केवल गणेश विसर्जन से ही प्रदूषण होता है क्या?
हिंदू जनजागृति समिती ने जिलाधीश से पूछा सवाल
अमरावती/दि.29- आज ग्लोबल वॉर्मिंग जैसे संकट का पूरी दुनिया सामना कर रही है और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कर्तव्यों को पूरा करना बेहद आवश्यक है. लेकिन कई मामलों में सरकार व प्रशासन द्वारा अपेक्षित कदम नहीं उठाये जाते. जिससे पर्यावरण के साथ ही सामाजिक व सार्वजनिक स्वास्थ्य भी खतरे में आ गया है. परंतु इसे लेकर सर्वांगीण व वास्तविक उपाय करने की बजाय पूरे सालभर में केवल एक बार आनेवाले गणेशोत्सव के पर्व पर ‘मूर्तिदान’ व ‘कृत्रिम हौद’ जैसे अभियान चलाये जाते है. जिसके जरिये गणेश मूर्ती की अवमानना की जाती है. ऐसे में प्रशासन ने इस बात का जवाब देना चाहिए कि, क्या केवल साल में एक बार किये जानेवाले गणेश विसर्जन से ही फैलता है, इस आशय का सवाल हिंदू जनजागृति समिती द्वारा जिलाधीश को सौंपे गये ज्ञापन में पूछा गया है.
हिंदू जनजागृति समिती द्वारा जिलाधीश को सौंपे गये ज्ञापन में विभिन्न सरकारी आदेशों व दिशानिर्देशों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि, इतने सारे आदेश व दिशानिर्देश रहने के बावजूद स्थानीय प्रशासन द्वारा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कामों की अनदेखी की जाती है, तब प्रशासन को बढते प्रदूषण की याद नहीं आती. लेकिन गणेशोत्सव का पर्व आते ही प्रशासन का पर्यावरण प्रेम अचानक ही जाग जाता है और अपने आराध्य का दस दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ पूजन करनेवाले श्रध्दालुओं को गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम तालाबों में करने हेतु कहा जाता है. साथ ही इन दिनों मूर्तिदान की भी एक नई कल्पना सामने लायी गई है. जिसका कोई औचित्य नहीं है. क्योंकि कृत्रिम तालाब में विसर्जित की गई गणेश मूर्तियों को खुद प्रशासन द्वारा नदी, तालाब व समुद्र में ले जाकर विसर्जित किया जाता है. इससे तो बेहतर है कि, खुद श्रध्दालु ही अपने हाथों से गणेश प्रतिमा का विसर्जन बहते पानी में करे, ताकि कृत्रिम तालाब बनाने में होनेवाला खर्च बच सके. इसके अलावा कई स्थानों पर दान की गई मूर्तियों को दोबारा बाजार में लाकर बेचा जाता है. साथ ही कुछ स्थानों पर प्रशासन द्वारा मूर्तियोें को इकठ्ठा करने के बाद उन पर बुलडोजर चलाया जाता है. यह सीधे-सीधे भाविक श्रध्दालुओं की आस्थाओं के साथ खिलवाड है. जिसे रोका जाना चाहिए.
ज्ञापन सौंपते समय हिंदु जनजागृति समिती के निलेश टवलारे, प्रदीप गर्गे, गिरीश जामोदे व शंतनु अंबुलकर आदि उपस्थित थे.