अमरावती

दीपाली के अंतिम संस्कार से पहले ही उनका कार्यभार सौंपा दुसरे को

एम. एस. रेड्डी का ऐसा भी कारनामा

  • खुद का तबादला होने के बाद जारी किया आदेश

  • हरिसाल वन परिक्षेत्र में हैं कई गहरे राज

अमरावती/दि.8 – मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के हरिसाल की वन परिक्षेत्र अधिकारी दीपाली चव्हाण ने विगत 25 मार्च को रात 8 बजे अपने सरकारी आवास पर अपनी सरकारी पिस्तौल से खुद पर गोली चलाते हुए आत्महत्या की थी. दीपाली के पार्थिव शरीर पर अंतिम संस्कार होने से पहले ही उनका पदभार किसी अन्य को सौंपे जाने की सनसनीखेज जानकारी सामने आयी है. ऐसे में निलंबित अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक एम. एस. रेड्डी किस हद तक असंवेदनशिल व कू्रर मनोवृत्ति के है, यह स्पष्ट होता है.
बता दें कि, दीपाली आत्महत्या मामले में गुगामल वन्यजीव विभाग के उप वनसंरक्षक विनोद शिवकुमार को निलंबित किया जा चुका है और उसके खिलाफ भादंवि की धारा 306 के तहत अपराध दर्ज किया गया है. साथ ही इस समय विनोद शिवकुमार को न्यायिक हिरासत के तहत जेल में रखा गया है. किंतु दीपाली की मौत के लिए एम. एस. रेड्डी भी जिम्मेदार रहने के चलते राज्य के वन मंत्रालय ने रेड्डी को नागपुर के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन बल प्रमुख) के कार्यालय में 26 मार्च को हाजीर रहने का आदेश जारी करते हुए उनका तबादला कर दिया. किंतु तबादले का आदेश जारी होने के बावजूद रेड्डी ने 26 मार्च को हरिसाल के आरएफओ का कार्यभार विशेष व्याघ्र संरक्षण दल के आरएफओ पी. एन. ठाकरे के पास सौंपा. दीपाली चव्हाण की मौत के पश्चात महज 16 घंटे के भीतर किसी अन्य अधिकारी को आरएफओ का पदभार सौंपने की जल्दबाजी क्यों की गई. यह समझ से परे है. उल्लेखनीय है कि, रेड्डी ने जब दीपाली चव्हाण के स्थान पर हरिसाल के आरएफओ का पदभार ठाकरे नामक अधिकारी को सौंपा, उस समय तक दीपाली चव्हाण के पार्थिव का अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ था. ऐसे में रेड्डी द्वारा ठाकरे को जल्दबाजी में पदभार सौंपे जाने के पीछे कुछ गहरा राज होने की बात कही जा रही है. जहां एक ओर दीपाली चव्हाण की आत्महत्या के बाद उन्हें इन्साफ दिलाने हेतु 26 मार्च को सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों, वन अधिकारियों, वन कर्मचारियों तथा बेलदार समाज की ओर से आवाज उठायी जा रही थी. ठीक उसी समय रेड्डी ने अपनी संवेदनहिनता का परिचय देते हुए अपने तबादलेवाले दिन हरिसाल के आरएफओ का पदभार किसी अन्य अधिकारी को सौंपा, जबकि 26 मार्च को रेड्डी के पास अपर प्रधान मुख्य संरक्षक के तौर पर कोई आदेश जारी करने का अधिकार भी नहीं था.

रेड्डी ने जानबूझकर की अनदेखी

यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, दीपाली चव्हाण आत्महत्या मामले में तत्कालीन अपर मुख्य वन संरक्षक एम. एस. रेड्डी की अग्रीम जमानत याचिका खारिज करते हुए अचलपुर कोर्ट के न्या. एस. के. मुनगीनवार ने रेड्डी के कामों व भूमिका को लेकर गंभीर टिप्पणी की है. जिसके तहत अदालत ने कहा कि, दीपाली मामले के आरोपी विनोद शिवकुमार से संबंधित सभी शिकायतें रेड्डी तक पहुंच चुकी थी. किंतु रेड्डी ने विनोद शिवकुमार पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की और उसके व्यवहार को नियंत्रित भी नहीं किया. यह एक तरह से जानबूझकर की गई अनदेखी है. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि, दीपाली चव्हाण आत्महत्या मामले में रेड्डी द्वारा सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर की जा सकती है और सबूतों को प्रभावित किया जा सकता है. साथ ही रेड्डी की वजह से इस मामले की जांच में दिक्कतें भी पैदा हो सकती है. अत: उन्हें अग्रीम जमानत नहीं दी जा सकती. सर्वाधिक हैरत की बात यह है कि, अदालत द्वारा रेड्डी की अग्रीम जमानत खारिज कर दिये जाने के बावजूद पुलिस ने अब तक इस मामले में रेड्डी को जांच अथवा पूछताछ हेतु भी हिरासत में नहीं लिया है. जबकि रेड्डी को इस मामले में सहआरोपी बनाये जाने की जरूरत है. ऐसे में दीपाली चव्हाण के परिजनों द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि, पुलिस सहित वन विभाग के कुछ वरिष्ठाधिकारियों द्वारा रेड्डी को बचाने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा.

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