अमरावती

किसान आत्महत्या के 53 मामलों में आठ माह से नहीं मिली सरकारी सहायता

जांच के नाम पर अटका है मामला, परिजन काट रहे चक्कर

अमरावती/दि.7 – आसमानी व सुलतानी संकट से त्रस्त होकर विगत कुछ वर्षों के दौरान किसानों द्वारा आत्महत्या का रास्ता चुना जा रहा है, ताकि उन्हें तमाम झंझटों से मुक्ति मिल जाये. साथ ही उनकी मौत के बाद सरकार की ओर से मिलनेवाली सहायता राशि के जरिये उनके परिवार को कुछ सहारा मिले, लेकिन कई किसान परिवारों की बदनसीबी इसके बाद भी खत्म होने का नाम नहीं लेती, क्योंकि घर का कर्ता पुरूष चले जाने के बाद उन्हें सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के लिए सरकारी दफ्तरों में कई माह तक चक्कर काटते रहने पडते है. ऐसे ही इस समय 53 किसानों की आत्महत्या के मामले को विगत आठ माह से जांच के नाम पर प्रलंबीत रखा गया है. जिसमें से कुछ मामले तो जनवरी माह के है. जिसकी वजह से मृतक किसानों के परिजनोें को अब तक सरकारी सहायता नहीं मिल पायी है.
उल्लेखनीय है कि, राज्य में सर्वाधिक किसान आत्महत्याएं अमरावती जिले में हो रही है. लेकिन जिला प्रशासन ने अब भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया है. जारी वर्ष के दौरान ही अगस्त माह तक अमरावती जिले में 206 किसानों द्वारा आत्महत्या कर ली गई. जिसमें से 20 मामले सरकारी सहायता के लिए अपात्र साबित हुए. वहीं 133 मामलों में सरकारी सहायता प्रदान की गई है. इसके अलावा 53 मामले अब भी जांच के नाम पर प्रलंबीत रखे गये है. जिसके लिए आरोप लगाया जा रहा है कि, जिला समिती की नियमित बैठकें नहीं होने की वजह से किसान आत्महत्याओं के मामलों पर जलद गति से निर्णय नहीं हो रहे.
इसी दौरान यह जानकारी भी सामने आयी है कि, तत्कालीन जिलाधीश किरण गिते द्वारा सरकार के पास सिफारिश किये गये बलीराजा प्रकल्प को अब तक सरकार से मंजुरी नहीं मिली है. संभवत: जिलाधीश गिते का तबादला होने के बाद इसके लिए कोई प्रयास ही नहीं किये गये. वही जांच की वजह से अटके किसान आत्महत्याओें के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट व उत्तराधिकार की तकनीकी दिक्कतों के चलते आवश्यक निर्णय नहीं हो पा रहे है.

1 लाख रूपये की मिलती है सहायता

मृतक किसान के वारिस को 30 हजार रूपये का धनादेश प्रदान किया जाता है. साथ ही पोस्ट अथवा बैंक की मासिक प्राप्ती योजना में उसके नाम पर 70 हजार रूपये की निधी जमा की जाती है. सहायता का यह मानक 23 जनवरी 2006 को तय किया गया था. जिसमें विगत 16 वर्षों से कोई सुधार नहीं हुआ है. इसी आदेश में जिलाधीश के अध्यक्षतावाली समिती द्वारा किसान आत्महत्यावाले मामलों में 15 दिन के भीतर सहायता देने के संदर्भ में निर्णय लिये जाने की बात कही गई है. लेकिन बावजूद इसके इस अवधि के भीतर कभी कोई निर्णय नहीं होता.

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