चुनाव लडने के इच्छुकों का इंतजार होता जा रहा लंबा
अमरावती/दि.11 – मिनी मंत्रालय के तौर पर पहचान रखने वाली जिला परिषद का कार्यकाल खत्म हुए अब करीब सवा साल का समय पूरा हो चुका है. इसके साथ ही पंचायत समिति एवं अन्य स्थानीय स्वायत्त निकायों का कार्यकाल भी खत्म हो गया है, लेकिन अब भी चुनाव करवाने के लिहाज से कहीं पर भी कोई हलचलें दिखाई नहीं दे रही. गट व गण की संख्या बढाने, प्रभाग रचना का का परिसीमन करने और ओबीसी आरक्षण देने अथवा नहीं देने जैसे वजहों की आड लेते हुए एक तरह से चुनावों को आगे टाला जा रहा है. जबकि अब धीरे-धीरे वर्ष 2024 में होने वाली संसदीय आम चुनाव का समय भी नजदीक आता जा रहा है. ऐसे में राजनीतिक जानकार अब यह मानकर चल रहे है कि, लोकसभा चुनाव के बाद ही जिला परिषद व पंचायत समिति सहित सभी स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव होंगे.
बता दें कि, 9 मार्च 2022 को अमरावती जिला परिषद तथा 13 मार्च 2022 को जिले की 11 पंचायत समितियों का कार्यकाल खत्म हुआ था. जिसके बाद जिला परिषद सहित सभी पंचायत समितियों में प्रशासक राज शुरु हुआ था. जिसके तहत जिला परिषद में सीईओ व पंचायत समिति में बीडीओ की प्रशासक के तौर पर नियुक्ति की गई थी और आज सवा साल बाद भी सभी स्थानों पर प्रशासक राज भी चल रहा है. जिसकी वजह से सर्वसामान्यों के काम होने में काफी समस्याओं व दिक्कतों का अडंगा दिखाई दे रहा है. जानकारी के मुताबिक दलित बस्ती योजना, 15 वे वित्त आयोग तथा अन्य योजनाओं के तहत करोडों रुपयों के काम अधिकारियों व ठेकेदारों के आपसी ‘अर्थपूर्ण’ संबंधों के चलते कम गुणवत्ता वाले हो रहे है. साथ ही इसे लेकर सर्वसामान्यों द्बारा की जाने वाली शिकायतों को अधिकारियों द्बारा कचरे की टोकरी दिखाने का काम हो रहा है.
बता दें कि, राज्य के पूर्ववर्ती महाविकास आघाडी सरकार ने गट व गण की संख्या बढाने के साथ ही प्रभाग रचना का कार्यक्रम भी घोषित किया था. लेकिन जून 2022 में शिवसेना में फूट पडने के बाद उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई और उसके बाद राज्य में भाजपा व शिंदे गुट की सरकार आयी. जिसने महाविकास आघाडी सरकार के अधिकांश निर्णयों को रद्द कर दिया. जिसके चलते नये सिरे से तैयार की गई गट व गण रचना से संबंधित निर्णय को भी रद्द कर दिया गया. जिसके चलते चुनाव लटक गए. इसके बाद बारिश के मौसम को देखते हुए जिप व पंस के चुनाव को और भी आगे टाल दिया गया. वहीं अब माना जा रहा है कि, आगामी लोकसभा चुनाव के बाद ही स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में चुनाव किए जाएंगे.
* राजनीतिक उठापटक में लटके चुनाव
राज्य में हुए सत्ता परिवर्तन और इसके लिए हुए राजनीतिक नाट्यक्रम को पूरे राज्य ने देखा है. शिवसेना ने दो फाड होने के बाद पार्टी के नाम व चुनाव चिन्ह पर दावे को लेकर शिंदे गुट व ठाकरे गुट के बीच हुए विवाद, साथ ही शिवसेना का नाम और पार्टी का चुनाव चिन्ह धनुष्यबाण शिंदे गुट को मिल जाने के चलते आहत हुए कट्टर शिवसैनिकों के गुस्से को देखते हुए भाजपा व शिंदे गुट द्बारा फिलहाल किसी भी तरह का चुनाव करवाने से बचा जा रहा है. यदि आज चुनाव करवाया जाता है और जिला परिषद व पंचायत समितियां अगर महाविकास आघाडी के कब्जे में जाती है, तो मविआ के जनप्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के समय अपने प्रत्याशी की जीत हेतु पूरी जान लगा देंगे. ऐसे में इसका लोकसभा चुनाव पर बेहद विपरीत परिणाम पडेगा. इस डर से भाजपा व शिंदे गुट बुरी तरह जुझ रहे है. संभवत: यहीं वजह है कि, फिलहाल जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव को आगे टाला जा रहा है और अब यह भी माना जा रहा है कि, शायद लोकसभा के चुनाव पश्चात ही स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव करवाए जाएंगे.