, शहरी क्षेत्र रहने वाले अमरावती में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी हद तक निर्णायक स्थिति मेें है. वहीं बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में दलित वोटों की संख्या अच्छी खासी है. जबकि अमरावती में दलित एवं बडनेरा में मुस्लिम वोट उतने अधिक निर्णायक नहीं है. जिसके चलते इन दोनों समुदायों के गठ्ठा वोट लोकसभा चुनाव की तरह एकसाथ मिलकर वैसा असर पैदा नहीं कर सकेंगे. इसके अलावा महाविकास आघाडी द्वारा प्रत्याशियों के तौर पर जिन संभावित नामों को आगे किया जा रहा है, उसमें भी जातिय संतुलन का कोई विशेष ध्यान रखा हुआ दिखाई नहीं दे रहा. ऐसे में पिछली बार एकमुश्त गठ्ठा वोट बैंक रहने वाले मतदाताओं के इस बार तितर-बितर हो जाने की पूरी उम्मीद है. जिसकी शुरुआत अमरावती में हो भी चुकी है. बता दें कि, विगत लोकसभा चुनाव में अमरावती के मुस्लिम मतदाताओं ने महाविकास आघाडी के पक्ष में एकतरफा मतदान किया था. जबकि विधानसभा चुनाव के समय महाविकास आघाडी द्वारा मुस्लिम समुदाय की अनदेखी किये जाने के चलते समुदाय के नेताओं ने मविआ को लेकर अच्छी खासी नाराजगी देखी जा रही है और गत रोज ही शहर के दो बडे मुस्लिम नेताओं ने महायुति में शामिल रहने वाली अजीत पवार गुट वाली राकांपा में प्रवेश कर लिया. साथ ही अब अन्य कुछ मुस्लिम नेता भी अपनी अनदेखी से आहत होकर महाविकास आघाडी से बाहर निकलने की सोच रहे है. जिसके चलते अमरावती निर्वाचन क्षेत्र में महाविकास आघाडी के वोट बैंक में एक तरह से सेंध लग गई है. साथ ही अमरावती निर्वाचन क्षेत्र महायुति व महाविकास आघाडी के प्रत्याशी कुणबी-मराठा (पाटिल-देशमुख) समाज से ही रहेंगे. जिसके चलते इस समाज के वोट भी दो हिस्सों में बंटना तय है. जबकि लोकसभा चुनाव में मविआ की ओर से दलित प्रत्याशी रहने के चलते दलीत समूदाय भी पूरी तरह से एकजूट था. परंतु विधानसभा चुनाव में अब दलित समूदाय के सामने ऐसी कोई स्थिति नहीं है. जिसके चलते दलित समूदाय के वोट भी अब एकमुश्त पडना मुश्किल है. यह स्थिति जिले के लगभग आठों निर्वाचन क्षेत्रों में एकसमान रहेगी. जिसके चलते कहा जा सकता है कि, लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में ‘डीएमके’ फैक्टर का उतना अधिक असर नहीं रहेगा.