अमरावती

सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाला हर सातवां बच्चा प्री-मैच्योर

कहीं माताओं की लापरवाही जिम्मेदार

नवजात होते बीमारियों से ग्रस्त
नागपुर-दि.7 शहर के सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाला हर सातवां बच्चा प्री-मैच्योर होता है. इसके पीछे कई कारण होेते हैं. प्री-मैच्योर बच्चे जन्म के साथ कई बीमारियाेंं से ग्रस्त होते हैं. कुछ बच्चों की बीमारियां समय के साथ सुधर जाती हैं तो कुछ को आजीवन बीमारियों के साथ जीना पड़ता है. अकेले मेडिकल में हर रोज 35 बच्चे जन्म लेते हैं. इनमें 20 फीसदी बच्चे प्री-मैच्योर या लो बर्थ वेट होते हैं.
* इन कारणों से होते हैं प्री-म्यौचर बच्चे
गर्भवती महिला की आयु कम हो या आयु 35 से अधिक होने पर प्री-मैच्योर डिलीवरी की आशंका होती है. गर्भवती महिला को पहले से ब्लड प्रेशर, हार्ट की समस्या, मधुमेह, किडनी या लीवर डिसिस की कोई समस्या हो तो प्री-मैच्योर डिलीवरी की ज्यादा संभावना बनती है. विशेषज्ञों के अनुसार महिला के गर्भवती होने के दौरान शराब सेवन, धूम्रपान या नशीली सामग्री के सेवन से भी प्री-मैच्योर बच्चों का जन्म होता है. यदि पहले भी प्री-टर्म केस हुई हो तो दोबारा भी यह संभावना बनी रहती है. इसके पीछे और भी दूसरे कारण हैं. गर्भवती महिलाओं की लाइफ स्टाइल में बदलाव, खान-पान का ध्यान न रखना, स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने से भी प्री-मैच्योर बेबी का जन्म होता है. विशेषज्ञों के अनुसार, प्री-मैच्योर बेबी होने के लिए औसतन माताएं अधिक जिम्मेदार होती हैं. सरकारी अस्पताल में आने वाली गर्भवती महिलाओं की लापरवाही में नियमित रुटिन चेकअप न करवाना मुख्य कारण है. इसलिए सरकारी अस्पतालों में हर सातवां बच्चा प्री-मैच्योर होता है. मेडिकल में हर रोज औसत 35, मेयो में 40 और डागा में 50 बच्चे रोज जन्म लेते हैं. इसमें से 20 फीसदी यानि 25 बच्चे प्री-मैच्योर होते हैं.
* बच्चों में होती है बीमारियां
प्री-मैच्योर बच्चों को कई बीमारियों से जूझना पड़ता है. उन्हें पीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविी डिसऑर्डर) रोग होने का खतरा अधिक होता है. इस बीमारी में चीजों को पहचानने, निर्णय लेने, ध्यान केंद्रित करने और अन्य व्यवहारिक समस्याओं से गुजरना पड़ता है. इन बच्चों के हार्ट चेंबर छोटे रहते हैं. उनमें हाई ब्लड प्रेशर, हृदय की मांसपेशियों का अधूरा विकास आदि देखने को मिलता है. उनके हार्ट का विकास धीमी गति से होता है. कई बच्चों को दिमागी बीमारी, सीखने व समझने में कठिनाई आती है. इनमें सांस संबंधी बीमारियां होने से दूसरे रोग होने की संभावना अधिक बनी रहती है. प्री-टर्म बच्चे आकार में छोटे, उनके सिर बड़े होते हैं. संपूर्ण शारीरिक विकास में समस्याएं आती है. उन्हें नाक व आंख से जुड़ी विविध समस्याएं होती है.
डॉक्टरों के अनुसार, वर्तमान में जीवनशैली बदल चुकी है. महिलाएं खान-पान समेत स्वस्थ शरीर रखने पर ध्यान नहीं देती. सोने-उठने से लेकर किसी भी क्रियाकलाप की समय सारिणी नहीं है. इसका असर गर्भवती महिलाओं पर होता है. जबकि गर्भवती महिलाओं को हर 4 घंटे में कुछ खाना चाहिए. वजन बढ़ने की चिंता नहीं करनी चाहिए. शराब का सेवन व धुम्रपान नहीं करना चाहिए. गर्म व मसालेदार चीजें नहीं खानी चाहिए. हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए. इसके साथ ही नियमित जांच करवानी चाहिए. अपने शरीर व गर्भस्थ शिशु को स्वस्थ रखने के लिए समय-समय पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, ताकि डिलीवरी के समय कोई समस्या न हो.

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