अमरावती

चिखलदरा के पर्यटन रास्तों पर ‘मास्टिक अस्फाल्ट’ का प्रयोग

सार्वजनिक लोकनिर्माण विभाग व्दारा मुंबई का प्रयोग मेलघाट में

रास्तों का जीवनकाल बढेगा, मोड वाले रास्तों पर हादसे टलेंगे
अमरावती/ दि.29 – मेलघाट में बडे पैमाने पर बारिश होती है. चेरापुंजी की याद दिलाने वाली इस बारिश के दौरान डामरीकरण वाले रास्तों पर बडे-बडे गड्ढे बन जाते है. साथ ही पहाडी और घुमावदार रास्तों पर कई बार सडक हादसे वाली स्थिति बनती है. इन तमाम बातों के मद्देनजर मुंबई सहित बडे शहरों में रास्तों पर प्रयुक्त होने वाले ‘मास्टिक अस्फाल्ट’ का प्रयोग पहली बार मेलघाट में सार्वजनिक लोकनिर्माण विभाग व्दारा किया जा रहा है. इस प्रयोग के चलते जहां एक ओर सडकों का निर्माण कार्य लंबे समय तक टिका रहेगा. साथ ही इससे सडक हादसों को भी टाला जा सकेगा.
बता दे कि परतवाडा से चिखलदरा तथा चिखलदरा से घटांग के बीच रास्ते को हाईब्रिड एन्यूटी अंतर्गत वैशिष्टपूर्ण बनाया गया है. इन रास्तों के मोड वाले स्थानों पर जहां डामर की सतह बार-बार खुल जाती है, वहां पर ‘मास्टिक अस्फाल्ट’ की वैशिष्टपूर्ण प्रक्रिया की जाती है. इसके तहत विशिष्ट प्रकार के डांबर और चुने का मिश्रण करते हुए उसे प्रत्यक्ष जगह पर रास्ते के स्तर नुसार फैलाकर बिछाया जाता. जिसके चलते रास्ते के वेअरिंग कोड की घनता और आयुर्मान बढ जाते है. साथ ही वाहनों के फिसलकर गिरने की संभावना भी खत्म हो जाती है. इसके अलावा इन रास्तों पर सुरक्षा के लिहाज से लोहे की पट्टियां, सुरक्षा दीवार, पट्टे, कैट आय, डेलिनेटर्स आदि विविध उपायों पर अमल किया गया. जिनके जरिये इस रास्ते को पर्यटन की दृष्टि से सुरक्षित व सुविधापूर्ण बनाये गए.
परतवाडा व चिखलदरा तथा चिखलदरा व घटांग के बीच सडक से होने वाली आवाजाही पूरी तरह से सुरक्षित हो, इस उम्मीद के साथ दोनों ओर के पहाडी व घुमावदार रास्तों को सुरक्षित व सुंदर बनाया गया. इसके लिए सार्वजनिक लोकनिर्माण विभाग के मुख्य अभियंता गिरीश जोशी, अधिक्षक अभियंता अरुंधती शर्मा, अचलपुर के कार्यकारी अभियंता कुणाल पिंजरकर, चिखलदरा के उपविभागीय अभियंता मिलिंद पाठणकर, शाखा अभियंता हेमकांत पठारे सहित उनकी टीम ने विशेष परिश्रम किया है.
व्याघ्र प्रकल्प से भी निकाली अनुमति
मेलघाट व्याघ प्रकल्प का दायरा बढने के चलते अंतर्गत रास्तों का काम करने हेतु वन विभाग से अनुमति प्राप्त्ा करना सबसे बडी दिक्कत थी. लेकिन इसे भी पार करते हुए सभी कामों को पूरा किया गया. क्योंकि विदर्भ का नंदनवन कहे जाते चिखलदरा में लाखों पर्यटकों का आना-जाना चलता है. परंतु यहां आने के बाद अच्छे रास्तों के अभाव को देखकर पर्यटक निराश व नाराज होते है.
ऐसा है नया प्रयोग
आयएस 702-1988 के अनुसार बनाए गए 85/25 दर्जे वाले डामर तथा 7020 मायक्रॉन वाले बारिक चुरे को प्रत्यक्ष साइड पर एकसाथ मिलाया जाता है और यह मिक्सिंग करने के लिए साइड पर ही विशिष्ठ यंत्रणा स्थापित की जाती है. जिसके बाद इस मिश्रण को प्रत्यक्ष साइड पर रास्ते के स्तर नुसार बिछाकर फैलाया जाता है. जिसे रास्ते के वेअरिंग कोड व वेअरिेंग कोड की घनता व आयुर्मान बढ जाते है. इसी पध्दति से मुंबई शहर सहित कई बडे शहरों में रास्तों का काम किया जाता है.

मेलघाट में होने वाली मूसलाधार बारिश की वजह से रास्ते बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाते है. ऐसे में रास्ते लंबे समय तक टीके रहे और पर्यटकों सहित क्षेत्र के नागरिकों का हादसों से बचाव हो, इस बात के मद्देनजर मुुंबई सहित अन्य स्थानों पर की जाने वाली प्रक्रिया पहली बार चिखलदरा मार्ग पर की गई है. जिससे अब चिखलदरा तक जाने वाले दोनों ओर के पहाडी व घुमावदार रास्ते पूरी तरह से सुरक्षित कहे जा सकते है.
– गिरीश जोशी, मुख्य अभियंता, सार्वजनिक लोकनिर्माण विभाग

Related Articles

Back to top button