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वीर प्रताप में भव्य पौराणिक झांकी

इंदौर के बंडू मलमकर ने की तैयार

* पदाधिकारियों की प्रेसवार्ता में जानकारी
* दुर्गोत्सव के लिए विदर्भ में प्रसिद्ध है यह मंडल
अमरावती/दि. 3 – दुर्गोत्सव के लिए विगत पांच दशकों से प्रसिद्ध प्रताप चौक के वीर प्रताप नवदुर्गा महोत्सव मंडल में इस बार स्त्री शक्ति की महिमा का प्रदर्शन करते हुए राजा बलि और माता लक्ष्मी की पौराणिक कथा जिसमें भगवान विष्णु को पाताल लोक से स्वर्ग वापस लाने के प्रसंग को झांकी के रूप में प्रस्तुत किया है. उसी प्रकार फवारा के सामने शेगांव के संत गजानन महाराज की झांकी भी श्रद्धालुओं को आकर्षित और प्रभावित करेगी, ऐसी जानकारी मंडल के प्रमुख महेंद्रभाई चोपडा ने आज दोपहर आयोजित पत्रकार परिषद में दी. इस समय अध्यक्ष विनोद डागा, डॉ. चंदू सोजतिया, प्रकाश उधवानी, सुरेश शर्मा, श्याम शर्मा, रसिकभाई जोगी, गौरीशंकर हेडा, संजय उपाध्याय, संजय मुणोत, सागर चांडक, नकुल डाबी, एड. सुमीत शर्मा, अक्षय दायमा, रोहित छांगानी आदि उपस्थित थे. झांकी का उद्घाटन सीपी नवीनचंद्र रेड्डी, विधायक सुलभा खोडके की अध्यक्षता में शुक्रवार 4 अक्तूबर की शाम 7 बजे किया जाएगा. जिलाधीश सौरभ कटियार, मनपा आयुक्त और प्रशासक सचिन कलंत्रे प्रमुखता से उपस्थित रहेंगे.
* मंडल से मान्यवरों का जुडाव
पूर्व विधायक प्रदीप वडनेरे, प्रसिद्ध उद्यमी दीपक हेडा, अनिल गोगटे, सुरेश साबू, लालचंद भंसाली, सीमेश श्रॉफ, गोलू पाटिल, सुदर्शन चांडक, पूर्व महापौर विलास इंगोले, भाईलाल भाई सोमया, सुनील गोयनका, प्रवीण हरमकर, विवेक कलोती, मधु सावरकर, सुरेश पांडे, गोविंद सोमानी की उपस्थिति में शुक्रवार को झांकी का उद्घाटन संपन्न होगा.
* भव्य मूर्ति, घटस्थापना संपन्न
उल्लेखनीय है कि, इस मंडल से शहर के अनेक गणमान्य जुडे हैं. स्वागताध्यक्ष नानकराम नेभनानी है तो उत्सव अध्यक्ष अमरावती मंडल के प्रबंध निदेशक राजेश अग्रवाल और व्यवसायी विनोद डागा मंडल के अध्यक्ष मनोनीत हैं. उत्सव की तैयारी पूर्ण होकर आज शुभ मुहूर्त में पंडित वसंत दवे और प्रफुल दवे के मंत्रोच्चार के साथ घटस्थापना की गई. यहां की देवी बडी दुर्गादेवी कहलाती है, जो अत्यंत आकर्षक एवं भव्य रुप परिपूर्ण होती है. विशेष रुप से बंगाल से आए मूर्तिकार उसे मानो सजीव बना दिया हैं.
* इस बार की झांकी पौराणिक कथा को लेकर
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, पहली बार राखी सतयुग में लगभग 38 लाख 80 हजार वर्ष पूर्व बांधी गई थी. सतयुग में प्रल्हाद का पौत्र असुर राजा बली हुआ करता था, जो अपने दादा की तरह ही विष्णु भगवान का बड़ा भक्त था और दानवीर माना जाता था. राजा बलि ने असुर गुरु शुक्राचार्य की मदद से 100 यज्ञ पूर्ण किए और स्वर्गलोक पर विजय हासिल कर ली. स्वर्ग में हलचल मच गई, देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु के शरण में पहुचे स्वर्ग की रक्षा करने की गुहार लगाई, तब भगवान विष्णु वामन अवतार में बली के द्वार पर पहुंचे और भिक्षा में दानवीर बली से तीन पग भूमि की मांग की. वचन देने के बाद वामन अवतार भगवान विष्णु ने दो पग में स्वर्ग और धरती को नाप दिया, राजा बलि समझ गया कि यह वामन साधारण पुरुष नहीं है, जब तीसरा पग रखने की जगह नहीं मिली तो बली ने अपना वचन पूर्ण करने के लिए भगवान का तीसरा पग अपने सर पर रखवा दिया.
* बने लक्ष्मी माता के भाई
इस बात से भगवान विष्णु अत्यधिक प्रसन्न हुए, उन्होंने बली को पाताल लोक का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा, उन्होंने भगवान विष्णु से उनके साथ में रहकर उनकी सुरक्षा का वरदान मांग लिया और भगवान राजा बली के द्वारपाल बनकर उनके महल में तैनात हो गए. उधर स्वर्ग लोक में माता लक्ष्मी अपने पति विष्णु भगवान की राह देखती रहीं, जब भगवान विष्णु लंबे समय तक स्वर्ग लोक नहीं लौटे तो नारदजी के कहने पर माता लक्ष्मी एक साधारण स्त्री का रूप धारण कर पाताल लोक में राजा बली के महल पहुंची, उन्हें बताया कि उनका कोई भाई नहीं है, उनकी व्यथा सुन राजा बली का दिल पिघल गया और बली ने उन्हें अपनी धर्म बहन बना लिया.

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