लोकमान्य तिलक के शैक्षिक विचार दूरदर्शी व प्रासंगिक
व्याख्यानमाला में सुनंदा आस्वले का प्रतिपादन
अमरावती/दि.29 – स्वाधिनतापूर्व काल में भी लोकमान्य तिलके के शैक्षिक विचारों का अध्ययन करते है, तो वे आज भी लागू होते है. लोकमान्य तिलक के शैक्षिक विचार दूरदर्शी व प्रासंगिक है, इसलिए उन्हें दूरदर्शी शिक्षावीर कहा जा सकता है. उनके विचार आज भी लागू होते है. इस आशय का प्रतिपादन सुनंदा आस्वले ने किया. स्थानीय नगर वाचनालय में आयोजित लोकमान्य तिलक व्याख्यानमाला के तीसरी श्रृंखला में उन्होंने लोकमान्य तिलक 1 दृष्टा शिक्षा तंत्र विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला. नगर वाचनालय के सचिव रवि पिंपलगावकर की अध्यक्षता में इस व्याख्यान का आयोजन किया गया.
सुनंदा आस्वले ने लोकमान्य तिलक की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए एक स्लाईड शो के माध्यम से विभिन्न संदर्भ देते हुए बताया कि, स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है. इस एक वाक्य के साथ ही लोकमान्य तिलक की छवी परदे पर उभरती है. वे बहुमुखी प्रतिभा तथा बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे. वे एक दार्शनीक, अर्थशास्त्री, आयुर्वेद, संस्कृत व गणित के जानकार थे. जब उन्हें विश्वास हो गया कि, वे कानून की जानकारी के बीना अंग्रेजों को बाहर नहीं निकाल पाएंगे, तो उन्होंने स्वयं एक वकील के रुप में अध्ययन किया और उस समय के युवाओं को भी उच्च शिक्षा हासिल करने की अपील की. वह एक स्वाधिनता सेनानी तथा प्रखर पत्रकार थे.
लोकमान्य तिलक के दादा नारायण रामचंद्र तिलक की संस्कृत पर पकड थी. उनके पिता गंगाधर तिलक एक शिक्षक थे और गणित तथा संस्कृत के अच्छे जानकार थे. इसीलिए तिलक को यह दोनों विषय बचपन से ही मिल गये थे. मां द्बारा सुर्योपासना करने से उनका जन्म होने का वे इसी परिणाम मानती थी. जबकि लोगों ने भी उनकी प्रखरता को देखकर ऐसा ही महसूस किया. उनके चिकित्सकीय दिमाख में उन्हें कभी भी शांत नहीं बैठने दिया. स्कूल में वह शिक्षकों को तरह-तरह के सवाल पूछकर परेशान करते थे. बाद में उन्होंने स्कूल के शिक्षक के रुप में कार्यरत रहते वक्त अन्य विषयों को भी छात्रों को पढाया, वे पौढ लोगों के लिए भी कक्षाएं चलाते थे. तिलक का मानना था कि, शिक्षा होनी चाहिए लेकिन प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति अपने पांव पर खडा होना चाहिए. न केवल नौकरी के रुप में बल्कि उस व्यक्ति को एक सभ्य समाज का निर्माण भी करना चाहिए. इसके लिए तिलक के 4 प्रमुख शैक्षिक सिद्धांत थे. जिसके तहत शिक्षा स्थानीय भाषा में होनी चाहिए. धार्मिक शिक्षा भी जरुरी है, लेकिन उसका अतिरेक नहीं हो, शिक्षा भी रोजगार पैदा करने वाली होनी चाहिए, उन्होंने औद्योगिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया. उनका उद्देश्य था की राजनीतिक शिक्षा भी जरुरी है. लेकिन यह राजनीतिक शिक्षा राष्ट्रवाद से प्रेरित रहनी चाहिए. देशभक्ति उस शिक्षा की नींव रहनी चाहिए. यह सभी मुद्दे आज भी लागू है, इसलिए लोकमान्य तिलक दूरदर्शी शिक्षावीद है. व्याख्यान पश्चात सभी को विनायक खोलकुटे द्बारा प्रसाद का वितरण किया गया. व्याख्यानमाला में पूर्व विधायक वसंतराव मालधुरे, शशिकांत आस्वले, श्रीभाउ चिमोटे, बालासाहब यादगिरे, नामदेव काले, विजय मानेकर, शैलजा पिंपलगावकर, सुहास भुमरालकर, प्रमोद मानकर, सुरेश चापोरकर, राजेंद्र वाईकर, मनोहर परिमल, जगदिश साईसिकमल, अशोक कारंजकर, पद्माकर चुने, किरण खोत, नगर वाचनालय के पदाधिकारी, कर्मचारी व श्रोता उपस्थित थे.