अमरावती

कृषि शाला के माध्यम से किसानों को किया जा रहा मार्गदर्शन

दापोरी में संतरा उत्पादक किसानों का मिल रहा प्रतिसाद

मोर्शी/ दि. १५– जिले के मोर्शी वरूड तहसील के संतरे को पूरे विश्व में डिमांड है. संतरे का उत्पादन मोर्शी-वरूड तहसील में बडे़ पैमाने पर होता है. किंतु पिछले कुछ दिनों से संतरा पेड़ों पर फायटोपथोरा नामक फफुंदी का प्रकोप रहने से उत्पादन को ग्रहण लगा है. जिसके कारण किसान हताश हो रहे है. संतरा बगीचों को बचाने के लिए हॉर्टसेप प्रकल्प अंतर्गत कृषि विभाग ने संतरा कृषिशाला लेकर इस रोग पर नियंत्रण पाने का प्रयास मोर्शी तहसील में करने का प्रयास किया है. संतरा फसल पर होने वाला खर्च कम कैसे कर सकते है, इस द़ृष्टि से प्रयास किए जाने के लिए रासायनिक व जैविक पद्धति के माध्यम से एकात्मिक संतरा फल बगीचे का विकास करना संभव है. इसके लिए सही नियोजन करना जरूरी हो गया है. अज्ञात रोग के कारण ५० प्रतिशत संतरा पेडों पर फायटोपथोरा व गोंद्र से ग्रस्त संतरा पेडों को बचाने के लिए पेड़ों की छंटनी सही पद्धति से करने संबंध में मार्गदर्शन किया गया. दिन ब दिन जमीन के जीवाणू कम होने के प्रमाण को देखते हुए तथा कम खर्च में जीवाणू बढाने के लिए संदर्भ में जीवामृत व घनजीवामृत तैयार करने का प्रात्यक्षिक संतरा कृषि शाला में दिखाया गया. कीटनाशक के अधिक इस्तेमाल से मित्र कीट की संख्या बढाने के लिए कम खर्च में दशपर्णी अर्क, नीम अर्क तैयार करने का प्रशिक्षण दिया गया. तथा पानी देने की पद्धति पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, ऐसा बताया गया. कृषि शाला में कृषि अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षण दिया गया. इस अवसर पर मार्गदर्शक के रूप में डॉ.श्यामसुंदर ताथोडे, तहसील कृषि अधिकारी साजना इंगले, मंडल कृषि अधिकारी पांडुरंग म्हस्के, कृषि पर्यवेक्षक मोहन फुले, कृषि सहायक मनीष काले, संजय अंधारे, ग्राम पंचायत सदस्य रुपेश वालके, विजय विघे, श्रीकांत विघे, नरेंद्र नांदुरकर, रुपेश अंधारे, मंगेश होले, समीर वीघे, नितीन काकडे, राहुल विघे, सतीश गतफने, राजेश तळकित, युवराज अंधारे, निलेश अंधारे, सतीश धोंडे, विश्वास वानखडे, दुर्गेश कडू यांच्यासह आदी संत्रा उत्पादक किसान बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

मोर्शी वरूड तहसील में बदलते मौसम के कारण संतरा बगीचों पर अज्ञात रोग का प्रकोप दिख रहा है. इसपर सभी उपाय योजना करने के बाद भी कोई असर नहीं होने से संतरा उत्पादक किसान हताश हुए है. इसलिए संतरा बगीचों को बचाने की चुनौती किसानों के समक्ष है. इसलिए कृषि विशेषज्ञों और कृषि विभाग ने किसानों के खेतों पर पहुंचकर उचित मार्गदर्शन करने जरूरत निर्माण हो गई है.
-रूपेश वालके, सदस्य, ग्रापं

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