नेताओं की आपसी माथाफोडी में अटक गया सरकारी मेडिकल कॉलेज!
श्रेय लूटने के चक्कर में अब तक तय नहीं हो पायी कॉलेज शुरु करने की जगह
* कॉलेज शुरु करने के लिए शहर में जगह तो भरपूर, लेकिन जनप्रतिनिधियों की ताकत पड रही कम
* हर कोई ‘अपनी रोटी पर दाल’ के लिए लगा रहा ताकत, जनता के हितों से कोई लेना-देना नहीं
अमरावती/दि.7 – विगत करीब 35 वर्षों से संभागीय मुख्यालय रहने वाले अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने की मांग की जा रही है और इसे लेकर विगत 7-8 वर्षों से अमरावती में एक तरह से जन अभियान भी चलाया जा रहा है. इससे पहले राज्य में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते समय अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज स्थापित होने की पहल शुरु हुई थी और मेडिकल कॉलेज शुरु करने की जगह को लेकर सर्वेक्षण व मुआयना भी हुआ था. पश्चात महाविकास आघाडी की सरकार के समय कॉलेज शुरु करने के लिए नई जगह को लेकर चर्चा शुरु हुई और अब शिंदे-फडणवीस सरकार के कैबिनेट बैठक में अमरावती सहित राज्य में कुल 9 स्थानों पर नये सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने हेतु 4,365 करोड रुपए की निधी भी आवंटित की गई. जिसके तहत माना जा रहा था कि, जारी शैक्षणिक सत्र से ही अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु हो जाएगा. जिसके तहत स्थानीय सुपर स्पेशालिटी अस्पताल में उपलब्ध मूलभूत संसाधनों का उपयोग करते हुए मेडिकल कॉलेज की पहली बैच शुरु करने के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरु हो जाएगी. लेकिन विगत 5 जुलाई को राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्बारा जारी शासनादेश में परभणी के नये सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश प्रक्रिया शुरु करने को अनुमति दी गई है और इस शासनादेश में अमरावती के मेडिकल कॉलेज में शुरु होने वाली प्रवेश प्रक्रिया को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है. ऐसे में कम से कम इस वर्ष तो अमरावती के सरकारी मेडिकल कॉलेज के शुरु होने का मामला खटाई में पड गया है. वहीं अब इस बात को लेकर भी चर्चाएं चल पडी है कि, आखिर अमरावती के सरकारी मेडिकल कॉलेज को लेकर मामला कहा पर अटका हुआ है और मेडिकल कॉलेज शुरु होने की राह में अडंगे क्यों आ रहे है?
बता दें कि, अमरावती संभाग के अकोला व यवतमाल जैसे शहरों में विगत लंबे समय से सरकारी मेडिकल कॉलेज सफलतापूर्वक संचालित हो रहे है. वहीं पूर्वी विदर्भ का संभागीय मुख्यालय रहने वाले नागपुर में दो-दो सरकारी मेडिकल कॉलेज है. जबकि पश्चिम विदर्भ का संभागीय मुख्यालय रहने वाला अमरावती शहर व जिला विगत 35 वर्षों से एक अदद सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए तरस रहा है. वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव पश्चात महाराष्ट्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद तत्कालीन पालकमंत्री प्रवीण पोटे व डॉ. अनिल बोंडे की पहल पर अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने के सरकारी स्तर पर प्रयास शुरु हुए और अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने के लिए आवश्यक जमीन व अन्य सुविधाओं को लेकर सर्वेक्षण किया गया. इसके तहत जहां दोनों पूर्व पालकमंत्रियों तथा तत्कालीन भाजपा विधायक डॉ. सुनील देशमुख सहित भाजपा नेताओं द्बारा प्रस्ताव रखा गया था कि, अमरावती शहर के बीचोंबीच स्थित जिला सामान्य अस्पताल, जिला स्त्री अस्पताल व सुपर स्पेशालिटी अस्पताल के पास उपलब्ध रहने वाली और खाली पडी जमीन का उपयोग करते हुए अमरावती शहर में ही प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु किया जाए. वहीं बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रवि राणा ने इसके लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र में कौंडेश्वर मार्ग पर वडतगांव के निकट खाली पडी सरकारी ई-क्लास जमीन को अधिग्रहित कर वहां पर प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने की मांग उठाई थी. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग सहित इंडियन मेडिकल काउंसिल एण्ड रिसर्च यानि आईएमसीआर की टीम ने अमरावती आकर दोनों स्थानों का मुआयना किया था. वहीं वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव पश्चात राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार बनने पर तत्कालीन कैबिनेट मंत्री व जिला पालकमंत्री यशोमति ठाकुर ने प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज की स्थापना हेतु नांदगांव पेठ के पास सरकारी ई-क्लास जमीन का पर्याय सुझाया था और इसे लेकर सरकार के समक्ष प्रस्ताव पेश किया था. ताकि वे इसका फायदा अपने निर्वाचन क्षेत्र में उठा सके. ऐसे में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज के लिए अमरावती शहर में तीन स्थानों का पर्याय सामने आने के साथ ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों में एक तरह से क्षेयवाद की लडाई और आपसी सिरफुटव्वल भी शुरु हो गई. जिसके चलते अमरावती शहर सहित जिले की जनता की भलाई और डॉक्टर बनने के इच्छूक विद्यार्थियों की पढाई के लिए एकजूट होकर ताकत लगाने की बजाय सरकारी मेडिकल कॉलेज का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए अलग-अलग ताकत लगाई जाने लगी. शायद इसी का नतीजा है कि, हमेशा ही राजनीतिक इच्छाशक्ति और आपसी एकजूटता के अभाव के चलते पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाडा से पीछे रहने वाला विदर्भ क्षेत्र विशेषकर पश्चिम विदर्भ इस बार भी अमरावती के प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज के मामले में परभणी यानि मराठवाडा से पिछड गया और जहां बजट आवंटित होने के बाद परभणी के नये मेडिकल कॉलेज की शुरुआत होकर वहां पर इसी शैक्षणिक सत्र से प्रवेश प्रक्रिया भी शुरु हो गई. वहीं अमरावती का प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज कब शुरु होगा और कहां पर शुरु होगा. यह फिलहाल दूर-दूर तक तय दिखाई नहीं दे रहा.
* जमीन और मूलभूत सुविधाएं है शहर में उपलब्ध
विशेष उल्लेखनीय है कि, सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने के लिए कम से कम 20 एकड जमीन और 450 बेड की क्षमता वाले संलग्नित अस्पताल की उपलब्धता होना जरुरी होता है. अमरावती शहर के बीचोबीच स्थित जिला सामान्य रुग्णालय, जिला स्त्री अस्पताल एवं सुपर स्पेशालिटी अस्पताल के पास करीब 30 हेक्टेअर जमीन उपलब्ध है. जिसमें से प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज की मुख्य इमारत और मेडिकल छात्र-छात्राओं के होस्टल हेतु करीब 24 एकड जमीन बडी आसानी के साथ उपलब्ध हो सकती है. साथ ही प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज के साथ 450 की बजाय करीब 750 बेड की क्षमता वाला अस्पताल भी संलग्नित करने हेतु पहले से तैयार और सबसे बडी बात यह है कि, मेडिकल कॉलेज शुरु करने के लिए यानि प्रथम वर्ष की कक्षाओं की प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण कर पढाई शुरु करने के लिए इमारत भी पहले से बनकर तैयार और उपलब्ध है. इन सबके साथ ही चूंकि यह स्थान अमरावती शहर के बीचोंबीच स्थित है. ऐेसे में यहां पर सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करना मेेडिकल के विद्यार्थियों सहित शहर सहित जिले के मरीजों व नागरिकों के लिहाज से भी बेहद सुविधाजनक हो सकता है. लेकिन इसके बावजूद भी कुछ जनप्रतिनिधियों द्बारा प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज को अमरावती शहर की बजाय शहर से दूर किसी जंगल-बियावान में शुरु करने की जिद क्यों की जा रही है, यह समझ से परे है. साथ ही यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, कहीं इस प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज का श्रेय किसी अन्य जनप्रतिनिधि को न मिल जाए. इस हेतु आपस में ही प्रतिस्पर्धा रखने वाले जनप्रतिनिधियों द्बारा इस मेडिकल कॉलेज की राह में अडंगा डाला जा रहा है.
* बजट तो है, लेकिन इच्छाशक्ति नहीं
विशेष उल्लेखनीय है कि, राज्य की शिंदे-फडणवीस सरकार ने विगत 28 जून 2023 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य के 9 नये सरकारी मेडिकल कॉलेजों के लिए 4 हजार 365 करोड रुपए की निधी को मंजूरी दी है. जिसमें अमरावती के प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज का भी समावेश था. जिसकी जानकारी मिलने पर संभावना जताई जा रही थी कि, संभवत: इसी शैक्षणिक सत्र से अमरावती के सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल और जिला स्त्री अस्पताल के परिसर में सरकारी मेडिकल कॉलेज की पहली बैंच शुरु करते हुए प्रवेश प्रक्रिया व पढाई का काम शुरु कर दिया जाएगा. लेकिन 5 जुलाई को घोषित किए गए सरकारी निर्णयानुसार परभणी के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश प्रक्रिया को मान्यता मिली है और इस सरकारी आदेश में अमरावती के प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज को लेकर कोई उल्लेख नहीं है. ऐसे में यह तय हो गया है कि, इस शैक्षणिक सत्र से तो अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज की पहली बैच शुरु नहीं होने जा रही. साथ ही फिलहाल इस बात का भी कोई जवाब नहीं है कि, अमरावती का सरकारी मेडिकल कॉलेज आखिर कब तक और कहां पर शुरु होगा, क्योंकि इस संदर्भ में स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बात करने पर सभी के सूर इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग सुनाई दिए. जिसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि, अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज जैसे साढे तीन दशकों से प्रलंबित रहने वाले मुद्दें को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों को लेकर जिस तरह की गंभीरता और एकजूटता होनी चाहिए. उसका कहीं न कहीं काफी हद तक अभाव है और संभवत: इसी वजह के चलते अमरावती में अब तक सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु नहीं हो पाया है.
* अभी कहां मिली है कैबिनेट की मंजूरी व मान्यता
इस विषय को लेकर स्थानीय विधायक सुलभा खोडके से जानकारी व प्रतिक्रिया हेतु संपर्क किए जाने पर उन्होंने बताया कि, परभणी के मेडिकल कॉलेज को राज्य की पूर्ववर्तीे महाविकास आघाडी की सरकार के समय ही मंजूरी व मान्यता मिल गई थी. जिसके चलते परभणी के मेडिकल कॉलेज को इस शैक्षणिक सत्र से प्रवेश प्रक्रिया शुरु करने हेतु अनुमति दी गई. वहीं अमरावती के प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज का मामला भले ही मविआ की सरकार के अंतिम बजट सत्र में चर्चा हेतु आया था, लेकिन यह मुद्दा उद्धव ठाकरे के मंत्रिमंडल की अंतिम बैठक में अनिर्णित रह गया था. वहीं विगत एक वर्ष से इस मुद्दे को लेकर मौजूदा सरकार द्बारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है. ऐसे में जब अमरावती प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज को मान्यता व मंजूरी ही नहीं मिली है, तो इस शैक्षणिक क्षेत्र से अमरावती के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढाई और प्रवेश प्रक्रिया के शुरु होने का सवाल ही नहीं उठाता.
* मेडिकल कॉलेज तो वडद में ही बनेगा
इस संदर्भ में जानकारी व प्रतिक्रिया हेतु संपर्क किए जाने पर बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक रवि राणा ने बताया कि, देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री और डॉ. अनिल बोंडे के जिला पालकमंत्री रहते समय अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने का प्रस्ताव बनाया गया था और उन्होंने ही सबसे पहले कौंडेश्वर मार्ग पर वडदगांव में प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज शुरु करने हेतु अपनी ओर से प्रस्ताव भेजा था. जिसके बाद राज्य व केंद्र के स्वास्थ्य विभाग के टीमों के साथ ही आईसीएमआर की टीम ने अमरावती आकर वडदगांव की प्रस्तावित जमीन का मुआयना किया था और इससे संबंधित सकारात्मक रिपोर्ट आगे भेजी थी. किंतु इसके बाद महाविकास आघाडी की सरकार बनने के बाद तत्कालीन जिला पालकमंत्री यशोमति ठाकुर ने सरकारी मेडिकल कॉलेज को वडद की बजाय नांदगांव पेठ में बनाने का नया प्रस्ताव डाला. जिसका कोई औचित्य नहीं है. क्यिोंकि वडदगांव में मेडिकल कॉलेज बनने के प्रस्ताव को राज्य एवं केंद्र स्तर पर मंजूरी मिल चुकी है और आगे भी वडदगांव में ही मेडिकल कॉलेज बनेगा. इसे लेकर किसी ने भी किसी भी तरह की कोई राजनीति नहीं करनी चाहिए. जहां तक शुरुआती दौर में सुपर स्पेशालिटी अस्पताल में सरकारी मेडिकल कॉलेज को शुरु करते हुए चलाए जाने का मसला है, तो हमारा इसे लेकर कोई विरोध नहीं है.
* अमरावती शहर में मेडिकल कॉलेज होना सभी के लिए सुविधाजनक
पूर्व राज्यमंत्री व विधायक प्रवीण पोटे के मुताबिक अमरावती में प्रस्तावित सरकारी मेडिकल कॉलेज को यदि अमरावती शहर के बीचोबीच उपलब्ध जगह पर शुरु किया जाता है, तो इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता. यदि मेडिकल कॉलेज शहर में शुरु होता है, तो इससे मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को सुविधा होने के साथ-साथ अमरावती शहर सहित जिले के ग्रामीण इलाकों से आने वाले सर्वसामान्य वर्ग के मरीजों को लाभ होगा. वहीं यदि इस मेडिकल कॉलेज को शहर से दूर किसी ग्रामीण इलाके में शुरु किया जाता है, तो फायदा होने की बजाय कई तरह की असुविधाएं भी हो सकती है. ऐसे में सभी ने अपने-अपने राजनीतिक गुटों को परे रखते हुए मडिकल कॉलेज से लोगों को मिलने वाली सुविधाओं के बारे में विचार करना चाहिए. चूंकि जिला सामान्य अस्पताल, जिला स्त्री अस्पताल व सुपर स्पेशालिटी अस्पताल के पास शहर के बीचोबीच सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने की जगह उपलब्ध है, तो फिर किसी अन्य पर्याय पर विचार करने का कोई औचित्य ही नहीं है.
* यह आम जनता से जुडा मसला, सभी की एकजूटता जरुरी
अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज शुरु करने के लिए बडे पैमाने पर जनांदोलन खडा कर चुके और इस मांग को लेकर विगत कई वर्षों से सतत प्रयास कर रहे भाजपा के शहराध्यक्ष किरण पातुरकर ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज का होना किसी राजनीतिक दल की उपलब्धि से ज्यादा यहां के आम नागरिकों के लिए ज्यादा जरुरी व महत्वपूर्ण है. ऐसे में अमरावती शहर सहित जिले की जनता के हितों को देखते हुए जिले के सभी विधायकों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार के समक्ष अपनी एकजूटता दिखाई चाहिए. ताकि संभागीय मुख्यालय का दर्जा रहने वाले अमरावती में भी अन्य शहरों की तरह सरकारी मेडिकल कॉलेज है. विगत 35 वर्षों से सरकारी मेडिकल कॉलेज को लेकर लगातार मांग की जा रही है. इसके बावजूद भी यह मांग अब तक पूरी नहीं हो पायी है. ऐसे में इसे सीधे-सीधे विभिन्न दलों से वास्ता रखने वाले स्थानीय जनप्रतिनिधियों की नाकामी कहा जा सकता है. विगत मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में अमरावती के सरकारी मेडिकल कॉलेज हेतु निधी आवंटित हो गई है. अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज खोलने हेतु शहर के बीचोबीच जमीन उपलब्ध है. साथ ही 750 बेड की क्षमता वाला अस्पताल भी संलग्नित करने हेतु तैयार है, लेकिन इसके बावजूद भी यदि सरकारी मेडिकल कॉलेज को ुशुरु करते हुए प्रथम वर्ष की प्रवेश प्रक्रिया शुरु करने की अनुमति नहीं मिली है, तो इसके लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि ही पूरी तरह से जिम्मेदार है.