उच्च शिक्षण विभाग के संविधान में बदलाव करने का प्रयास
विधान परिषद के पूर्व सदस्य प्रा. बी. टी. देशमुख की टिप्पणी
अमरावती/दि. 16– एकतरफ प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहगार समिति के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय जैसे लोग भारतीय संविधान बदलने की भाषा कर रहे है. ऐसे में राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी संविधान का प्रावधान बदलकर इस्तेमाल कर रहे है. संविधान को छेडने का प्रयास किया जा रहा है और इसके लिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवहेलना करने का मार्ग अपनाया है, ऐसी गंभीर टिप्पणी पूर्व विधान परिषद सदस्य प्रा. बी. टी. देशमुख ने की है.
उच्च शिक्षण विभाग के अधिकारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को नजरअंदाज कर लिए निर्णय का उदाहरण प्रा. बी. टी. देशमुख ने अपने ज्ञापन में दिया है. घटनाबाह्य कृति करनेवाले अधिकारियों पर रोक लगाने, उन पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी उच्च शिक्षणमंत्री की है, ऐसी याद उन्होंने उच्च शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल को दिलवाई है. उच्च न्यायालय ने 9 फरवरी 2021 को दिए हुए फैसले का एक सहसंचालक ने 12 मई 2021 को एक आदेश निकालकर स्थगिती देने का अभूतपूर्व गैरमार्ग महाराष्ट्र ने देखा. अवमान याचिका के बाद मूल निर्णय पर अमल हुआ. लेकिन इस संचालक की जांच तक नहीं की गई. विद्यापीठ अनुदान आयोग के वरिष्ठतम राज्यपाल और मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर किए जाने के बावजूद यह अधिकारी उसे नहीं मानते. जुलाई 2009 के पूर्व जिन्होंने एमफील पदवी प्राप्त की है, ऐसे शिक्षक को नियुक्ति के पहले दिन से सेवा मानकर आश्वासित प्रगति योजना सहित अन्य सभी लाभ देने पडेगे, ऐसा निर्णय उच्च न्यायालय ने 2010 में दिया था. सर्वोच्च न्यायालय की इस पर मुहर लगी थी. इसके विरोध में सरकारी वकिलों द्वारा विशेष अनुमति याचिका दायर न करने की सलाह देने के बावजूद वह दाखिल की गई. उसे न्यायालय ने खारिज कर दिया. उच्च व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धोरणात्मक आदेश देने के बावजूद अभी भी इस बाबत का निर्णय निर्गमित नहीं होना यह लज्जास्पद बात है. लेकिन संविधान के प्रावधान का उल्लंघन करनेवाला है, ऐसी टिप्पणी देशमुख ने की है.
उच्च शिक्षण संचालक के आदेश अलग, उपसचिव के आदेश उससे अलग और दोनों ने न्यायालय का निर्णय ही नहीं पढा. पढा भी होगा तो उन्हें वह समझा ही नहीं, ऐसा बी. टी. देशमुख ने कहा है. 71 दिनों के गैरकानूनी वेतन कटौति के प्रकरण में उच्च न्यायालय ने सभी शिक्षको के 71 दिन का वेतन वापस करने और उस पर 8 प्रतिशत ब्याज देने के आदेश दिए थे. इस पर शासन निर्णय भी निकला. लेकिन उच्च न्यायालय का निर्णय और राज्य शासन का निर्णय अपने अधिकार में उच्च शिक्षण संचालक ने दुरुस्त किया. यह संविधान विरोधी कृत्य रहने की बात प्रा. बी. टी. देशमुख ने कही है. एक प्रकरण में तो न्यायालय में झूठी जानकारी शपथपत्र के साथ सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई. ऐसे अनेक उदाहरण सामने रहने के बावजूद ऐसे अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती, इस बात का खेद देशमुख ने व्यक्त किया है.