* क्रीडा शिक्षा की परीक्षा भी होगी, अंक भी मिलेगे
अमरावती /दि.29- अब शालाओं में किताबों के जरिए होने वाली पढाई-लिखाई के साथ ही अब तक ‘को-करिक्युलर एक्टीविटी’ के तौर पर दुय्यम स्थान पर रहने वाले खेलों को भी पाठ्यक्रम के अविभाज्य घटक के तौर पर महत्व दिया जाएगा. जिसके चलते फुगडी, लंगडी व कबड्डी जैसे पारंपारिक खेलों को पढाई-लिखाई का हिस्सा बनाया जाएगा. विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि, सभी विद्यार्थियों के क्रीडा नैपूण्य की परीक्षा भी ली जाएगी और उन्हें क्रीडा संबंधित अंक भी प्रदान किए जाएंगे.
ज्ञात रहे कि, नई शैक्षणिक नीति के अमल हेतु 23 अगस्त को केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम प्रारुप की अधिकृत तौर पर घोषणा की. जिसमें गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान व भाषा इन पाठ्यक्रमों के साथ ही क्रीडा को आवश्यक विषय के तौर पर शामिल किया गया है. इस प्रारुप में इस विषयको केवल शारीरिक शिक्षा ऐसा न कहते हुए शारीरिक शिक्षा व उत्तम व्यवहार यानि फिजिकल एज्युकेशन एण्ड वेल बिईंग संबोधित करते हुए व्यापक स्वरुप प्रदान किया गया है. साथ ही शाला के टाइम टेबल में अन्य विषयों की तरह खेलों के भी तासिका यानि पीरियड रखना अनिवार्य किया गया है.
शालेय शिक्षा में फाउंडेशन स्टेज की पूरी पढाई खिलौनों के आधार पर ही दी जाएगी. साथ ही प्रीपेटरी, मिडल व सेकंडरी यानि तीसरी से बारहवीं कक्षाओं हेतु एक सत्र में खेलों के 150 पीरियड अनिवार्य किए गए है. अन्य विषयों की तरह सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों की खेल के विषय को लेकर भी परीक्षा होगी. यह परीक्षा किस तरह से ली जाए और परीक्षा के अंकदान किस तरह से किए जाए, इसका भी प्रारुप दिया गया है. ऐसे में अब अभिभावक अपने बच्चों को यह नहीं कह सकेंगे कि, खेलते-कूदते रहोंगे, तो परीक्षा में पास कैसे हो पाओंगे. क्योंकि अब पास होने के लिए अंक प्राप्त करने हेतु खेलना-कूदना भी जरुरी रहेगा.
नई शिक्षा नीति के तहत स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि, प्रत्येक शाला के पास विद्यार्थियों के खेलने-कूदने हेतु मैदान होना जरुरी है और यदि पहले से मैदान उपलब्ध नहीं है, तो शालाओं द्बारा जल्द से जल्द मैदान उपलब्ध कराए जाए. जिसके अलावा खेलों का केवल किताबी ज्ञान देने की बजाय शिक्षकों द्बारा विद्यार्थियों को खेलों मेें प्रत्यक्ष भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाए. इसके अलावा प्रत्येक शाला के पास खेलों से संबंधित अद्यावत क्रीडा साहित्य व प्रशिक्षित क्रीडा शिक्षक रहना जरुरी है. जब तक क्रीडा शिक्षक की नियुक्ति नहीं होती, तब तक शाला के मौजूदा शिक्षकों को ही अन्य क्रीडा शिक्षकों द्बारा प्रशिक्षित किया जाए, ऐसा भी इस नीति में कहा गया है.
* क्रीडा शिक्षा के क्षेत्र की चुनौतियां
– पाठ्यक्रम प्रारुप में शालेय खेलों की स्थिति बेहद विदारक रहने की बात कही गई है.
– खेलों को बीच की छुट्टी का एक तरह से टाइमपास माना जाता है.
– कोई शिक्षक छुट्टी पर रहने पर उसके पीरियड के समय विद्यार्थियों को किसी काम में लगाए रखने की दृष्टि से खेलों की ओर देखा जाता है.
– अधिकांश शालाओं के पास क्रीडा साहित्य और आउटडोर खेलने के लिए मैदान व इनडोर खेलों के लिए हॉल नहीं है.
– अधिकांश शालाओं के पास विविध क्रीडा प्रकारों के लिए प्रशिक्षित क्रीडा शिक्षक भी उपलब्ध नहीं है.
– क्रीडा शिक्षा से संबंधित लिखित स्वरुप वाले साहित्य की काफी कमी है.
– क्रीडा शिक्षा के लिए आवश्यक आहार को लेकर भी जागरुकता का काफी हद तक अभाव है.