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प्रभाग तथा गट व गण रचना की ओर टिकी निगाहें

स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव को लेकर तेज हुई चर्चाएं

अमरावती/दि.28 – लोकसभा व विधानसभा के चुनाव के बाद अब आगामी 3 से 4 माह के भीतर स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव होने की उम्मीद जतायी जा रही है. लेकिन चुनाव होने से पहले सरकार द्वारा प्रभाग रचना सहित गट व गण रचना को लेकर कोई नई नीति अमल में लायी जाती है, या पुराने परिसीमन को ही कायम रखा जाता है. इस बात को लेकर चुनाव लडने के इच्छुकों सहित सभी राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों में अच्छी खासी उत्सुकता देखी जा रही है. साथ ही साथ स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव में विविध राजनीतिक दलों सहित महायुति व महाविकास आघाडी में की क्या भूमिका रहेगी. इसे लेकर भी जोरदार चर्चाएं चल रही है.
बता दें कि, जिले में स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव विगत करीब 3 वर्ष से प्रलंबित पडे है और चुनाव लडने की प्रतीक्षा करने वाले लोग चुनाव होने का इंतजार करते-करते अब थक चुके है. क्योंकि स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव हर बार किसी न किसी वजह को लेकर टल जाते है. कभी परिसीमन को लेकर सरकार की नीति बदल जाती है, तो कभी चुनाव की प्रक्रिया अथवा आरक्षण पर आक्षेप उठाते हुए कोई अदालत में चला जाता है. जिसकी वजह से महानगरपालिका, नगरपालिका, जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनाव अधर में लटके पडे है. जिला परिषद के गटों की संख्या महाविकास आघाडी सरकार के कार्यकाल दौरान बढाई गई थी. वर्ष 2017 के चुनाव दौरान अमरावती जिला परिषद में 59 तथा जिले की पंचायत समितियों में 118 सदस्य चुने गये थे. वहीं इसके बाद मविआ सरकार ने जिप की सदस्य संख्या 66 व पंचायत समितियों की सदस्य संख्या 132 तय की थी. इसी दौरान राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और सीएम शिंदे की सरकार ने एक बार फिर नीति में बदलाव करते हुए पहले वाली स्थिति को कायम रखा इसी तरह नगरपालिकाओं में भी दो बार आरक्षण का ड्रा हुआ. इसमें ओबीसी आरक्षण के प्रतिशत को लेकर विवाद होने के चलते मामला अदालत में जाने से मसला जस का तस अधर में लटका रहा.
वहीं अब राज्य में नई सरकार का गठन हुआ है. ऐसे में स्थानीय स्वायत्त निकायोंके चुनाव हेतु नई नीति बनाई जाती है, या फिर पुरानी नीतियों के अनुसार ही चुनाव कराये जाते है. इसे लेकर कई तरह तर्क-वितर्क लगाये जा रहे है. महायुति सरकार ने यदि नीतियों में और भी कुछ बदलाव किया, तो प्रशासन को उसके अनुसार कार्यवाही करनी होगी. हालांकि स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनावी गणित अदालती फैसले के बाद ही स्पष्ट होंगे.

* कितने सदस्यीय रहेंगे प्रभाग?
सरकार बदलते ही प्रभाग रचना और प्रभागों की सदस्य संख्या को लेकर नीति बदलती है, ऐसा अब तक का अनुभव रहा है. ऐसे में अब जहां एक ओर इस बात को लेकर तर्क-वितर्क लगाये जा रहे है कि, महानगरपालिका व नगरपालिका में सदस्य संख्या कितनी रहेगी, वहीं दूसरी ओर इस बात को लेकर भी उत्सुकता देखी जा रही है कि, प्रभाग रचना कितने सदस्यीय रहेगी. इससे पहले एक सदस्यीय वार्ड पद्धति से चुनाव हुआ करते थे. वहीं आगे चलकर बहुसदस्यीय प्रभाग पद्धति पर अमल किया जाने लगा. जिसके तहत दो सदस्यीय, तीन सदस्यीय व चार सदस्यीय प्रभाग रचना को लेकर प्रयोग किये जा चुके है.

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