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एक-एक मरीज को लग रही 30-30 सलाईने

दस्त के प्रमाण पर तय की जाती है सलाईन की संख्या

अमरावती/दि.12– आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र के पाचडोंगरी व कोयलारी में रहनेवाले आदिवासी ग्रामीण विगत पांच दिनों से डायरिया व कॉलरा जैसी संक्रामक बीमारियों से त्रस्त है और संक्रमण की चपेट में आये ग्रामीणों का काटकूंभ व चुरणी के ग्रामीण अस्पताल व सरकारी स्वास्थ्य केंद्र के साथ-साथ गांव में स्थित जिप प्राथमिक शाला में इलाज किया जा रहा है. जहां पर एक-एक मरीज को रोजाना 30-30 सलाईने चढाई जा रही है, ताकि उनकी स्थिति को सामान्य किया जा सके. स्वास्थ्य सुत्रों के मुताबिक दूषित पानी पीने की वजह से अतिसार व हैजे का शिकार हुए ग्रामीणों में उलटी व दस्त की शिकायतें बडे पैमाने पर देखी जा रही है. जिसकी वजह से उनके शरीर में पानी का प्रमाण कम हो गया है. ऐसे में उनके शरीर में क्षार एवं लवण के साथ ही पानी का संतुलित प्रमाण रखने हेतु उन्हें सलाईन लगायी जा रही है और किस मरीज को एक दिन में दौरान कितनी बार पतले दस्त हो रहे है, इसके आधार पर उन्हें लगायी जानेवाली सलाईन की संख्या निर्धारित की जाती है.
इस संदर्भ में किये गये प्रत्यक्ष मुआयने में पता चला कि, इस समय स्वास्थ्य महकमें द्वारा कोयलारी व पाचडोंगरी गांव के साथ ही आसपास के क्षेत्रों में युध्दस्तर पर काम किया जा रहा है और पाचडोंगरी में हर घर में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को कॉलरा प्रतिबंधात्मक डोज दिया गया है. जिसके तहत डॉक्सीसाईक्लीन 300 एमजी की तीन-तीन गोलिया एक ही समय दी जा रही है. साथ ही साथ सतर्कता के तौर पर यहां काम करनेवाले डॉक्टर भी खुद यह प्रतिबंधात्मक डोज ले रहे है. मरीजों की बढती संख्या को देखते हुए जिला परिषद की उच्च प्राथमिक शाला में सभी मरीजों को जमीन पर लिटाकर ही इलाज किया जा रहा है. यहां पर सलाईन चढाने हेतु स्टैण्ड की सुविधा नहीं रहने के चलते शाला की इमारत में खिडकियों के सहारे रस्सी बांधी गई है. जिससे लटकाकर सलाईन बैग लगाते हुए मरीजों को सलाईन चढाई जा रही है. इसके अलावा कई बार डॉक्टर या स्वास्थ्य कर्मी खुद अपने हाथ में सलाईन लेकर खडे रहते है.

* क्यों फैली कॉलरा व डायरिया की बीमारी?
पाचडोंगरी व कोयलारी गांव में डायरिया व कॉलरा जैसी संक्रामक बीमारियां क्यों फैली है और अकस्मात चार लोगों की मौत होकर करीब 100 लोग बीमार क्यों पड गये है, इस बात से गांव में रहनेवाले भोले-भाले आदिवासी अब भी अनभिज्ञ है, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक बारिश का मौसम शुरू होते ही गांवों का गंदा पानी कुएं व तालाब जैसे जलस्त्रोतों में जाकर मिल जाता है. जिससे वह पानी पीने के लिहाज से दूषित हो जाता है. इसी पानी को पीने के चलते आज कोयलारी व पाचडोंगरी गांव में डायरिया व कॉलरा की बीमारियां फैली हुई है, जो आसपास के अन्य इलाकों को भी अपनी चपेट में ले सकती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक बहुत समय पहले कभी इन गांवों में कॉलरा के संक्रमण की लहर आकर गई होगी, लेकिन इससे बचे लोगों के शरीर में कॉलरा के जंतू जीवित रहते है और ऐसे ही कुछ बुजुर्ग लोग आज कॉलरा से संक्रमित हुए एवं उनके जरिये यह संक्रमण अन्य लोगोें तक फैला. लेकिन जब तक इसकी जानकारी स्वास्थ्य महकमे तक पहुंची, तब तक काफी देर हो चुकी थी तथा चार लोगों की मौत भी हो चुकी थी.

कॉलरा के जंतू सालोंसाल तक किसी संक्रमित व्यक्ति के शरीर में जीवित रह सकते है. कालांतर में यदि ऐसा कोई व्यक्ति दोबारा संक्रमण की चपेट में आता है, तो वह कॉलरा का संक्रमण फैलाने की वजह भी बनता है. संभवत: पाचडोंगरी व कोयलारी परिसर में रहनेवाला कोई बुजुर्ग व्यक्ति कई वर्ष पहले इस क्षेत्र में हुए कॉलरा संक्रमण की चपेट में आ गया होगा. जिसके शरीर में कॉलरा के जंतु बने रहे और अब संक्रमण के लिए अनुकूल स्थिति बनते ही यह जंतू सक्रिय हो गये. जिससे आज एकबार फिर इस परिसर में कॉलरा संक्रमण की लहर फैल गई है.
– डॉ. दिलीप रणमले
जिला स्वास्थ्य अधिकारी

*नया अकोला में भी कॉलरा के संक्रमण का संदेह
वहीं दूसरी ओर अमरावती शहर के पास ही स्थित नया अकोला में भी सोमवार को कई लोग एकसाथ बीमार पडे और एक युवक की मौत भी हो गई. संभावना जताई जा रही है कि, संभवत: नया अकोला में भी मेलघाट की तरह डायरिया व कॉलरा का संक्रमण फैला है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने अब नया अकोला गांव सहित इस परिसर के चारों ओर 15 किमी के दायरे में स्थित रिहायशी इलाकों में स्वास्थ्य सर्वे करना शुरू कर दिया है.

* दो वर्षों से रूका था सिलसिला, इस वर्ष सात स्थानों पर संक्रमण
इसी बीच यह जानकारी सामने आयी है कि, राज्य में इस बार सात स्थानों पर कॉलरा का संक्रमण फैला है. इससे पहले सन 2021 में भी दो स्थानों पर कॉलरा का संक्रमण फैलने का मामला सामने आया था. लेकिन उस समय कोई मौत नहीं हुई थी. वहीं इससे भी पहले वर्ष 2019 एवं वर्ष 2020 में कहीं पर भी कॉलरा फैलने की जानकारी सामने नहीं आयी थी.

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