* 30 वर्ष पुराने घरकुल की जगह अब भी नहीं हुई नाम पर
* अधिकारियों ने आंदोलनकारियों को समझाना-बुझाना किया शुरु
अमरावती/दि.5– समिपस्थ नांदगांव खंडेश्वर तहसील अंतर्गत शिवणी रसुलापुर गांव के नागरिकों ने 30 वर्ष पहले मिले घरकुल की जगह के अब भी अपने नाम पर नहीं होने और इस बारे में बार-बार ज्ञापन-निवेदन देने के बावजूद भी प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिये जाने से त्रस्त होकर कल सोमवार 3 जून से गांव की स्मशान भूमि में अपनी तरह का एक अनूठा आंदोलन करना शुरु किया. जिसके तहत गांववासियों ने गाजे-बाजे के साथ गांव से स्मशान भूमि तक मोर्चा निकाला और फिर स्मशान भूमि में चिता सजाकर उस पर बैठते हुए अनशन करना शुरु किया. जिसकी जानकारी मिलते ही तहसील प्रशासन के अधिकारियों के हाथ-पांव फुल गये और आनन-फानन में अधिकारियों ने शिवणी रसुलापुर गांव पहुंचकर आंदोलनकारी गांववासियों को समझाना-बुझाना शुरु किया. विशेष उल्लेखनीय यह है कि, अपने इस आंदोलन में गांववासियों ने तहसील प्रशासन को करीब एक सप्ताह पहले ही सूचित कर दिया था. लेकिन इसके बावजूद भी इस एक सप्ताह के दौरान तहसील प्रशासन द्वारा इस संदर्भ में कोई कदम नहीं उठाये गये.
इस संदर्भ में मिली जानकारी के मुताबिक शिवणी रसुलापुर गांव के कुछ नागरिकों को करीब 30 वर्ष पहले इंदिरा आवास योजना के मार्फत घरकुलों का लाभ मिला था. परंतु घरकुलों की जमीन संबंधितों के नाम पर नहीं किये जाने के चलते वहां रहने वाले लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड रहा था. ऐसे में घरकुल धारकों द्वारा विगत 30 वर्षों के दौरान अनेकों बार तहसील एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों के नाम ज्ञापन सौंपते हुए इस समस्या का समाधान करने हेतु कहा गया था. लेकिन इसके बावजूद भी इन 30 वर्षों के दौरान प्रशासन द्वारा इस समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया. जिसके चलते यह समस्या लगातार जस की तस बनी रही. जिससे त्रस्त होकर गांववासियों ने अपनी तरह का एक अनूठा आंदोलन करने का निर्णय लिया, जिसके तहत गांववासियों ने गांव की स्मशान भूमि में अपनी चिताएं सजाकर उन चिताओं पर बैठते हुए अनशन करना शुरु किया. जिसके बारे में जानकारी मिलने पर कोई बडा अधिकारी तो मौके पर नहीं पहुंचा, लेकिन अपनी कुछ विशेष दूतों को भेजकर आंदोलनकारियों को मनाने का काम शुरु किया गया.
विगत दो दिनों से चल रहे इस आंदोलन में बाबाराव मराठे, किशोर तर्हेकर, श्रीकृष्ण मंदूरकर, बबनराव उकरे, संतोष दादरवाडे, दादाराव दादरवाडे, सरस्वताबाई शेंडे, कमलाबाई दहाट, कांताबाई आत्राम, गिरीजाबाई फुलझेले, सुरेखा खडसे, शेवंताबाई गोंडाणे, कंचाबाई शिंदे, रुख्माबाई उके, इंदिराबाई मारबदे, सुनीताबाई भोयर, सुनंदा उबरे, सुवर्णा वंजारी, अरुण उसरे, मारोती पंचभाई, हरिदास बुरे, राहुल चोपकर व वासुदेव केवट आदि सहित शिवणी रसुलापुर गांव के अनेकों महिला व पुरुषों ने हिस्सा लिया.