अमरावती

शिक्षकों की आत्महत्याओं के लिए सरकार ही जिम्मेदार

प्रकाश कालबांडे (Prakash kalbande) का कथन

अमरावती/दि.28 – लॉकडाउन काल के दौरान कई शिक्षकों ने आत्महत्या कर ली है. बिना अनुदानित शालाओं में काम करनेवाले शिक्षकों को सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं दी जा रही है. जिसकी वजह से उन पर आत्महत्या करने की नौबत आन पडी है. ऐसे में शिक्षकों द्वारा की गई आत्महत्या के लिए पूरी तरह से सरकार ही जिम्मेदार है. अत: ऐन चुनाव के मुहाने पर शिक्षकोें के कामों को प्राथमिकता देने की बात कहते हुए राज्य सरकार अपनी गलतियों पर पर्दा डालना बंद करे. इस आशय का प्रतिपादन विदर्भ माध्यमिक शिक्षक संघ के अधिकृत प्रत्याशी प्रकाश कालबांडे द्वारा किया गया.
शिक्षक विधायक पद के चुनाव में प्रत्याशी रहनेवाले प्रकाश कालबांडे ने कहा कि, कोविड-19 के संक्रमण काल के दौरान विभिन्न बिना अनुदानित, टप्पा अनुदानित, कायम बिना अनुदानित तथा निजी अंग्रेजी माध्यम की शालाओं में काम करनेवाले शिक्षकों के पास किसी भी तरह का कोई आर्थिक आधार नहीं था और संस्था चालकों द्वारा हाथ खडे कर दिये जाने की वजह से उनके समक्ष अपने व अपने परिवार के उदरनिर्वाह का मसला खडा हो गया था. वहीं शालाएं बंद रहने की वजह से संस्था चालकों के समक्ष यह समस्या थी कि, वे अपने शिक्षकों को वेतन कहां से अदा करें. ऐसे में पालक होने के नाते राज्य सरकार द्वारा हजारों बिना अनुदानित शिक्षकों के लिए आर्थिक प्रावधान किया जाना अपेक्षित था, लेकिन सरकार द्वारा हाथ झटक लिये जाने के चलते कई बिना अनुदानित शिक्षकोें ने अपनी आर्थिक तंगी से त्रस्त होकर आत्महत्या का पर्याय चुना और अपनी जीवनयात्रा खत्म कर ली. राज्य में कई शिक्षकों द्वारा आत्महत्याएं की गई है और इन सभी आत्महत्याओं के लिए राज्य सरकार ही जवाबदार है, ऐसा स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है.
प्रकाश कालबांडे के मुताबिक मौजूदा राज्य सरकार ने बिना अनुदानित शिक्षकों का 18 माह का वेतन छीन लिया है और चुनाव के मुहाने पर केवल अनुदान की घोषणा करते हुए शिक्षकों के वोट हासिल करने का प्रयास शुरू किया है, लेकिन राज्य सरकार का यह खेल इस बार सफल नहीं होगा. क्योंकि शिक्षकों को अब केवल अपने हितों हेतु काम करनेवाला शिक्षक प्रतिनिधि चाहिए है, और इसके लिए वे निश्चित तौर पर विदर्भ माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रत्याशी को ही चुनेंगे, ऐसा उन्हें विश्वास है. साथ ही उन्होंने कहा कि, इस सरकार को शिक्षकोें से वोट मांगने का नैतिक अधिकार भी नहीं है, क्योंकि इस सरकार ने शिक्षकों के लिए कोई काम नहीं किया है.

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