अमरावती

हलबा-हलबी नहीं हैं कोष्टी

सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला

  • चंद्रभान पराते जाति वैधता प्रमाणपत्र मामला

अमरावती/दि.17 – हलबा अथवा हलबी में कोष्टी का समावेश नहीं होता. अत: वे अनुसूचित जनजाति का लाभ नहीं ले सकते. इस आशय का महत्वपूर्ण फैसला उपविभागीय अधिकारी चंद्रभान पराते से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया है.
चंद्रभान पराते की अपील पर उपरोक्त निर्णय देने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने उनका जाति प्रमाणपत्र रद्द करने के संदर्भ में विभागीय जाति वैधता जांच समिती तथा नागपुर हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखा है. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तिद्वय उदय ललीत व अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने विगत 10 अगस्त को यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है.
बता दें कि, हलबा कोष्टी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर तहसीलदार नियुक्त हुए चंद्रभान पराते के जाति प्रमाणपत्र को नागपुर की जाति वैधता जांच समिती ने विगत 1 फरवरी 2016 को अवैध ठहराया था. जिसके बाद उन्होंने इस फैसले को मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में चुनौती दी थी. किंतु 6 अप्रैल 2016 को नागपुर खंडपीठ द्वारा इस याचिका को खारिज कर दिया गया था. जिसके बाद पराते ने सर्वोच्च न्यायालय में दिवाणी अपील क्रमांक 370/2017 दाखिल की थी. लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी उनकी अपील को खारिज करते हुए कहा कि, हलबा-हलबी संवर्ग में कोष्टी शामिल नहीं है.
उल्लेखनीय है कि, इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने मिलींद कटवारे प्रकरण में कोष्टी को हलबा-हलबी संवर्ग में शामिल नहीं करने की बात कही थी और इस फैसले में मिलींद कटवारे, माधुरी पाटील व जगदीश बहिरा मामले एवं महाराष्ट्र अनुसूचित जाति, जनजाति, विमुक्त जमाति, भटक्या जमाति, अन्य पिछडावर्गीय व विशेष पिछडावर्गीय अधिनियमों की भी चर्चा की गई. जिसके बाद अब राज्य सरकार द्वारा क्या फैसला लिया जाता है, इस ओर राज्य के आदिवासी समाज की निगाहें लगी हुई है.

सरकार अथवा कोर्ट को ‘एसटी सूची’ में बदलाव का अधिकार नहीं

संविधान में किये गये प्रावधानों के मुताबिक राज्य सरकार, कोर्ट अथवा न्याय प्राधिकरण को अनुसूचित जमाति व जनजाति की सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है अथवा इस सूची के संदर्भ में अलग से कोई फैसला देने का भी अधिकार नहीं है. इसके अलावा विशिष्ट जाति, जनजाति, जमाति, समूह को लेकर राष्ट्रपति द्वारा घोषित की गई सूची में शामिल रहने के बारे में सबूत पेश करने अथवा जांच करने को भी अनुमति नहीं है. राष्ट्रपति द्वारा घोषित की गई अनुसूचित जाति व जनजाति की सूची में किसी अन्य जाति व जनजाति को शामिल करने का अधिकार न्यायालय को नहीं, बल्कि संसद को है. ऐसा भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने फैसले में स्पष्ट किया गया है.

  • चंद्रभान पराते पर फौजदारी अपराध दर्ज करने के लिए अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जांच समिती (नागपुर) में 24 व 25 सितंबर 2019, 13 व 23 अक्तूबर तथा 2 नवंबर व 7 नवंबर 2020 को निवेदन दिया था. किंतु अब भी पराते के खिलाफ अपराध दर्ज नहीं किया गया है. जबकि जाति वैधता पडताल अधिनियम की धारा 10 व 11 के अनुसार सरकार द्वारा तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए.
    – शालीक मानकर
    अध्यक्ष, आदिवासी हलबा-हलबी समाज संगठन, गडचिरोली
  • 2013 में हाईकोर्ट ने खुले प्रवर्ग से मुझे सेवा संरक्षण दिया था. जिसे सरकार ने चुनौती नहीं दी है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपील खारिज किये जाने के बाद अब आगे क्या करना है, इस बारे में कानूनी विचार-विमर्श करते हुए निर्णय लिया जायेगा.
    – चंद्रभान पराते
    उपायुक्त, नागपुर विभागीय आयुक्तालय

‘एसटी सूची’ में बदलाव का अधिकार केवल संसद को

– संविधान के अनुसार राज्य सरकार, कोर्ट या किसी भी न्याय प्राधिकरण को अनुसूचित जाति-जनजाति से संबंधित सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है.
– राष्ट्रपति द्वारा घोषित अनुसूचित जाति-जनजाति की सूची में किसी अन्य जाति-जनजाति का समावेश करने या हटाने का अधिकार केवल संसद के पास है. ऐसा सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने फैसले में स्पष्ट किया गया है.

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