सरकारीकृत मंदिरों को सरकार से मुक्त कर भक्तों को सौंपा जाए
अधिवेशन में मंदिर महासंघ ने रखे विविध मुद्दे

* जहागिरपुर में महाराष्ट्र मंदिर न्यास का अधिवेशन
* आठ प्रस्ताव पारित
अमरावती/दि.10-अमरावती समेत विदर्भ क्षेत्र के कई सार्वजनिक मंदिर ट्रस्टों की जमीनों को कुछ राजस्व अधिकारियों और बिल्डर लॉबी की मिलीभगत से हड़पने के मामले सामने आए हैं. इसके विरोध में महाराष्ट्र सरकार को तुरंत ‘एंटी लैंड ग्रैबिंग’ कानून लागू करना चाहिए. इसके अलावा, मंदिर सुरक्षा, मंदिर समन्वय, मंदिरों को धर्म प्रचार के केंद्र के रूप में विकसित करना और युवा संगठन जैसे विषयों को लेकर एक अधिवेशन संपन्न हुआ. यह अधिवेशन महाराष्ट्र मंदिर न्यास (अमरावती विभाग) द्वारा आयोजित किया गया था और इसका उद्घाटन जहागिरपुर में हुआ. इस अवसर पर सुनील घनवट ने कहा, महाराष्ट्र में जो भी मंदिर सरकारीकरण के अधीन हैं, उन्हें तुरंत सरकार से मुक्त कर भक्तों को सौंपा जाना चाहिए. हम वक्फ बोर्ड, सरकार और भू-माफियाओं के हाथों एक इंच भी मंदिरों की भूमि नहीं जाने देंगे. कोकण क्षेत्र में हजारों एकड़ मंदिर की जमीनों को सरकार ने मंदिर ट्रस्टों को विश्वास में लिए बिना अपने नाम पर कर लिया है. हमारी मांग है कि वे सभी भूमि तुरंत मंदिर ट्रस्टों के नाम पर वापस की जाएं. श्रीराम मंदिर निर्माण के बाद, काशी-मथुरा समेत देशभर के 4.5 लाख मंदिरों की मुक्ति हमारा लक्ष्य है. उन्होंने आगे कहा, मंदिर महासंघ के माध्यम से मंदिरों का सुव्यवस्थापन, संगठन, समन्वय, सुरक्षा और सरकारीकरण मुक्त करना आवश्यक है. इसी उद्देश्य से अब तक 15,000 मंदिरों का संगठन बन चुका है. यह संगठन मंदिरों की समस्याओं का समाधान करेगा और सरकार से इसे आधिकारिक मान्यता देने की मांग कर रहा है.
इस अधिवेशन में 450 से अधिक मठ-मंदिरों के ट्रस्टी, पुजारी और प्रतिनिधि शामिल हुए. महारुद्र मारुति संस्थान, जहागिरपुर के अध्यक्ष ओमप्रकाश परतानी ने कहा कि जो लोग निस्वार्थ भाव से मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसलिए सभी ट्रस्टियों को अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए. इस दौरान सनातन संस्था के संत पूज्य अशोक पात्रीकर ने कहा, देश में हजारों मंदिर हैं, और हमें उनके प्रबंधन एवं धर्म प्रचार में सक्रिय रूप से भाग लेना होगा. इसी उद्देश्य से यह मंदिर न्यास अधिवेशन आयोजित किया गया है, जिसमें हर व्यक्ति को हिस्सा लेना चाहिए.
* अध्यात्म में विश्वगुरु बनने की क्षमता
अखिल भारतीय गुरुदेव सेवा मंडल के राष्ट्रीय सचिव पूज्यनीय श्री जनार्दन बोथे गुरुजी ने कहा, ‘जागो, अपने धर्म को जगाओ’ – यह भजन हमें याद रखना चाहिए और धर्म कार्यों में जुट जाना चाहिए. हमारा धर्म और अध्यात्मिकता विश्व गुरु बनने की क्षमता रखते हैं, इसलिए किसी भी प्रकार की हीन भावना न रखें और धर्म के लिए कार्य करें. आदर्श मंदिर प्रबंधन पर चर्चा करते हुए, रांजणगांव गणपति मंदिर के उपाध्यक्ष संदीप दौंडकर ने कहा, हमारे मंदिरों में हर भक्त समान है. इसलिए हमने अपने मंदिर में वीआईपी दर्शन की प्रथा समाप्त कर दी है. हमें अपने धर्म, गौमाता, मंदिर और राष्ट्र की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए.
* भूमि कानूनों पर विस्तृत मार्गदर्शन
मुंबई की अधिवक्ता स्वाति दीक्षित ने मंदिर ट्रस्टों के रिकॉर्ड कीपिंग, चेंज रिपोर्ट, ट्रस्ट निर्माण, मंदिरों से जुड़े कानूनी मामलों और भूमि कानूनों पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया. महाराष्ट्र मंदिर महासंघ के राज्य पदाधिकारी श्री अनुप जयस्वाल ने बताया कि महासंघ ने अब तक 1500 एकड़ से अधिक मंदिर भूमि को वापस दिलाने में सफलता प्राप्त की है और आगे भी यह संघर्ष जारी रहेगा.
* धन का उपयोग जनकल्याण के लिए हो
वरुड स्थित पंचदशनाम अखाड़ा कैलास आश्रम के महंत वासुदेवानंद महाराज ने कहा कि मंदिर व्यक्ति के जीवन के जन्म से लेकर मृत्यु तक संपूर्ण विकास का कार्य करते हैं. मंदिरों में अर्पित किया गया धन केवल हिंदुओं के कल्याण के लिए उपयोग होना चाहिए. नागेश्वर महादेव संस्थान, धामंत्री के अध्यक्ष कैलास पनपालिया ने मंदिर विकास योजना, विकास निधि की प्राप्ति, और मंदिरों को ‘निर्थ क्षेत्र’ (कर मुक्त क्षेत्र) का दर्जा दिलाने के उपायों पर मार्गदर्शन दिया.
* आठ प्रस्ताव पारित
इस अधिवेशन में मंदिरों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विचार किया गया और आठ प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए. जिसमें मंदिरों के प्रबंधन को सरकार से मुक्त किया जाए, मंदिरों की संपत्ति का उपयोग अन्य विकास कार्यों के लिए न किया जाए, धर्मादाय आयुक्त कार्यालय की नियमबाह्य चिट्ठियों को रोका जाए, प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए निधि प्रदान की जाए, इस्लामिक अतिक्रमणों को हटाया जाए, ‘क’ श्रेणी के मंदिरों को ‘ब’ श्रेणी में पुनर्वर्गीकृत किया जाए, मंदिरों और तीर्थस्थलों में मद्य एवं मांस विक्रय पर प्रतिबंध लगाया जाए, पुजारियों को वेतन या मानधन की व्यवस्था की जाए.