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वक्त और व्यावसायिकता के चलते फिल्मों व गीतों का स्तर घटा

ख्यातनाम शायर व गीतकार शकील आजमी का कथन

अमरावती/दि.11 – बदलते जमाने के साथ भाषा और लेखनशैली बदलती है. पढनेवालों और सुनने वालों की रुचि भी बदलती है. लेकिन यही अपने आप में पूरा सच नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा होता, तो आज भी पुराने फिल्मी गीतों और पुरानी फिल्मों को पसंद नहीं किया जाता. ऐसे में कहा जा सकता है कि, बदलते वक्त के साथ ही फिल्म निर्माताओं की व्यवसायिक वृत्ति के चलते फिल्मों के विषय व गीतों के स्तर के साथ कुछ हद तक समझौते किए जा रहे है. जिसका असर सबके सामने है. हालांकि अच्छी बात यह भी है कि, फुहडता का दौर लगभग बीत चुका है तथा विगत कुछ समय से फिल्मों में अच्छे बोल वाले और कविता और शायरी आधारित फिल्मी गीत सुनाई देने लगे है. इसे एक अच्छा संकेत कहा जा सकता है. इस आशय का प्रतिपादन ख्यातनाम शायर एवं फिल्मी गीतकार शकील आजमी द्बारा किया गया.
ठाकरे गुट वाली शिवसेना द्बारा शिव जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने हेतु अमरावती पहुंचे शायर शकील आजमी ने आज दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत की. जिसमें उपरोक्त प्रतिपादन करने के साथ ही आजमी ने उर्दू अदब, फिल्मी गीतों तथा अपनी साहित्यिक यात्रा व उपलब्धियों के साथ ही मौजूदा सामाजिक हालात जैसे मुद्दों पर खुलकर बातचीत की. इस समय आजमी ने कहा कि, प्रत्येक व्यवसाय का मूल उद्देश्य अपने द्बारा लगाई गई लागत पर फायदा कमाना होता है, यह सच है. लेकिन फिल्म व्यवसाय में धनार्जन व अर्थार्जन के साथ ही रचनात्मकता का मूलभाव भी जुडा होता है. साथ ही चूंकि फिल्में बडे पैमाने पर लोगों को प्रभावित करती है. अत: हमारे उपर एक बडी सामाजिक जवाबदारी भी होती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति केवल धन कमाना चाहता है, तो उसने फिल्मों में पैसा नहीं लगाना चाहिए. बल्कि फिल्मों में पैसा लगाने वाले निर्माता को चाहिए कि, वह अपने डायरेक्टर को विषय के साथ-साथ संगीतकार, गीतकार, कलाकार व कैमरामैन सहित पूरी टीम चुनने की आजादी दें, तब कहीं जाकर कोई माइलस्टोन फिल्म और अजरामर कृति बन सकती है. लेकिन इन दिनों चूंकि सबकुछ फास्टफूड की तरह हो गया है. जिसके चलते झटपट फायदा और फटाफट रिजल्ट वाली मानसिकता काम करती है. जिसकी वजह से कहीं न कहीं गुणवत्ता के साथ समझौता हो जाता है. इसके अलावा सबसे बडी वजह यह भी है कि, आज फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे गीतकार भी है, जो शायर या कवि नहीं है, बल्कि वे संगीतकार द्बारा तैयार की गई धून पर शब्दों को फीट करना जानते है, ऐसे में इस तरह के गीत भले ही सुनने में ठीक लगे, लेकिन पढने और समझने के स्तर पर उनका कोई अर्थ नहीं है. ऐसे में बेहद जरुरी है कि, फिल्म गीत लेखन के क्षेत्र में वे लोग आगे आए, जिनकी शब्दों से पहचान है, जिन्हें साहित्य के साथ ही संगीत की थोडी समझ है और जिन्होंने साहित्यिक के क्षेत्र में अपने जीवन का बडा हिस्सा खपा दिया है. तब एक बार फिर फिल्मी गीतों में कवित्व एवं अदब वाला ऐहसास लौटेंगा.
अपने व्यक्तिगत जीवन एवं साहित्यिक सफर के बारे में बात करते हुए शकील आजमी ने बताया कि, उनका जन्म वर्ष 1971 में 20 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के आजमगढ निवासी किसान परिवार मेें हुआ था और बचपन में ही सिर से मां का साया हट जाने के चलते उनके नाना-नानी ने उनकी पर्वरिश की. पश्चात आगे चलकर कुछ ऐसी स्थितियां बनी कि, बेहद कम उम्र में वे आजमगढ से मुंबई भाग आए, ताकि अपनी तरह की जिंदगी जी सके. पश्चात मुंबई से निकलकर अगले 13-14 साल तक बडौदा, भरुच व सूरत में रहे और फिर मुंबई लौटे. इसी दौरान वर्ष 1984 में उनका वास्ता शायरी से पडा. जब उन्होंने अपनी पहली गजल लिखी और सूरत में रहने के दौरान उनकी दो किताबें छपी. जिन्हें उर्दू अदब के बडे सुखनवरों व समालोचकों की काफी सराहना मिली. उस समय अपने दौर के मशहूर शायर कैफी आजमी ने शकील आजमी की पहली किताब को पढकर कहा था कि, शकील आजमी की शायरी वहां से शुरु हो रही है, जहां पर मेरी यानि कैफी आजमी की शायरी दम तोडने वाली है. साथ ही प्रा. वारिस अल्वी ने शकील आजमी को निदा फाजली व मोहम्मद अल्वी जैसे अदीबो व सुखनवरों की जमात में अगला चमकता सितारा बताया था.
उर्दू अदब की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने के बाद शकील आजमी फरवरी 2001 में फिल्मी गीत लिखने मुंबई पहुंचे, तब तक उनके 7 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके थे और वे अमेरिका व कनाडा सहित खाडी देशों का भी मुशायरों के लिए दौरा कर चुके थे. मुंबई पहुंचने के बाद वर्ष 2004 में उन्हें कुकु कोहली निर्देशित तथा विजयपत सिंघानियां द्बारा निर्मित फिल्म ‘वो तेरा नाम था’ में गीत लिखने का मौका मिला. जिसके बाद उन्होंने तनवीर खान, मोहित सुरी, महेश भट्ट, मुकेश भट्ट, विक्रम भट्ट, पूजा भट्ट, सुधीर मिश्रा, सैयद अफजल अहमद, अनुभव सिन्हा व रत्ना सिन्हा जैसे निर्देशकों व निर्माताओं के साथ काम किया. साथ ही अब आगामी 24 मार्च को उनकी 52 वीं फिल्म ‘भीड’ रिलिज होने जा रही है. जिसमें निर्देशक अनुभव सिन्हा ने लॉकडाउन काल के दौरान मजदूरों के पलायन की कहानी को दर्शाया है.
अपनी उपलब्धियों के बारे में बात करते हुए शकील आजमी ने बताया कि, उन्हें फिल्म स्क्रीन राइर्ट्स एसो. ने इस साल के बेस्ट गीतकार का अवार्ड दिया है. साथ ही उनके द्बारा थप्पड फिल्म के लिए लिखे गए गीत एक टूकडा धुप को फिल्म फेयर अवार्ड का नामांकन मिला. जिसे झारखंड सरकार और एफओआईओए की ओर से 2 अवार्ड मिले थे. इसके अलावा वर्ष 2005 में आयी फिल्म मदहोशी के गीत ये खुदा को स्टार डस्ट अवार्ड का नॉमिनेशन मिला था. साथ ही गुजरात गौरव अवार्ड व कैफी आजमी अवार्ड सहित उन्हें फिल्म व साहित्य जगत में कुल 20 अवार्ड मिले है. इन सबके साथ ही उनके लिए सबसे बडी उपलब्ध यह भी है कि, फिल्म ‘शादी में जरुर आना’ में उनके द्बारा लिखा गया गीत ‘तू बन जा गली बनारस की’ काफी सुपरहीट हुआ और ‘खइके पान बनारस वाला’ गीत के बाद उनका यह गीत एक तरह से बनारस का नया एंथम है.

* रामायण के पात्रों पर आधारित किताब ‘बनवास’
इस विशेष साक्षात्कार में अपने द्बारा लिखे गए फिल्मी गीतों व साहित्यिक कृतियों की जानकारी देते हुए शकील आजमी ने बताया कि, हाल ही में उनकी सातवीं साहित्यिक कृति प्रकाशित हुई है. जिसका नाम ‘बनवास’ है. इस काव्यसंग्रह की खासियत यह है कि, 200 पन्ने की इस किताब में करीब 86 नज्मों व 30 गजलों का समावेश है और जंगल पर आधारित इस किताब का एक तिहाई हिस्सा रामायण पर समर्पित है. जिसके तहत रामयण के जितने भी पात्र है, लगभग उन सभी पात्रों पर नज्में लिखी हुई है. यह किताब इस समय उर्दू साहित्यिक जगत में चर्चा का केंद्र बनी हुई है. वहीं अगले महीने मंजुल पब्लिकेशन द्बारा यह किताब हिंदी में प्रकाशित होगी. अपनी इस किताब के बारे में बताते हुए शकील आजमी ने कहा कि, जंगल पर आधारित एक गजल ने ‘बनवास’ की रचना हेतु प्रेरणा दी थी. जिसकी पंक्तियां कुछ यूं है कि,
मैं हूं इंसान, तो होने का पता दें जंगल,
राम जैसे थे, मुझे वैसा बना दे जंगल,
फिर मेरे लोगों ने बनवास दिया है मुझको,
फिर मुझे घर से बेदखली की सजा दे जंगल,
इस गजल को आधार बनाने के बाद शकील आजमी ने उर्मिला (लक्ष्मण की पत्नी) के साथ ही महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या की कहानी को आधार बनाकर नज्म लिखी और फिर धीरे-धीरे रामायण के सभी पात्रों की कहानियों और भावों को पिरोते हुए बनवास नामक साहित्यिक कृति पूरी हुई.

* अमरावती साहित्यिक समझ वाला शहर
इस बातचीत में शायर शकील आजमी ने बताया कि, वह इससे पहले भी कई बार अमरावती आ चुके है और यहां पर उनके कई अच्छे मित्र भी है. अमरावती को लेकर वे कह सकते है कि, यह हिंदी साहित्य व उर्दू अदब की अच्छी खासी समझ रखने वाले लोगों का शहर है और यहां पर सुखनवरों, अदीबों व साहित्यिकों की अच्छी कद्र होती है. ऐसे में अमरावती आना उनके लिए हमेशा एक शानदार अनुभव रहता है.

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