नि:शुल्क चावल की वजह से ज्वार व बाजरी के आये अच्छे दिन
अमरावती/दि.१८ – इन दिनों ग्रामीण क्षेत्र में ज्वार व बाजरी जैसी फसलों से किसानों ने मुंह फेर लिया था. ऐसे में अब ज्वार व बाजरी मिलना काफी कठीन हो गया है, लेकिन कोरोना काल के दौरान सरकार की वितरण व्यवस्था के मार्फत नि:शुल्क अनाज का वितरण शुरू किये जाने की वजह से लोगों के पास अनाज का संग्रहण बढ गया और उस अनाज को खरीदनेवाले व्यापारी भी बढ गये.
बता दें कि, सरकार की ओर से नि:शुल्क धान्य वितरण योजना के तहत बडे पैमाने पर चावल वितरित किया गया था. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के कई लोगबाग इस चावल को बेचकर उसके बदले ज्वार व बाजरी जैसे अनाज को खरीद रहे है, ताकि वे रोटी खा सके. ऐसे में इन दिनों दो पायली चावल की ऐवज में एक पायली ज्वार या बाजरी सहज ढंग से उपलब्ध है. ज्ञात रहे कि, कोरोना काल के दौरान सरकार की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के मार्फत शुरूआत में अंत्योदय व प्राधान्य कुटुंब राशनकार्ड धारकों को पांच किलो चावल नि:शुल्क देने की शुरूआत की गई थी. वहीं अब सस्ती दरों पर तीन किलो चावल व दो किलो गेहू दिया जा रहा है. ऐसे में अब लोगोें के घरों में उपयोग में लाये जाने के बाद भी अनाज का संग्रहण बढ रहा है. जिसकी वजह से लोगों ने इस अनाज की बिक्री करनी शुरू की है और गांव-गांव में इस चावल की खरीदी करनेवाले व्यापारी सक्रीय हो गये है. जिसके तहत लोगों से चावल लेकर उन्हें इसके बदले में ज्वार या बाजरी दी जा रही है.
जानकारी के मुताबिक अनाज के बदले अनाज के लेन-देन का यह व्यवहार ग्रामीण क्षेत्र में बडे पैमाने पर चल रहा है और सुबह से ही गांव-गांव में चावल के बदले ज्वार व बाजरी के लेन-देन का व्यवहार शुरू हो जाता है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में चावल के साथ-साथ अब गेहू, ज्वार व बाजरी जैसे अनाज भी सहज ढंग से उपलब्ध हो रहे है.
भाकर की मिठास बढी
स्वास्थ्य के लिहाज से दैनिक आहार में ज्वार व बाजरी से बननेवाली भाकर को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन बाजरी व ज्वारी की बुआई घटने का परिणाम इसके उत्पादन पर भी हुआ है. ऐसे में महंगी दरों पर बिकनेवाली ज्वार व बाजरी को खरीदकर खाना कई लोगों के लिए संभव नहीं था, लेकिन सरकार की ओर से नि:शुल्क तौर पर मिले चावल के बदले ज्वार व बाजरी उपलब्ध होने के चलते अब एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों के लोगोें की भोजन थाली में भाकर दिखाई देने लगी है और कई लोगों द्वारा बडे पैमाने पर चावल के बदले ज्वार व बाजरी की मांग की जा रही है.