अमरावती

बच्चों में बढ रहा डायबिटीज का प्रमाण, सतर्कता जरुरी

अमरावती /दि.26– मौजूदा दौर में तेजी से बदलती जीवनशैली के चलते पैदा होने वाली स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं में डायबिटीज एक प्रमुख समस्या है. जिसका प्रमाण दिनोंदिन बढ रहा है. वहीं अब कम उम्र वाले बच्चों में भी डायबिटीज की बीमारी पाये जाने के मामले तेजी से सामने आ रहे है. अमूमन जब छोटे बच्चे खेलने-कूदने लगते है, तब उनका वजन कम होना बेहद सामान्य बात होती है. परंतु यदि बच्चों का वजन काफी अधिक प्रमाण में कम हो रहा है, तो यह कई बार डायबिटीज का भी लक्षण हो सकता है. इसके साथ ही यदि बच्चे को बार-बार पेशाब बाती है, तो इसे भी डायबिटीज का एक लक्षण माना जाना चाहिए और ऐसे लक्षण दिखाई देते ही समय रहते डॉक्टर की सलाह के अनुसार बच्चे का इलाज करवाना चाहिए.

* बच्चों में डायबिटीज बढने की वजहें
महिलाओं द्वारा गर्भवती रहते समय गलत आहार लिये जाने की वजह से ऑटो इम्यून रिस्पॉन्स हो सकता है. जिसके चलते कम उम्र वाले बच्चों के शरीर में इन्सूलिन ही तैयार नहीं होता. जिसकी वजह से बच्चों में टी-2 डायबिटीज का प्रमाण काफी बडे पैमाने पर दिखाई देता है.
– छोटी उम्र में प्रीजरवेटीवयुक्त पदार्थों, पैक किये गये पदार्थों, प्रक्रिया किये गये पदार्थों व जंक फूड जैसे पदार्थों का बडे पैमाने पर सेवन करने की वजह से शरीर में ऑटो इम्यून रिस्पॉन्स ट्रिगर होकर पचनक्रिया बिगड सकती है.

* बच्चों में मधुमेह के लक्षण
तय प्रमाण से अधिक वजन घटना या बढना, बार-बार पेशाब आना, गर्दन अथवा बगल के आसपास कालेपन का बढना, पेट बढना आदि को बच्चों में डायबिटीज का लक्षण कहा जा सकता है. जिनके दिखाई देते ही तुरंत विशेषज्ञ डॉक्टरों से बच्चों की स्वास्थ्य जांच कराई जानी चाहिए.

* कौनसी सतर्कता जरुरी?
आहार में बडे पैमाने पर हरी सागसब्जियों का समावेश किया जाना चाहिए तथा भोजन का समय भी निश्चित करना चाहिए. इसके अलावा नियमित तौर पर व्यायाम करने के साथ ही नियमित रुप से रक्तशर्करा के स्तर की जांच करनी चाहिए.

* इन दिनों अनियमित व अनियंत्रित हो चली जीवनशैली की वजह से बडी आयु वाले लोगों के साथ-साथ छोटी उम्र वाले बच्चे भी मधुमेह यानि डायबिटीज की बीमारी की चपेट में आ रहे है. छोटे बच्चे में बढ रहे मोटापे, दैनंदीन आहार की गलत आदते व परिवार में आनुवांशिक तौर पर रहने वाले मधुमेह के लक्षण आदि वजहों के चलते किशोरवयीन बच्चों में टाईप-2 डायबिटीज का प्रमाण भी बढ रहा है, ऐसे में अभिभावकों ने अपने बच्चों की पढाई लिखाई के साथ ही उन्हें खेलने कूदने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए तथा बच्चों की दैनंदिन जीवन प्रणाली मेें बदलाव लाना चाहिए.
– डॉ. संदीप दानखेडे,
बालरोग विशेषज्ञ.

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