काल्पनिक ध्यान नहीं वरन् जीवंत सत्य की अनुभूति कराता है सहजयोग
अमरावती/ दि. २९– परमात्मा के नाम पर कल्पनाएं सिखाई जाती हैं. जबकि, सत्य के दर्शन कल्पनाओं से नहीं, वरन सब कल्पनाएं छोड़ देने पर ही होते हैं. जो कल्पना में है, वह स्वप्न में है. वह देख रहा है, जो कि वह देखना चाहता है, वह नहीं, जो कि वास्तव में है. एक सूफी साधु को किसी विद्यालय में ले जाया गया. उस विद्यालय में बालकों को एकाग्रता का अभ्यास कराया जाता था. करीब दस बारह बच्चे उसके सामने लाए गए और उनमें से प्रत्येक को एक खाली सफेद पर्दे पर ध्यान एकाग्र करने को कहा गया. उन्हें कहा गया कि मन की सारी शक्ति को इकट्ठा कर वे देखें कि उन्हें वहां क्या दिखाई पड़ता है. एक छोटा सा बच्चा देखता रहा और फिर बोला गुलाब का फूल, किसी दूसरे ने कुछ और कहा, तीसरे ने कुछ और. वे अपनी ही कल्पनाओं को देख रहे थे कल्पनाओं के ऊपर जो नहीं उठता, वह असल में अप्रौढ़ ही बना रहता है प्रौढ़ता, कल्पना – मुक्त दर्शन से ही उपलब्ध होती है. फिर, एक बच्चे ने बहुत देर देखने के बाद कहा, कुछ भी नहीं. मुझे तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है. उसे फिर देखने को कहा गया. किंतु, वह पुन: बोला, क्षमा करें, कुछ है ही नहीं, तो क्या देखूं ! उसके अध्यापकों ने उसे निराशा से दूर हटा दिया और कहा कि उसमें एकाग्रता की शक्ति नहीं है वे उनसे प्रसन्न थे, जिन्हें कुछ दिखाई पड़ रहा था. जबकि जो उनकी द़ृष्टि में असफल था,वही सत्य के ज्यादा निकट था. सत्य मनुष्य की कल्पना नहीं है, न ही परमात्मा. कल्पना से जो देखता है, वह असत्य देखता है. कल्पना का नाम ध्यान नहीं है. वह तो ध्यान के बिलकुल ही विपरीत स्थिति है. कल्पना जहां शून्य होती है, ध्यान वहीं प्रारंभ होता है.
इस योग की प्रक्रिया में ध्यान से जुड़ने की वास्तविक युक्ति सहज योग द्वारा अत्यंत सरलता से नि:शुल्क सिखाई जाती रही है। उपरोक्त बताई गई जानकारी का विस्तृत अध्ययन करने के लिए यदि साधक कोई भी प्रश्न अपने मन में रखता है तो वह सहजयोगा की वेबसाईट पर देख सकते हैं।