इर्विन चौक में 50 वर्ष से प्रेरणास्थान बना हुआ है डॉ. आंबेडकर का पुतला
इसी स्थान पर सन 1936 में बाबासाहब ने किया था जनसभा को संबोधित
अमरावती/दि.14– भारतीय संविधान के शिल्पकार तथा भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का स्थानीय इर्विन चौराहे पर स्थित पुतला विगत 50 वर्षों से संपूर्ण जिलावासियों के लिए प्रेरणा स्थान बना हुआ है. वर्ष 1972 में रिपाइं नेता दादासाहब गवई की संकल्पना से इर्विन चौराहे पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पुर्णाकृति पुतला स्थापित किया गया था, जो अब भीम अनुयायियों के लिए एक तीर्थस्थल का महत्व रखता है. साथ ही यहां पर प्रतिवर्ष 14 अप्रैल को बडी धूमधाम के साथ डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की जयंती मनायी जाती है. साथ ही 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस के उपलक्ष्य में हजारों भीम अनुयायियों द्वारा यहां पहुंचकर भीम स्मृतियों का अभिवादन किया जाता है. यहीं वजह है कि, किसी समय इर्विन चौक के रूप में पहचाने जाते इस चौराहे को अब डॉ. बाबासाहब आंबेडकर चौक का नाम दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि, सामाजिक क्रांति के प्रणेता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर अपने जीवनकाल के दौरान दो बार अमरावती आये थे. जिसके तहत 11 नवंबर 1927 तथा 4 मई 1936 को उनका अमरावती आगमन हुआ था और वर्ष 1936 में उन्होंने इर्विन चौराहे के पास ही एक जनसभा को संबोधित करते हुए स्वतंत्र मजदूर पार्टी के गठन की घोषणा की थी. आज उसी स्थान पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पुतला व स्मारक स्थित है. इर्विन चौराहे के निकट भारतरत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पुतला स्थापित करने हेतु पूर्व राज्यपाल स्व. दादासाहब गवई का योगदान व भूमिका सबसे उल्लेखनीय रहे. दादासाहब द्वारा की गई पहल के चलते ही वर्ष 1971 के दौरान डॉ. आंबेडकर का पुतला स्थापित करने हेतु चबूतरे का निर्माण किया गया तथा तत्कालीन जिप अध्यक्ष रावसाहब इंगोले व जिप उपाध्यक्ष गुणवंत तायडे सहित तत्कालीन समाजकल्याण मंत्री व पूर्व महामहिम श्रीमती प्रतिभाताई पाटील एवं रिपाइं के तत्कालीन जिप सदस्य डी. जी. ननवरे व पंजाबराव दंदे ने भी भरपूर सहयोग दिया. वर्ष 1971 में रिपाइं व कांग्रेस की युती रहने के चलते जिला परिषद में रिपाइं-कांग्रेस युती का वर्चस्व था. उस समय कांग्रेस नेता यशवंतराव चव्हाण व रिपाइं नेता दादासाहब गायकवाड की पहल से दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ था. ऐसे में पुतले की निर्मिती व स्थापना के लिए किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आयी. पश्चात मुंबई (तब की बंबई) में रहनेवाले सुप्रसिध्द मूर्तिकार वाघ ने इर्विन चौक में स्थापित करने हेतु भारतरत्न डॉ. आंबेडकर का पुतला मुंबई में ही तैयार किया. 6 फुट उंचे पुतले को तैयार करने हेतु 5 महिने 29 दिन का समय लगा. जिसके लिए जिला परिषद की शेष निधी से 51 हजार रूपये की रकम उपलब्ध करायी गई. वहीं पुतला परिसर के सौंदर्यीकरण हेतु आंबेडकरी समाज से निधी संकलित की गई और आंबेडकरी समाज सहित अन्य समाजों ने भी इर्विन चौराहे पर डॉ. आंबेडकर का पुतला व स्मारक स्थापित करने हेतु बढ-चढकर अपना आर्थिक योगदान दिया. उक्ताशय की जानकारी देते हुए वरिष्ठ आंबेडकरी विचारक मधुकर अभ्यंकर ने कहा कि, उस समय पर्व एवं त्यौहारों के लिए सभी समाजबंधू एकजूट हुआ करते थे. किंतु अब समाज में एक तरह का बिखराव आ गया है. हालांकि इसके बावजूद भी विगत 50 वर्षों से इर्विन चौक पर स्थित महामानव डॉ. आंबेडकर का पुतला सभी समाजबंधूओं को एकजूटता का संदेश व प्रेरणा दे रहा है.
* पूर्व महामहिम प्रतिभाताई पाटील के हाथों हुआ था उद्घाटन
आंबेडकर जयंती का औचित्य साधते हुए 14 अप्रैल 1972 को अमरावती जिला परिषद द्वारा इर्विन चौराहे पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के पुर्णाकृति पुतले का अनावरण व लोकार्पण किया गया था. इस समय जिला परिषद अध्यक्ष रावसाहब इंगोले की अध्यक्षता में आयोजीत कार्यक्रम में तत्कालीन समाजकल्याण मंत्री व कालांतर में देश की राष्ट्रपती बननेवाली श्रीमती प्रतिभाताई पाटील के हाथों पुतले एवं स्मारक का उद्घाटन किया गया था. इस समय रिपाइं के वरिष्ठ नेता व पूर्व महामहिम स्व. रा. सू. उर्फ दादासाहब गवई बतौर प्रमुख अतिथि के तौर पर उपस्थित थे. साथ ही 50 वर्ष पूर्व हुए इस आयोजन के लिए उपस्थित रहनेवाले भीम अनुयायियों की संख्या भी लाखों में थी.
* इंद्रभुवन थिएटर में हुई थी अस्पृश्य परिषद
आजादी पूर्व काल के दौरान अपने विचारोें के जरिये जातीगत भेदभाव व छुआछूत को नष्ट करने के लिए अपनी तरह की अनूठी सामाजिक क्रांति का सूत्रपात करनेवाले महामानव डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का पहली बार 11 नवंबर 1927 को अमरावती में आगमन हुआ था और उन्होंने स्थानीय साबनपुरा परिसर स्थित इंद्रभुवन थिएटर में आयोजीत वर्हाड अस्पृश्य परिषद में हिस्सा लेते हुए दलितों, वंचितों व शोषितों को अपने अधिकारों के लिए लडने व संघर्ष करने हेतु प्रेरित किया था. इस परिषद में लगातार दो दिनों तक मार्गदर्शन करने के साथ ही डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने स्थानीय अंबादेवी मंदिर में अछूत कहे जाते समाजबंधुओं को प्रवेश देने हेतु आंदोलन भी किया था. इस हेतु आयोजीत अंबादेवी मंदिर सत्याग्रह परिषद का आयोजन डॉ. पंजाबराव देशमुख व सरदेवराव नाईक द्वारा किया गया था. उस समय दादासाहब खापर्डे ने सत्याग्रह शुरू होने से पहले ही तीन माह की अवधि मांगते हुए अंबादेवी व एकवीरा देवी मंदिर को अस्पृश्यों के लिए हमेशा के लिए खुलवाया था.
* इंद्रभुवन थिएटर में विचारपीठ स्थापित करने की उठ रही मांग
बता दें कि, साबनपुरा परिसर में वर्ष 1890 के दौरान इंद्रभुवन थिएटर की स्थापना हुई थी. जहां पर कई राजनीतिक विचार सम्मेलन आयोजीत होने के साथ ही कई ऐतिहासिक नाटकों का मंचन भी हुआ करता था. इसी थिएटर में पृथ्वीराज कपूर व मास्टर दिनानाथ मंगेशकर जैसे दिग्गज कलाकारों द्वारा अपनी कला प्रस्तुति दी गई. साथ ही किसी समय राजकपूर, मोहम्मद रफी व मुकेश जैसे कलाकारों ने भी यहां उपस्थिति दर्ज करायी. इसके अलावा भारतरत्न गानकोकिला लता मंगेशकर का भी अपनी बाल्यावस्था के दौरान यहां कुछ समय के लिए निवास रहा. इसी इंद्रभुवन थिएटर में वर्ष 1927 में डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने लगातार दो दिनों तक अस्पृश्य परिषद में मार्गदर्शन किया था. ऐसे में अब आंबेडकरी समाज द्वारा इसकी स्मृतियों को ताजा रखने हेतु इंद्रभुवन में विचारपीठ स्थापित किये जाने की मांग उठाई जा रही है. हालांकि किसी समय थिएटर रहनेवाले इंद्रभुवन परिसर में अब एक शाला का संचालन होता है. जहां पर सैंकडों बच्चे शालेय छात्र-छात्राओं के रूप में अपनी पढाई-लिखाई करते है. उल्लेखनीय है कि, महामानव डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने भी समाज की प्रगति के लिए शिक्षा के महत्व को सबसे पहली प्राथमिकता दी थी और शिक्षित होने के साथ-साथ संगठित होने और संघर्ष करने का संदेश भी दिया है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, जिस इंद्रभुवन थिएटर में बाबासाहब ने समाज को संगठित होकर संघर्ष करने का संदेश दिया था, आज उसी इंद्रभुवन थिएटर में चल रही शाला द्वारा समाज को शिक्षित करते हुए महामानव को सही अर्थों में आदरांजलि अर्पित की जा रही है.