अमरावती

गधों को भी नहीं मिल रहा काम

यांत्रिकीकरण से घटी संख्या

  • ईटभट्टों व रेतीघाटों पर होने लगा वाहनों का प्रयोग

अमरावती/दि.4 – इससे पहले ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में ईटभट्टों एवं रेती घाटों पर ईटों व रेेती की ढुलाई के लिए बडे पैमाने पर गधों का प्रयोग किया जाता था, लेकिन इन दिनों इस काम हेतु वाहनों का प्रयोग किया जाने लगा है. वहीं रेती उत्खनन के लिए जेसीबी सहित आधुनिक मशीनों का प्रयोग होने लगा है. ऐसे में अब गधों को काम मिलना मुश्किल हो गया है. उल्लेखनीय है कि, किसी समय भारी-भरकम साजो-सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए गधों का प्रयोेग किया जाता था और सन 1970 व 1980 के दशक तक बडे पैमाने पर गधों का प्रयोग होता था. विशेष तौर पर पहले जिन स्थानों पर बैलगाडी के जरिये खेतों में खाद पहुंचाना संभव नहीं होता था, वहां इस काम के लिए गधों का प्रयोग किया जाता था. साथ ही विशेष तौर पर कुम्हारों द्वारा अपने बनाये मटके व सुरही को बेचने हेतु बाजार ले जाने के लिए भी गधों का पालन किया जाता था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे यांत्रिकीकरण का दौर बढता चला गया और अब किसी भी साजो-सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाने-ले जानेवाले हेतु विभिन्न तरह के हलके व भारी वाहनों का प्रयोग किया जाने लगा है. ऐसे में अब गधों के लिए कोई काम नहीं है और कुम्हार समाज ने भी गधों का पालन करना बंद कर दिया है.

पांच वर्ष पहले हुई थी पशुगणना

वर्ष 2017 में हुई पशुगणना के अनुसार जिले में 1,591 गधे रहने की जानकारी जिला पशु संवर्धन विभाग द्वारा दर्ज की गई थी. किंतु इसके बाद अब तक पशुगणना नहीं हुई है. ऐसे में इस समय जिले में गधों की निश्चित संख्या कितनी है, यह पता नहीं चल पाया है.

ग्रामीण क्षेत्रों में गधों की संख्या सर्वाधिक

जिलेे के ग्रामीण इलाकों में आज भी मालढुलाई के कामों सहित खेती-किसानी से संबंधित कुछ कामों हेतु गधों का प्रयोग किया जाता है. जिसके चलते दर्यापुर व अचलपुर क्षेत्र सहित परिसर के कई गांवों में आज भी गधों का पालन बडी संख्या में किया जाता है.

वाहनों के प्रयोग से गधों को काम नहीं

इन दिनों मालढुलाई जैसे कामों के लिए विभिन्न आकार-प्रकारवाले हलके व भारी वाहनों का प्रयोग किया जाता है. जिनके जरिये किसी भी सामान को बेहद कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जा सकता है. हालांकि इसमें पेट्रोल व डीजल पर कुछ अधिक खर्च करना पडता है. वहीं गधों पर की जानेवाली मालढुलाई अपेक्षाकृत तौर पर कुछ सस्ती पडा करती थी. लेकिन गधों पर की जानेवाली मालढुलाई में समय काफी अधिक लगा करता था और गधों के जरिये नजदिक पासवाली दूरी तक ही मालढुलाई की जा सकती थी. ऐसे में लंबी दूरी तय करने के लिए भी गधों के अलावा अन्य पर्यायों पर विचार किया गया.

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