अमरावती

भावनात्मक लोग रिश्ते निभाते हैं, उन्हें टूटने नहीं देते

शिवधारा झूलेलाल चालीहा महोत्सव में संत संतोष महाराज का कथन

अमरावती/दि.2-भावनात्मक, व्यवहारिक व स्वार्थी यह तीन प्रकार के लोग होते हैं. स्थानीय सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में जारी शिवधारा झूलेलाल चालीहा महोत्सव के 17 वें दिन पर प. पू. संत डॉ.संतोष देव जी महाराज ने अपनी वाणी में फरमाया कि तीन प्रकार के लोग संसार में होते हैं. पहला भावनात्मक- भावनात्मक लोगों में ही अक्सर देखा जाता है कि वे रिश्ते निभाते हैं, टूटने से बचाते हैं और यहां तक टूटने भी नहीं देते. आध्यात्मिक जगत में भी उन्नति यही करते हैं, दो टूटे हुए रिश्तों को भी मिलाने, बनाने का प्रयास करते हैं और यहां तक की किसी भी घर, संस्था, समाज, देश निर्माण के मूल में यही लोग रहते हैं. जबकि संसार इनको नासमझ, पागल, नाकारा समझता है और इस प्रकार के लोगों के लिए मानसिकता रखते हैं कि यह कभी भी उन्नति नहीं कर पाएंगे, जबकि उदाहरणार्थ हमारी माताजी हैं, जिनके होने पर ही घर का वातावरण अच्छा बना रहता है. दूसरा व्यवहारिक- ऐेसे लोग संसार में तो उन्नति करेंगे, लेकिन कहीं तो भी आध्यात्मिकता की प्रगति में बाधा इनका स्वभाव ही होता है एवं यह अपने नज़रिए से संसार को देखते हैं, अपने मापदंड के अनुसार ही संसार को जांचते हैं और अपनी सोच के हिसाब से ही सबको चलाना चाहते हैं. जबकि इसके परिणाम रूप में कभी सफल होते हैं कभी असफल भी होते रहते हैं. तीसरा स्वार्थी- कुछ स्वार्थी स्वभाव के लोग संसार में दिखाई देते हैं, जो हर रिश्ते, हर व्यवहार, हर कार्य को केवल स्वार्थ की दृष्टि से देखते हैं, हो सकता है यह संसार में उन्नति कर जाएं, पर जीवन के कहीं तो भी एक पड़ाव पर इनको अकेलापन, खोखलापन, अधूरापन लगता है और यह अध्यात्मिकता में, रिश्तो में कभी भी सफल नहीं हो पाते.
इसीलिए हमारे जीवन में भावनाओं का होना आवश्यक है, क्योंकि अध्यात्मिकता हो या संसार हो, जिन्होंने कुछ विशेष किया है, वह अक्सर भावनात्मक लोग होते हैं, उदाहरणार्थ साधु-संत जैसेः भगवान बुद्ध ने अपने राज्य तक को छोड़ा था, भगवान महावीर जी ने भी अपना राज्य तक त्यागा था, ऐसे ही 1008 सतगुरु स्वामी शिवभजन जी महाराज जब केवल 17 साल की आयु में अपने गुरुवर को समर्पित हुए, जबकि बहुत धनवान, सुखी एवं समृद्ध परिवार से थे, जब एक बार गुरु आश्रम में आ गए तब लौट कर कभी सुखों की ओर नहीं देखा. संत तुकाराम जी के पास शिवाजी महाराज जैसी हस्ती सेवा पूछने के लिए आई थी, तब संत तुकाराम जी ने कहा था आप मुझे वचन दो आज के बाद यह पूछने के लिए आप कभी नहीं आऐंगे, बस मुझे आपसे यही सेवा चाहिए. इस पर गांव वालों ने संत तुकाराम जी महाराज को नासमझ तक कहा था, परंतु हम सब जानते हैं जो भावनात्मक सेवा कार्य में लगे रहते हैं, जैसे महात्मा गांधी जी ने भी बड़ी-बड़ी उपाधियां छोड़ीं, केवल मेरा भारत आजा़द हो, यह सोच रखी थी और सफलता भी पाई, यह सब परिणाम है भावनात्मक स्वभाव का होना. इसीलिए अपनी भावनाओं को कम होने नहीं देना चाहिए, क्योंकि मानवता का आधार भी यही है, धर्म का आधार भी यही है और इससे ही विश्व एकजुट होकर बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान कर सकता है, इसके विपरीत जो केवल व्यवहारिक या स्वार्थी सोच वाले हैं, एक तो खुद वह कभी संतुष्ट व खुश नहीं रह पाते और ना ही उनसे दूसरों को कोई लाभ पहुंचता है, यहां तक कि उनको सुकून भरी नींद तक नहीं आती. इसीलिए हम सबको इन तीन प्रकार के सोच वालों पर चिंतन करना है, अधिकतर अपने स्वभाव में भावनाएं हो, दुनियादारी में व्यवहार हो और कुछ हद तक स्वार्थ हो, ना कि केवल स्वार्थ ही स्वभाव में हो, क्योंकि अंततः स्वार्थी एवं व्यवहारिक सोच वाले जीत कर भी अंत में सब हार जाते हैं.
टिपः बुधवार के दिन विशेष रूप से गाय और बैल को पालक या हरी घास खिलाने से शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट दूर होते हैं.

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