पूर्व काल की परंपरा को महायज्ञ के माध्यम से पुन: स्थापित करने प्रयास सराहनीय
जगद्गुरु रामानंदाचार्य के आशीर्वचनों का भक्तों ने लिया लाभ, गडगडेश्वर मंदिर में गायत्री महायज्ञ
अमरावती /दि. २३ – शताब्दियों से समाजसुधारक, धर्मध्ाुरंदर, संतों ने पारंपारिक व्यवहार में एकात्मता, समानता की भावना को बढ़ावा दिया है. इस पवित्र हेतु से गडगडेश्वर मंदिर में समरसता यज्ञ का आयोजन रविवार को किया गया. इस अवसर पर श्री रुक्मिणी विदर्भ पीठ कौंडण्यपुर के पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य समर्थ माऊली सरकार व विश्व हिन्दू परिषद के क्षेत्रीय धर्म प्रचार प्रमुख प्रमुख वक्ता अजय निलदावार मुख्य रूप से उपस्थित थे. इस अवसर पर स्वामी रामानंदाचार्य ने अपने आशीर्वचन में कहा कि, वर्तमान पीढी अपनी धरोहर को अधिक विकसित करने की बजाय पश्चिमी संस्कृति को अपना रही है. मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम ने विश्व में समरसता का संदेश दिया था. समरसता का अर्थ है कि सभी समाज को एकत्रित कर सनातन धर्म को विकसित करने तथा जनजागृति का कार्य कर लोगों को की ओर प्रयाण करते समय वानर सेना, रावण के भाई विभीषण, विविध पशु-पक्षियों को लंकापति रावण से युद्ध के लिए एकजुट किया था. इसे ही समरसता कहा जाता है. पूर्वकाल की इस परंपरा को कलियुग में महायज्ञ के माध्यम से पुन: स्थापित कर समाज में समरसता लाने का यह प्रयास सराहनीय है. गडगडेश्वर मंदिर में रविवार को विश्व हिंदू परिषद, समरसता परिवार, गायत्री परिवार की ओर से समरसता महायज्ञ तथा मार्गदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस अवसर पर जगतगुरू के आशीर्वचनों का लाभ भक्तों को प्राप्त हुआ. कार्यक्रम में गडगडेश्वर संस्था के उपाध्यक्ष रमेश सारडा, विहिंप के महानगर प्रमुख दिनेश सिंह, नंदकिशोर गुल्हाने, गायत्री परिवार के जिला समन्वयक शोभा बहुरूपी, महानगर उपाध्यक्ष डॉ. संजीवनी पचलोरे, महानगर मंत्री चेतन वाटनकर आदि प्रमुखता से उपस्थित थे. अनंत विभूषित जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामराजेश्वराचार्य ने कहा कि, विहिंप अर्थात विश्व परिषद के माध्यम से विविध कार्य किये जा रहे हैं. हिंदू संस्कृति में केवल पुरुषों को महत्व नहीं दिया जाता, बल्कि पुरुष एवं स्त्री को समान महत्व दिया जाता है. आचार्य ने समय-समय पर कई रूप धारण किये है. जिसमें भगवान महावीर, भगवान गौतम बुद्ध, प्रभु श्रीराम,भगवान कृष्ण, शंकराचार्य के रूप में वे हमेशा ही हमें सनातन धर्म की ओर प्रेरित करते रहे हैं. सनातनों को एक बीमारी लगी है. जिसे जाति कहा जाता है. इसका नाश करने के लिए कबीर, भगत नरसिंह जैसे शिष्यों को बनाया गया. लेकिन हम जाति व्यवस्था को नष्ट नहीं कर पाये. राम अर्थात अंत को जाने वही है राम. इस शब्द को उल्टा किया जाये तो मरा होता है. इसी बात को हमें समझना चाहिए. भारत की संस्कृति और सभ्यता हमेशा ही प्रभावशाली रही है. इस कारण पूर्वकाल से ही हमें तोडने का प्रयास हुआ है. हमारा शरीर कई जीव-जंतुओं से बना होता है. इसीलिए मृत्यु के पश्चात मृत शरीर में उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया को रोकने के लिए सूती सफेद कपडा, तुलसी का पत्ता, नीम का पत्ता जैसी वस्तुओं का इस्तेमाल कर इन जंतुओं को बढने से रोका जाता है. उसी प्रकार यज्ञ एक ऐसा माध्यम है जो हमें प्रकृति से जोडता है. अप्रत्यक्ष रूप से यज्ञ की विधि हमें सनातन धर्म से जोडती है. प्रभु श्रीराम का जीवन चरित्र समरसता के अनुरूप है. इसलिए इस वैश्वीकरण के युग में हमें समरसता को अपनाते हुए प्रभु श्रीराम के जीवन चरित्र को ही अपनाना होगा. यह विचार उन्होंने रखे.
१०८ दंपत्तियों की उपस्थिति
कार्यक्रम में सर्वप्रथम भारतमाता का पूजन किया गया. पश्चात प्रस्तावना राजू देशमुख ने रखी. सुबह ८.३० बजे से दोपहर १२ बजे तक १०८ दंपत्तियों की उपस्थिति में समरसता महायज्ञ किया गया. गायत्री परिवार के सहयोग से आयोजित इस महायज्ञ में उपस्थितों ने भी आहुति अर्पित की. इसके अलावा अनंत विभूषित जगतगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामराजेश्वराचार्य का आशीर्वाद प्राप्त किया. कार्यक्रम की समाप्ति प्रसादी भोज से की गई. इस अवसर पर बड़ी संख्या में सनातन धर्म प्रवर्तक, विहिंप के पदाधिकारी, धर्मप्रेमी, राष्ट्रप्रेमी व नागरिक उपस्थित थे.
भारतीय संस्कृति सर्वश्रेष्ठ
कार्यक्रम में उपस्थित अजय निलदावार ने कहा कि, पर्वत, वृक्षवल्ली, जीव-जंतु व मानव सृष्टि यह चार प्रकृति है. जिसके पास धन है, ज्ञान है उसे दान स्वरूप दूसरों को अर्पण करने से वह बढने लगता है. ज्ञान, विज्ञान व योगशास्त्र से मनुष्य को स्वस्थ जीवन प्राप्त होता है. जब-जब देने की वृत्ति बढ़ती है, तब-तब ईर्ष्या भाव कम होता है और उन्नति तथा प्रगति का मार्ग खुलने लगता है. समसरता महायज्ञ यह समाज के भलाई के लिए किया जाता है. इस माध्यम से समाज के हर वर्ग को हर जाति धर्म को जोड़ने का प्रयास होता है. यह केवल यज्ञ नहीं, बल्कि समाज को एक संघ करने का प्रयास है. योग विज्ञान से श्रेष्ठ है. इसीप्रकार भारतीय संस्कृति सभी संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ है. इसलिए आज की युवा पीढ़ी को इसके जतन हेतु प्रयास करने का आवाहन करते हुए मातृ व पितृ शक्ति को अपने बच्चों में इस सभ्यता और संस्कृति के प्रति सम्मान की भावना जगाने का अनुरोध उन्होंने किया.