दांडपट्टा चलाकर गंपूनाना ने किया था पांच अंग्रेजों का खात्मा
डॉ. गणेश पिंपरकर उर्फ गंपूनाना से मिलने खुद महात्मा गांधी आये थे
* सविनय अवज्ञा आंदोलन में हुई थी एक साल कारावास की सजा
अमरावती/दि.12- देश के स्वाधीनता संग्राम में खुद को झोंक देनेवाले परतवाडा निवासी स्वाधीनता संग्राम सेनानी गंपूनाना उर्फ डॉ. गणेश मार्तंड पिंपरकर ने दांडपट्टा चलाते हुए एक ही समय पांच अंग्रेज अधिकारियों का खात्मा कर दिया था. साथ ही इस समय हुई मारपीट में उन्होंने कई अंग्रेज अधिकारियों के ‘कान गरम’ किये थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के अनुयायी रहनेवाले स्वाधीनता सेनानी गंपूनाना उर्फ डॉ. गणेश मार्तंड पिंपरकर ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में 14 फरवरी 1930 को शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय सहभाग लिया था. 29 वर्ष की आयु के दौरान ही खुद को देश की आजादी के लिए झोंक देनेवाले गंपूनाना का जन्म 22 फरवरी 1898 को हुआ था और 14 अगस्त 1982 को भारतीय स्वाधीनता संग्राम का यह सितारा अस्त हुआ. सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते अंग्रजों ने गंपूनाना को सख्त कारावास की सजा सुनाई और उन्हें 28 जुलाई 1930 को अमरावती की जेल में लाकर रखा गया. जहां पर 8 मार्च 1931 तक यानी लगभग एक साल वे कैद रहे.
गंपूनाना का स्वातंत्र्यवीर सावरकर के साथ नियमित पत्र व्यवहार था और गंपूनाना ने ही सावरकर को एक तरह से सुरक्षा कवच दे रखा था. 4 अप्रैल 1939 को सावरकर द्वारा अपने हस्ताक्षर में गंपूनाना को लिखे गये पत्र से इन बातों पर प्रकाश पडता है. इसके अलावा अमरावती निवासी बाबाराव खापर्डे के नाम सावरकर द्वारा 25 अप्रैल 1939 को लिखे गये पत्र में भी गंपूनाना का उल्लेख है.
* सावरकर के पत्र रखे हैं सुरक्षित
स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा खुद अपने हस्ताक्षरों में लिखीत दोनों पत्रों को गंपूनाना के सुपुत्र अनंतराव पिंपरकर ने आज भी बडे जतन के साथ संभालकर रखा है. जिसके जरिये दो महान स्वाधीनता सेनानियों के बीच होनेवाले वार्तालाप को समझा जा सकता है. स्वाधीनता सेनानी गंपूनाना की शौर्यगाथाएं आज भी परतवाडा सहित पूरे परिसर में सुनाई जाती है.
* स्वातंत्र्यवीर की सभा को गंपूनाना का सुरक्षा कवच
परतवाडा के नेहरू मैदान पर 16 अप्रैल 1939 को स्वातंत्र्यवीर सावरकर की जनसभा हुई थी. जिसके लिए वे 15 अप्रैल 1939 को परतवाडा पहुंच गये थे और उनका निवासी गंपूनाना के घर पर ही था. इसके अलावा हमेशा ही अंग्रेजों के निशाने पर रहनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर और उनकी जनसभा को हर तरह की सुरक्षा देने का जिम्मा गंपूनाना ने उठा रखा था.
* कम्बल और लाठी
परतवाडा की जनसभा के दौरान चिंधाजी पारधी ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को एक कम्बल और लाठी भेंट स्वरूप प्रदान की थी. जिसे आज भी सावरकर सदन में सुरक्षित रखा गया है. स्वाधीनता संग्राम की प्रत्यक्ष साक्षीदार रहनेवाली इन ऐतिहासिक वस्तु को अपनी आंखों से देखने के लिए अनेकोें लोग आज भी पिंपरकर परिवार से संपर्क करते है.