अमरावती

नेत्रदान करे हर एक व्यक्ति, बढ़ाएं विश्व की शक्ति

किसी की अंधेरी जिंदगी है आपके हाथों में...

अमरावती/दि.10-आज नेत्रदान पर विशेष
एक पल के लिए बिजली जाने पर होने वाला अंधेरे का एहसास व्यक्ति को परेशान कर देता है. ऐसे में जिनके जीवन में हर समय अंधकार है, उस व्यक्ति की मन:स्थिति क्या होती है, यह कहना मुश्किल है. ऐसे में आपका एक फैसला किसी की जिंदगी बदल सकता है. पिछले 10 वर्षों से ऐसे ही अंध व्यक्तियों के अंधेरे को दूर कर उनके जीवन में रोशनी लाने का प्रयास किया जा रहा है. हरीना फाउंडेशन के माध्यम से किए जा रहे इस प्रयासों के तहत अब तक करीब हजारों लोगों ने नेत्रदान प्रक्रिया में सहभाग लिया.
आंखों की रोशनी जाने के कई कारण हैं, लेकिन हमारा प्रयास ऐसे हजारों लोगों की जिंदगी में रोशनी भर सकता है. केवल आवश्यकता है सकारात्मक पहल की. पिछले कई वर्षों से इस अभियान से जुड़ने के बाद नेत्रहीन व्यक्ति के दर्द का एहसास हुआ. हरीना फाउंडेशन के कार्यकारी अध्यक्ष चंद्रकांत पोपट द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार आज भी भारत में मृत व्यक्ति के शरीर से छेड़छाड़ को लेकर परिवार की भावनाएं आहत होती हैं. हालांकि श्रीलंका में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसकी आंखों को दान किया जाता है. फलस्वरुप श्रीलंका केवल अपने यहां ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी नेत्रहीन व्यक्तियों को जीवन में रोशनी देने का प्रयास करता है. नेत्रदान के क्षेत्र में इस संदर्भ में किए जा रहे प्रयासों के चलते भारत में हालांकि इस अभियान को गति मिली है, लेकिन आज भी लोगों में जागरुकता का अभाव होने के कारण नेत्रदान के प्रति उदासीनता है. अगर भारत में होने वाली हर मौत पर नेत्रदान की प्रक्रिया चलाई जाए, तो कुछ ही दिनों में पूरे विश्व से अंधत्व का निवारण हो सकता है. जब श्रीलंका सरकार इस प्रकार कदम उठा सकती है, तो भारत सरकार ने भी इस संदर्भ में सोचना होगा. वरिष्ठों की जानकारी के अनुसार पूरी दुनिया के दृष्टिहीन जनसंख्या का 1/4 हिस्सा भारत में है, जिसमें से अधिकांश बच्चे हैं. नेत्रदान करने को लेकर 75 वर्ष तक का व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है. केवल एडस, कैन्सर जैसी बीमारी के पेशेंट नेत्रदान नहीं कर सकते, लेकिन चश्मा लगाने वाला या जिनका मोतियाबिंद का ऑपरेशन हुआ है, वो भी नेत्रदान कर सकते हैं.
* किस प्रकार होता है नेत्रदान
नेत्रदान की प्रक्रिया बहुत ही सरल है. व्यक्ति का नेत्रदान कराने की संकल्पना अगर परिजनों में हो तो मृत्यु के तुरंत बाद उसकी आंखों पर गीला कपड़ा तथा सिर के नीचे तकिया रख दें. साथ ही कक्ष में लगा पंखा व लाइट बंद कर दें तथा तत्काल हरीना नेत्रदान समिति से संपर्क करने पर कार्यकर्ता तथा डॉक्टरों की टीम कुछ ही समय में आपके घर पहुंच जाती है, व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद 6 से 8 घंटे के भीतर यह नेत्रदान की प्रक्रिया पूर्ण होना आवश्यक होती है. ऐसे में आपके घर आयी टीम केवल 15 से 20 मिनिट में नेत्रदान की प्रक्रिया पूर्ण कर देती है, जिससे उस मृत व्यक्ति की आंखें किसी दो नेत्रहीन को दृष्टि दे जाती है. नेत्रदान यानी मृत व्यक्ति के शरीर से आंखें निकालना नहीं, बल्कि उनकी आंखों में जो पुतलियां होती हैं, उसका कार्निया निकाला जाता है. साधे शब्दों में कहें तो आंखों का वह पर्दा निकालकर नेत्रदान प्रक्रिया पूर्ण होती है. आंखों से निकाला गया कार्निया 120 घंटों के भीतर जरूरतमंद व्यक्तियों को लगाया जाता है. जानकारी के अनुसार, दोबारा आंखों की रोशनी हसिल करने के लिए कॉर्नियल ट्रान्सप्लांट की जरूरत है. लेकिन दुर्भाग्य से केवल 10 प्रतिशत से कम लोगों को ही उसका लाभ मिलता है. अमरावती में प्रत्यारोपण सेंटर है जिला सामान्य अस्पताल में, जहां पर डॉ. पंकज लांडे, डॉ. प्रवीण व्यवहारे, डॉ. नवीन सोनी, डॉ. अतुल कढ़ाणे, डॉ. मनीष तोटे प्रत्यारोपण की प्रक्रिया को पूर्ण करते हैं.
इसके अलावा शहर में हरीना फाउंडेशन संस्था के माध्यम से सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं की फौज है. इतना ही नहीं तो अब मोर्शी, परतवाड़ा तथा एक माह पहले दर्यापुर में भी हरीना फाउंडेशन संस्था की शाखा शुरू की गई है. जिससे ग्रामीण क्षेत्र में भी नेत्रदान का महत्व बढ़ा है. दानदाताओं का योगदान पोपट परिवार की ओर से नेत्रदान कोलेकर सहायता की गई है.
‘मरता है शरीर, अमर है आत्मा.
नेत्रदान से मिलता स्वतंत्र परमात्मा.
– चंद्रकांत पोपट,
अमरावती

 

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