भाव नहीं मिलने से हल्दी उत्पादन करने से किसानों ने मुंह फेरा
शेंदुरजना में हल्दी का रंग पडा फीका

शेंदुरजनाघाट/दि. 19– शेंदुरजना घाट हल्दी के उत्पादन के लिए प्रसिध्द था. पीढियों से यहां हल्दी की फसल लेनेवाले किसान है. परिसर में कुछ वर्षो पहले हल्दी का बडी मात्रा में उत्पादन होता है. इस फसल की ओर लोग नगद फसल के रूप में देखते हैं. हल्दी खरीदी करने के लिए बाहर गांव से व्यापारी भी आते थे. अच्छा भाव मिल रहा था. किंतु आज किसानों ने हल्दी फसल की ओर मुुंह फेरा होने का चित्र दिखाई दे रहा है.
जानकारी के अनुसार 50 वर्ष पहले शेंदुरजना घाट से हर घर में हल्दी की फसल बडी मात्रा में ली जाती थी और इसी हल्दी से कुमकुम बनाने के कारखाने पूर्व के समय में शेंदुरजना घाट में थे, ऐसा कहा जाता है. पिछले कुछ वर्षो में हल्दी को भाव नहीं मिलने से और उत्पादन खर्च बढने से और आय मात्र कम होने लगी. इसी कारण शेंदुरजनाघाट की हल्दी का रंग फीका पडने लगा है, ऐसा दिखाई देता है.
फिलहाल हल्दी फसल खोदने का काम निपट गया है. खोदी हुई हल्दी उबालकर उसे सुखाना और सुखाकर उसे बिक्री के लिए तैयार करने के काम शुरू है. इस गांव में हल्दी बुआई करनेवाले किसान हैं.
किसान हल्दी का उत्पादन बडी मात्रा में लेते थे. किंतु जगह का अभाव और बाजार उपलब्ध न रहने से और हल्दी तैयार करने के लिए खर्चा बढ जाने से किसानों ने हल्दी की फसल लेना कम कर दिया है. क्योंकि उत्पादन खर्च की तुलना में हल्दी को मिलनेवाले भाव दिनों दिन कम होता गया. जिससे हल्दी का बुआई क्षेत्र काफी कम रहा है.
हल्दी की फसल की जहां बुआई करनी है, उस जगह अधिक मरम्मत कर उसे बुआई योग्य तैयार किया जाता है. फिर बारिश की प्रतीक्षा की जाती है. मृग नक्षत्र में संतोषजनक बारिश होने पर हल्दी बुआई के खेती में कुदल मारकर वहां हल्दी के बीज बोए जाते है. यह बोते समय इस वर्ष बोने पर उगा हुआ बीज आगामी वर्ष नहीं बोया जाता. अगर बीज नहीं उगा तो उसी जगह दूसरा बीज तैयार किया जाता है. यह हल्दी खोदते समय अलग निकल जाता है. जिससे किसान मोड करना कहते है. यह मोडा हुआ बीज जमीन में ही अलग जगह गढ्ढा खोदकर ढाक कर रखा जाता है. बारिश आने के बाद यह बीज निकालकर उसकी दुबारा बुआई की जाती है.