* इंधन सहित मजदूरी की दरें बढने से उत्पादन खर्च बढा
अमरावती/दि.26– केवल खेती-बाडी करते हुए उदरनिर्वाह करना अब कोई आसान बात नहीं रही. क्योंकि किसानों के पीछे संकटों का सिलसिला हाथ धोकर पडा है. बारिश, अतिवृष्टि व प्राकृतिक आपदा सहित मजदूरी की दरें बढ जाने की वजह से खेती में लगनेवाली लागत बढ गई है. इसमें भी अब काम जल्द से जल्द हो, इस हेतु यांत्रिकीकरण का खेती-बाडी में दखल शुरू हो गया है. जिससे मेहनत-मजदूरी वाले कामों पर होनेवाला खर्च और भी अधिक बढ गया है. ऐसे में मजदूर मिलते नहीं है और ट्रैक्टर का खर्च पुराता नहीं है वाली स्थिति बन गई है.
बता दें कि, खेती-बाडी में बुआई पूर्व मशागत से ही खर्च शुरू हो जाता है. पश्चात सीझन खत्म होते-होते हाथ में कुछ बचेगा अथवा नहीं, इसकी कोई निश्चित गारंटी अब नहीं बची है. खेती में उगाई गई उपज को बाजार में न्यूनतम गारंटी मूल्य मिलेगा ही, यह तय नहीं है. इस बार कपास व सोयाबीन को थोडे ठीकठाक दाम मिले, लेकिन मजदूरी सहित इंधन की दरें बढी रहने की वजह से उत्पादन खर्च भी नहीं निकला. ऐसे में कई किसान अब खेती-बाडी छोड देने की मानसिकता में है. क्योंकि खेती-बाडी से अब शाश्वत व निश्चित कमाई होने की कोई गारंटी नहीं है.
* ट्रैक्टर की दरें
काम प्रति एकड दरें
नांगरणी 2,000
रोटावेटर 1,000
सरी 800
मोगडणी 700
बुआई 800
वीपास 800
पंजी 700
* 300 रूपयों की मजदूरी पर भी नहीं मिल रहे मजदूर
खेतीहर मजदूरों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही है. ऐसे में इन दिनों खेती-बाडी के कामों के लिए मजदूर मिलना अपने आप में काफी बडी समस्या है. इस समय पुरूष मजदूरों को 300 रूपये और महिला मजदूरों को 200 रूपये की दैनिक मजदूरी दी जाती है. लेकिन इसके बावजूद खेती-बाडी के काम के लिए मजदूर नहीं मिलते. निर्माण कामों सहित अन्य कुछ स्थानोें पर 500 रूपये के मजदूरी दर रहने के चलते अब लोगबाग खेती-किसानी के कामों की मजदूरी नहीं करना चाहते.
* सालभर में ट्रैक्टर से काम हुआ दोगुना महंगा
इंधन की दरें बढते ही ट्रैक्टर से किये जानेवाले खेती-किसानी के दाम भी बढ जाते है. इस समय डीजल के दाम 100 रूपये के आसपास जा पहुंचे है. जिसके चलते ट्रैक्टर मालिकों ने खेती-किसानी के अलग-अलग कामों हेतु ली जानेवाली दरों को बढा दिया है.
* अल्प भूधारकों की बढी समस्या
अल्प भूधारक किसानों के पास जमीन कम रहने के चलते उनकी आय भी कम रहती है. ऐसी स्थिति में उनके लिए खेती-किसानी के कामों हेतु बैलजोडी को रखना या ट्रैक्टर खरीदना संभव नहीं होता. ऐसे में उन्हें अपने खेतों में बुआई-कटाई संबंधी कामों के लिए हमेशा ही दूसरों पर निर्भर रहना पडता है.