अमरावतीमहाराष्ट्र

निजी शालाओं की 10 प्रतिशत फीस बढी

फीस बढने पर नियंत्रण किसका ?

* पालको में नाराजी
* शुल्क नियंत्रण कानून अनुसार फीस बढने की अपेक्षा
अमरावती/दि.22– शासकीय शाला में विद्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है. पालकों का उत्साह यह निजी इंग्लिश मीडियम की शालाओं की ओर है. अपने पाल्य स्पर्धा के युग में कहीं भी कमी न रहे. इसके लिए पालक सजग है. कोरोना के समय शालाओं ने फीस बढाई नहीं थी. किंतु इस बार अधिकांश शालाओं ने 8 से 10 प्रतिशत से वृध्दि की है.

इस ओर सीबीएसई बोर्ड, स्टेट बोर्ड के निजी शाला में प्रवेश के लिए दौडभाग की जा रही है. स्पर्धा का युग होने से प्रत्येक पालक यह चाहते है कि अपना बच्चा अच्छी शाला में पढना चाहिए. जिसके लिए पालक भी पैसे गिनने को तैयार है. कोराना के समय फीस न बढानेवाली शाला ने इस बार फीस बढा दी है.

* जिले में 450 बिना अनुदानित शाला
जिले में बिना अनुदानित शालाओं की संख्या 450 है. इन शालाओं को शासन की ओर से कोई भी अनुदान नहीं मिलता.उन्हें शुल्क नियंत्रण कानून के अनुसार हर साल शुल्क बढा सकती है. पालको का उत्साह निजी शालाओं की ओर बढ रहा है. निजी शाला में अच्छी शिक्षा मिलेगी, ऐसा पालकों का विश्वास है.

* शाला ने 10 प्रतिशत से बढाया शुल्क
कोरोना के कारण विगत तीन वर्षो से अनेक शालाओं ने उनकी शिक्षा शुल्क में वृध्दि नहीं की थी. शिक्षकों का वेतन व वृध्दि खर्च का विचार करके शालाओं ने 8 से 10 प्रतिशत से शुल्क बढाया है. कुछ शालाएं विचार कर रही है कि शुल्क बढाए या ना बढाए.

बच्चों के भविष्य का विचार कर उन्हें अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए निजी शाला में डालना पड रहा है. ऑटो, पुस्तक और अन्य खर्च करते समय उन्हें परेशानी का सामना करना पड रहा है. फीस बढाई नहीं गई है, ऐसा शालाओं की ओर से कहा जा रहा है. शाला शुरू होने के बाद ही सही बात की जानकारी होगी.
विनायक तायडे, पालक

* इस शुल्क वृध्दि पर नियंत्रण किसका ?
2014 से शुल्क नियंत्रण कानून पर अमल किया जाना जारी है. प्रवेश प्रक्रिया का विचार करनेवाली शालाओं को अपनी शुल्क रचना घोषित कर शाला व्यवस्थापन समिति की ओर से मान्य करना आवश्यक है. ऐसा न होने पर कार्रवाई करने का प्रावधान है.

शासकीय शाला की शिक्षा का दर्जा सुधरा तो निजी शालाओं की ओर पालक अग्रसर नहीं होंगे. महंगी शिक्षा के कारण परिवार के बच्चों को अच्छी शिक्षा देना कठिन है. शासन को इस ओर ध्यान देना जरूरी है.
– रितेश तेलमोरे, पालक

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