अमरावतीमहाराष्ट्र

विदर्भ के कौंडण्यपुर में बडे ही श्रद्धाभाव से मनाया एकादशी उत्सव

दर्शन के लिए भक्तों की लगी कतार

* ताल-मृदंग की गूंज में भजन और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम
* 22 को दहिहांडी व महाप्रसाद का आयोजन
तिवसा/दि.18-कौंडण्यपुर को विदर्भ का पंढरपुर कहा जाता है. भगवान श्री कृष्ण ने जिस स्थान से माता रुक्मिणी का हरण किया था, उस धार्मिक नगरी कौंडण्यपुर में 17 जुलाई को आषाढी एकादशी का उत्सव बडे ही श्रद्धाभाव और धार्मिक कार्यक्रमों के साथ मनाया गया. यहां के विठ्ठल-रुक्मिणी संस्था में ताल-मृदंग की गूंज, महिलाओं द्वारा भजन प्रस्तुति, विठ्ठल गीत व भजनों से मंदिर परिसर भक्तिमय हो गया. संस्थान के अध्यक्ष एन.बी. अमालकर व अन्य पदाधिकारियों की उपस्थिति में वरिष्ठ विश्वस्त सत्यनारायण चांडक ने सुबह 6 बजे सपत्निक विठ्ठल-रखुमाई की महापूजा व अभिषेक किया. इसके बाद भक्तों के लिए मंदिर खोल दिया गया. मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से लेकर रात 8 बजे तक भक्तों की लंबी कतार लगी थी. अध्यक्ष, मंदिर के विश्वस्त अतुल ठाकरे व प्रशांत गावंडे सहित सभी सदस्यों ने भक्तों को असुविधा न हो इसके लिए उत्तम व्यवस्था कराई थी. मंदिर में दर्शन के लिए आनेवाले भक्तों के लिए दानदाताओं की ओर से फराल का वितरण किया गया.

पालकी की 432 वर्षों की परंपरा
कौंडण्यपुर से हर साल पंढरपुर को पालकी निकलती है. वारी के साथ जानेवाली इस पालकी यह 432 वां साल है. इस साल 300 भक्त पंढरपुर गए है. मंदिर के विश्वस्त अशोक पवार के नेतृत्व में 41 दिन पैदल चलकर 875 किमी की दूरी इन भक्तों ने पार की है. पंढरपुर में सप्ताह भर के मुक्काम के बाद वे 21 जुलाई को वापस लौटेंगे. इसके बाद 22 जुलाई को दहिहांडी व महाप्रसाद होगा.

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