* पर प्रांत से आते है भक्त
चिखलदरा/दि.20– आदिवासी बंधुओं में नवसाला पावाणारी देवी के रूप में चिखलदरा की देवी पहचानी जाती है. चैत्र की नवरात्र व शारदीय नवरात्र संपूर्ण मेलघाट सहित राज्य से तथा मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ राज्य से आदिवासी बांधव अपनी मानता का चढावा चढाने के लिए यहां पर आते है. नवसाला पावणारी देवी के रूप में आदिवासी बंधुओं की श्रध्दा है. मेलघाट की चिखलदरा शहर से एक किमी दूरी पर गाविलगड किल्ला परिसर में देवी का प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर काले पत्थर को तोडकर बनाया गया है. इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस देवी के चरण से चंद्रभागा नदी निकली हैै. ग्रीष्मकाल में इस जगह पर पत्थर में से पानी निकलता है. हर साल ग्रीष्मकाल में चिखलदरा परिसर में पानी की समस्या रहती है. परंतु इस मंदिर में ग्रीष्मकाल में पानी निकलता है. विशेष बात यह है कि मंदिर के सामने दरी रहती है. थोडा सामने जाने पर ऐतिहासिक गाविलगड किल्ला है.
देवी पाइंट के रूप में पहचानी जानेवाली इस देवी पर आदिवासी बंधुओं की बडी श्रध्दा है. देवी के मंदिर में दर्शन के लिए आदिवासी बांधव संपूर्ण मेलघाट सहित मध्य प्रदेश में आते है. नवसाला पावणारी देवी ऐसी श्रध्दा वाले आदिवासी रातभर मंदिर परिसर में जागरण करके सुबह ही दर्शन के लिए आकर अपनी मान्यता का चढावा चढाते है. आदिवासी बांधव इस देवी को जनादेवी कहकर संबोधित करते है तथा चिखलदरा माता व आदिशक्ति के रूप में यह देवी पूजी जाती है.
* मंदिर संबंध में ऐसी है आख्यायिका
– इस मंदिर संबंध में ऐसी आख्यायिका है कि, महाभारत के समय पांडव व द्रौपदी यहां से 12 किमी दूरी पर विराट नगरी यहां पर पांडव अज्ञातवास में रहते थे. तब बहुत सुबह द्रौपदी यहां दर्शन के लिए आती थी. उसी प्रकार गाविलगड किल्ले पर राज्य करनेवाले राजा यहां पर दर्शन करने के लिए आते थे. ऐसा इतिहास इस देवी के मंदिर का है.
* दिनों दिन पदयात्रा का महत्व बढता है
अनेक भक्त चैत्र सहित शारदीय नवरात्रि में परतवाडा से चिखलदरा ऐसे 32 किमी दूरी की पदयात्रा कर देवी के दर्शन के लिए आते है. इस पद यात्रा का महत्व दिनों दिन बढ रहा है. इन सभी बातों को ध्यान में रखकर प्रशासन सुविधा उपलब्ध करें, ऐसी मांग भक्तों ने की है.