अमरावती

कुलगुरु पद के लिए योग्य नहीं डॉ. प्रमोद येवले

खुद सरकारी कमेटी की रिपोर्ट में उठाई गई है आपत्ति

* नूटा ने प्रभारी कुलगुरु पद से तुरंत हटाने की उठाई मांग
* पत्रवार्ता में सभी तथ्यों का विस्तृत ब्यौरा रखा
अमरावती/दि.22 – संत गाडगे बाबा अमरावती विद्यापीठ के प्रभारी कुलगुरु तथा डॉ. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाडा विद्यापीठ के पुर्णकालीक व नियमित कुलगुरु रहने वाले डॉ. प्रमोद येवले हकीकत में कुलगुरु पद के लिए बिल्कूल भी योग्य नहीं है और उनकी योग्यता प्रिंसीपल व प्राध्यापक बनने की भी नहीं है. इस आशय का निष्कर्ष राज्य सरकार द्बारा गठित डॉ. रहाटगांवकर की कमिटी द्बारा काफी पहले दिया गया था. इसके बावजूद डॉ. प्रमोद येवले एक विद्यापीठ के कुलगुरु रहने के साथ-साथ एक से अधिक विद्यापीठों के प्रभारी कुलगुरु पद का जिम्मा संभाल रहे है. ऐसे में बेहद जरुरी है कि, पूरे मामले की सघन जांच होनी चाहिए. साथ ही डॉ. प्रमोद येवले को अमरावती के प्रभारी कुलगुरु पद से हटाते हुए यहां पर जल्द से जल्द योग्य पात्रता रखने वाले नियमित व पुर्णकालीक कुलगुरु की नियुक्ति की जानी चाहिए. इस आशय की मांग नागपुर युनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन यानि नूटा संगठन द्बारा बुलाई गई पत्रवार्ता में उठाई गई.
इस पत्रकार परिषद मेंं नूटा के उपाध्यक्ष प्रा. डॉ. विवेक देशमुख ने बताया कि, जिस समय डॉ. प्रमोद येवले नागपुर विद्यापीठ ने प्र-कुलगुरु हुआ करते थे. तब उन्होंने अपना वेतन बढाए जाने की मांग को लेकर अदालत में एक याचिका दायर की थी. जिस पर सुनवाई के बाद अदालत ने सरकार को इस बात की जांच करने के निर्देश दिए थे कि, डॉ. येवले वेतन वृद्धि के लिए वाकई योग्य है अथवा नहीं. जिसके बाद अदालत ने डॉ. श्रीमती रहाटगांवकर की एक सदस्यीय समिति गठित की थी और इस समिति ने विस्तृत जांच करने के उपरान्त अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि, प्र-कुलगुरु पद तो दूर, डॉ. प्रमोद येवले तो प्रिन्सिपल व प्राध्यापक बनने की भी योग्यता व पात्रता नहीं रखते. ऐसे में उन्हें प्र-कुलगुरु पद पर बनाए रखने और वेतनवृद्धि देने का सवाल ही नहीं उठता. विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि, इस मामले को लेकर जारी सुनवाई के दौरान जब डॉ. प्रमोद येवले से उनकी मूल सेवा पुस्तिका मांगी गई, तो उन्होंने जांच अधिकारी से जानना चाहा था कि, क्या वे मूल सेवा पुस्तिका को नये सिरे से तैयार करते हुए पेश कर सकते है. साथ ही उन्हें एक अगस्त 1992 से 3 दिसंबर 2002 की कालावधि के दौरानवाली मूल सेवा पुस्तिका प्रस्तूत करने का निर्देश दिया गया था और इसमें भी डॉ. प्रमोद येवले ने चालाकी दिखाते हुए विद्यापीठ से ‘सन 1993-94 के शैक्षणिक सत्र हेतु और आगे के लिए’ ऐसी मान्यता प्राप्त की. जबकि प्र-कुलगुरु पद पर रहने वाले व्यक्ति के लिए यह एक तरह का अशोभनीय बर्ताव था. इसके साथ ही डॉ. प्रमोद येवले ने युजीसी व एआईसीटीई सहित सरकार के कई नियमों का अनेकों बार उल्लंघन करते हुए विविध पदों पर नियुक्ति प्राप्त कर उन पदों का लाभ लिया. यह सीधे-सीधे संबंधित विद्यापीठों और राज्य सरकार के साथ धोखाधडी व जालसाजी है. ऐसे में कुलगुरु पद हेतु पात्र नहीं रहने वाले डॉ. प्रमोद येवले की अमरावती के प्रभारी कुलगुरु पद से नियुक्ति को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए. साथ ही योग्यता व पात्रता नहीं रहने के बावजूद वे इन पदों पर कैसे पहुंचे. इसकी भी जांच करते हुए उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए. ऐसी मांग भी इस पत्रवार्ता में उठाई गई. इस पत्रवार्ता में नूटा के उपाध्यक्ष प्रा. डॉ. विवेक देशमुख सहित सहसचिव डॉ. नितिन चांगोले व कार्यकारिणी सदस्य डॉ. रविंद्र मुंदे उपस्थित थे.

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