अमरावतीमहाराष्ट्र

‘पक्षी संवर्धन से ही जंगल संवर्धन’

विश्व वन दिवस पर वनविभाग का उपक्रम

* विश्व वन दिवस के अवसर पर एक हजार जलपात्र का वितरण
* ग्रीष्मकाल की छुट्टियों में पक्षियों को दाना-पानी देकर जंगल संवर्धन मे बढाये अपना हाथ
* विद्यार्थियों ने सीखा पक्षी पर्यावरण संरक्षण का पाठ
अमरावती /दि.25– विश्व गौरैया दिवस एवं वन्यजीव दिवस के अवसर पर अमरावती उपवनसंरक्षक (प्रा )वन विभाग अमरावती तथा वॉर संस्था के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को स्थानीय साक्षरा स्कुल में उप वन संरक्षक धैर्यशील पाटिल, वॉर संस्था के अध्यक्ष नीलेश कंचनपुरे के हस्ते उपस्थित छात्रों में जलपात्र का वितरण किया गया.
कार्यक्रम में वन अधिकारियों और शिक्षकों ने विद्यार्थियों को पक्षी संरक्षण पर जानकारी दी. वन संसाधन बढ़ाने में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया. छात्रों को पक्षियों के लिए दाना पात्र निर्मिति की जानकारी दी. वन दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने भी बड़ी तल्लीनता से पर्यावरण संवर्धन में योगदान देने की सभी की जिम्मेदारी समझी. उपवन संरक्षक धैर्यशील पाटिल ने बताया कि, प्रकृति में स्वतंत्र रूप से विचरण करने वाले विभिन्न पक्षी प्रकृति की संतुलित श्रृंखला के प्रमुख तत्व हैं. उनके मल के माध्यम से फैलने वाले विभिन्न फलों के बीज एक प्राकृतिक वृक्षारोपण श्रृंखला का निर्माण करते हैं. प्रकृति ने स्वयं सहित सभी का ध्यान रखा, लेकिन मानवीय इच्छाओं के कारण यह श्रृंखला बाधित हो गई. इस श्रृंखला को बनाए रखने में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कार्यक्रम में वन संरक्षण के लिए वृक्षारोपण और पक्षी संरक्षण की अपील की गई. कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्यों ने उपस्थित विद्यार्थियों के कई जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी दिए.
इस अवसर पर सहायक उपवन संरक्षक ज्ञानेश्वर देसाई, प्राध्यापक कविता केवटकर, मानद वन्यजीव संरक्षक डॉ. जयंत वडतकर, हेल्प फाउंडेशन के रत्नदीप वानखडे समेत साक्षरा स्कुल के सभी शिक्षक तथा 350 से अधिक छात्र उपस्थित थे. स्वयं से शुरुआत करेंवनों और पक्षियों का संरक्षण करके ही हम प्रकृति में संतुलन प्राप्त कर सकते हैं. गर्मियों में प्राकृतिक जलस्रोत सूख जाने के कारण पक्षियों को पानी ढूंढने में कठिनाई होती है. प्यासे पक्षी पानी की तलाश में शहर की ओर आते हैं. यदि ऐसे समय में पक्षियों को पानी उपलब्ध कराया जाए तो निर्जलीकरण से उनकी मृत्यु को रोकना संभव है. कविता केवटकर, प्राध्यापक साक्षरा स्कुल कृत्रिम जल निकायों की आवश्यकता बढ़ गई है.बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण वन लगातार नष्ट हो रहे हैं. परिणामस्वरूप पेड़ों, पक्षियों, जानवरों और मनुष्यों का जीवन खतरे में है. वन नष्ट हो रहे हैं, पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ रहा है. वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हुई. इसके अलावा पक्षियों की संख्या में भी तेजी से कमी आई है. पक्षियों और जानवरों को वह आश्रय या भोजन नहीं मिल रहा है जिसकी उन्हें जरूरत है. इसलिए इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि जलपात्र या विभिन्न जल उपकरण उपलब्ध कराने के अलावा विज्ञान का उपयोग करके पक्षियों के लिए कृत्रिम घोंसले कैसे बनाए जा सकते हैं. समाज में लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए भी सभी को प्रयास करने चाहिए. यदि समाज में प्रत्येक व्यक्ति इस बात को ध्यान में रखे और तदनुसार कार्य करे, तो हम निश्चित रूप से जारी पर्यावरणीय क्षरण को रोक सकते हैं, ऐसा उपवन संरक्षक धैर्यशील पाटिल ने कहा.

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