* यांत्रिक खेती पर किसानों का जोर
नांदगांव खंडेश्वर/ दि. 10- रोजगार की उच्च स्थिति के कारण कृषि तीसरे स्थान पर आ गई है. महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है, लिहाजा नांदगांव खंडेश्वर तहसील के ग्रामीण इलाकों में यह तस्वीर देखने को मिल रही है कि साल भर फसल तो दूर खेती करना भी मुश्किल होता जा रहा है. आधुनिक युग में खेती के व्यवसाय में एक जोड़ी बैल रखना अप्रचलित होता जा रहा है. क्योंकि किसान बैलों के लिए चारा नहीं खरीद पा रहे हैं.
बैलों को पालने वाले किसानों की संख्या दिन-ब-दिन कम होती जा रही है. कड़बा, कुटार और पेंडी के दाम आसमान छू गए हैं. इसलिए देखा जा रहा है कि किसान यंत्रीकृत कृषि को ही तरजीह दे रहे हैं. किसान खेत, खेती और परिवार की गाड़ी चलाने में नए-नए प्रयोग कर रहा है. कुछ किसानों के खेतों में दिखने वाले बैलों की की जगह अब ट्रैक्टर जैसी मशीनों ने ले ली है और पारंपरिक तरीके से जुताई, बुवाई, हैरोइंग, छिड़काव और अन्य कृषि जुताई के काम किए जाने लगे हैं. मुंडवाड़ा के किसान अनिल खेडकर ने कहा कि फसलों का जितना भुगतान होना चाहिए, उतना नहीं हो रहा है, इसलिए वे दिन-ब-दिन खेती नहीं कर पा रहे हैं. इसके कारण ट्रैक्टर मशीनीकृत कृषि का केंद्र बिंदु बनते जा रहे हैं. दस-बारह साल पहले ट्रैक्टरों का उपयोग प्रतिबंधित था, लेकिन अब कुछ किसानों ने पारंपरिक खेती को तोड़ते हुए आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
डीजल के आसमान छूते दामों से ट्रैक्टर का किराया बढ़ता जा रहा है. इसलिए खेती की लागत दिन-ब-दिन बढ़ने लगी है. खेती करते हुए हमें उधार मांग कर कृषि कार्य करना पड रहा है. किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार कम से कम कृषि कार्य के लिए कम कीमत पर डीजल मुहैया कराए.
केंद्र और राज्य सरकार की योजनाएं किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं. योजना का लाभ उठाकर किसान अब सब्सिडी पर ट्रैक्टर और विभिन्न उपकरण व उपकरण खरीद रहे हैं.
– पंकज मेटे, सरपंच,
किसानों को खेत जोतने से लेकर फसल कटने तक का पैसा खर्च करना पड़ रहा है. पूर्व-बुवाई खेती के लिए, किसानों को प्रत्येक फसल को तब तक जोतना, जुताई करना और बोना पड़ता है जब तक कि अधिक लागत न लगे. एक स्थिति ऐसी भी आती है कि लागत उत्पादन से अधिक हो जाती है क्योंकि फसल कटने के बाद सही कीमत नहीं मिल पाती है.
– अमोल तिड़के
किसान, खंडाला (खुर्द)