माय हेजे, आबा हेजे, बोको हेजे, सबकू हेजे, डोलार सिरिंजबा हेजे, सबकू हेजे…
पोले की कर पर विसर्जित हुआ मेलघाट के आदिवासियों का डोलार उत्सव
चिखलदरा/दि.5– माय हेजे, आबा हेजे, बोको हेजे, सबकू हेजे, डोलार सिरिंजबा हेजे, सबकू हेजे, यानि मां, पिताजी, चाचा, दीदी सभी लोग आओ झूले पर बैठेंगे झूला झूलेंगे और गीत गायेंगे. इस तरह से घर के सदस्यों सहित अपने पूर्वजों का आवाहन करते हुए मेलघाट के आदिवासी गांवों में विगत 15 दिनों से डोलार उत्सव चल रहा था. जिसका कल पोले की कर पर समापन हुआ. पोले की कर वाले दिन गांव के पास स्थित नदियों में डोलार को विसर्जित करते हुए विविध आदिवासी बस्तियों में इस उत्सव की समाप्ति की गई.
बता दें कि, कोरकू भाषा मेें झूले को डोलार कहा जाता है. जंगल से ठूनी यानि लकडी के खंबे व बांस लाकर उसके चरपटे से घर के सामने झूला तैयार किया जाता है. जिसमें बैठकर महिलाएं व युवतियां गाणे गाती है. लगातार 15 दिन तक पूजा पाठ करते हुए और पूर्वजों को बुलाते हुए यह उत्सव मनाने की परंपरा आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में आज भी कायम है. उल्लेखनीय है कि, मेलघाट के आदिवासियों की अपनी अलग संस्कृति है. जिरोती यानि आखाडी से शुरु होकर अगले 15 दिन तक चलने वाला यह उत्सव पोले की कर वाले दिन तक चलता है और पोले की कर वाले दिन नदी किनारे पूजा अर्चना करते हुए डोलार को विसर्जित किया जाता है. इस डोलार नृत्य व गीतों में आदिवासियों की पारंपारिक श्रद्धा दिखाई देती है और आदिवासी गांवों में पूर्वजों का आवाहन करते हुए यह उत्सव मनाने की परंपरा आज भी कायम है.
* स्वास्थ्य, सुख व समृद्धि की प्रार्थना
आदिवासी संस्कृति में गीत गाकर पूर्वजों को बुलाया जाता है. यह एक तरह से घर के सभी सदस्यों सहित पालतू मवेशियों व अपने गांव की सुख समृद्धि व बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करने की तरह है.