
* सुपीकता निर्देशांक घटा, लगातार बढ रहा खतरा
अमरावती/दि.11– रासायनिक खादों के अनियंत्रित व असंतुलीत प्रयोग की वजह से जमीन की उर्वरक क्षमता में काफी हद तक कमी आयी है व सुपीकता निर्देशांक व स्तर काफी हद तक घट गये है, जो भविष्य के लिहाज से खतरे की घटी कहे जा सकते है.
बता दें कि, किसानों की समझ में आनेलायक जमीन की अन्नद्रव्य की जानकारी तथा इसके लिए आवश्यक प्रमाण में कितनी खाद डालना है, इसके लिए सुपीकता निर्देशांक की जानकारी रहना बेहद आवश्यक है. कृषि विभाग द्वारा अपनी वेबसाईट पर इसकी जानकारी दी जाती है. यह निर्देशांक तैयार करते समय गांव की पांच प्रमुख फसलों का समावेश किया जाता है. जिनमें खरीफ सीझन की तीन व रबी सीझन की दो फसलों का समावेश रहता है. किंतु जिन किसानों द्वारा मिट्टी का परीक्षण नहीं किया गया है, उन किसानों को ग्राम की सुपीकता निर्देशांक के माध्यम से अनुपातित तौर पर खाद की मात्रा तय करने में सहायता मिलती है. रासासनिक खाद की कीमत औैर उसमें रहनेवाले सूक्ष्म अन्नद्रव्य का प्रमाण अलग-अलग रहता है. ऐसे में खाद का अनियंत्रित प्रयोग टालकर जमीन के स्वास्थ्य व सुपीकता को बनाये रखने में सहायता होती है.
उल्लेखनीय है कि, इन दिनों किसानों द्वारा रासायनिक खादों का प्रयोग काफी अधिक किया जा रहा है और सेंद्रिय या जैविक खादों का प्रयोग काफी घट गया है. जिससे जमीन की उर्वरक क्षमता काफी कम हो गई है. इस आशय की जानकारी देते हुए जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी अनिल खर्चान ने बताया कि, किसानों ने अपने गांव के सुपीकता निर्देशांक के आधार पर अपने खेतों में खाद का प्रयोग करना चाहिए.
* इन वजहों से घटती है सुपीकता
रासायनिक खादोें के असंतुलित प्रयोग जरूरत से अधिक सिंचाई, अनियंत्रित अन्नद्रव्यों को प्रयोग, रासायनिक खाद देने की गलत पध्दति तथा समय व मात्रा में तारतम्य का अभाव आदि वजहों के चलते जमीन में सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या घट रही है तथा जमीन का स्वास्थ्य बिगडता चला जा रहा है. इसके साथ ही सेेंद्रिय यानी जैविक खादों की बजाय रासायनिक खादों के असीमित प्रयोग की वजह से जमीन में सेंद्रीय कर्ब व सेंद्रीय आम्ल का प्रमाण भी कम हो गया है और जमीन का सामू बिगड रहा है.
* सुपीकता निर्देशांक के फायदे
– जिन किसानों ने मिट्टी का नमूना परीक्षण नहीं किया है, उन्हें गांव के सुपीकता निर्देशांक के जरिये निर्धारित प्रमाण में खाद देने में सहायता मिलती है.
– इस निर्देशांक के जरिये गांव की जमीन में उपलब्ध रहनेवाते नत्र, स्फुरद, पालाश व अन्य द्रव्य का औसत प्रमाण पता चलता है.
– जमीन में उपलब्ध रहनेवाले प्रमुख अन्नद्रव्य के प्रमाण और कृषि विद्यापीठ की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए फसलों को दी जानेवाली खाद की मात्रा के बारे में निर्णय लिया जा सकता है.