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हाफ टाईम चौथी पास : समाजसेवा का एक अध्याय समाप्त

सिंधुताई सपकाल के निधन से हजारों अनाथों का मातृछत्र हटा

अमरावती/दि.5- गत रोज पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया. सिंधुताई विगत कुछ समय से बीमार चल रही थी और एक माह पूर्व ही उन पर पुणे के गेलेक्सी अस्पताल में शल्यक्रिया हुई थी. जहां पर बीती शाम तीव्र हृदयाघात के बाद उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली. इसके साथ ही राज्य के हजारोें अनाथों के सिर से मातृछत्र हट गया है और वे फिर अनाथ ही हो गये है. हाफ टाईम चौथी पास रहनेवाली सिंधुताई सपकाल के निधन से समाजसेवा का एक अध्याय ही समाप्त हो गया है. किंतु सिंधुताई सपकाल द्वारा शुरू किये गये कामोें का सिलसिला आगे भी बदस्तुर जारी रहेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है. क्योंकि अपने जीते जी सिंधुताई सपकाल ने राज्य के विभिन्न इलाकों में समाजसेवा हेतु समर्पित हजारोें हाथ तैयार कर दिये थे.
* ब्राण्ड नववारी के रूप में थी विख्यात
मूलत: वैदर्भिय ग्रामीण परिवेश से वास्ता रखनेवाली सिंधुताई सपकाल हमेशा ही नववारी साडी ही पहना करती थी और बडे से बडे आयोजन या सम्मान समारोह सहित विदेश यात्रा के समय भी वे नववारी साडी ही परिधान करती थी. नववारी साडी पहने हुए ही उन्होंने दुनिया के 22 देशों की यात्रा पूरी की. जिसके चलते उन्हें नववारी साडी का चलता-फिरता ब्राण्ड कहा जाता था.
* फुल चुनने के नाम पर जूठा बिनकर खाती थी
सिंधुताई सपकाल वर्धा जिले के पिंपरी मेघे गांव से वास्ता रखती थी. जहां की उत्तर बुनियादी शाला में उनकी पढाई-लिखाई हुई. इस शाला में चाफे का वह झाड आज भी है. जिसके नीचे बैठकर कभी बच्चे दोपहर का भोजन किया करते थे और इसके बाद झाड के नीचे गिरे चाफे के फुलों को चुनने का दिखावा करते हुए सिंधुताई सपकाल वहां जमीन पर गिरे जूठे भोजन को उठाकर खाया करती थी. जबकि लोगों को लगता था कि, वे फूल चुन रही है.
* वांदिले गुरूजी ने की पिटाई, कांबले गुरूजी ने दिया स्नेह
अपने शालेय जीवन के दौरान सिंधुताई सपकाल पहले भैसों को पानी पिलाने के लिए ले जाया करती थी और भैसोें के पानी में जाकर बैठ जाने के बाद ही स्कुल पहुंचती थी. जिसमें उन्हेें कई बार देरी भी हो जाती थी. ऐसे में शाला में विलंब से पहुंचने पर उन्हें वांदिले नामक गुरूजी खूब पिटा करते थे. वहीं किसी दिक्कत की वजह से देर हो जाती होगी, यह बात समझते हुए कांबले गुरूजी उन्हें स्नेह किया करते थे. कालांतर में सिंधुताई सपकाल ने दोनोें ही तरह के गुरूजियों का महत्व अधोरेखित किया.
* चिता की आग पर रोटी पकाकर खाने की भी नौबत
हजारों अनाथों की मायी, 282 दामाद, 49 बहुएं तथा 350 बच्चों की मां सिंधुताई सपकाल खुद को हाफ टाईम चौथी उत्तीर्ण कहा करती थी. उनकी दुनिया लगभग 12 वर्ष की आयु में ही उजड गई थी और सबकुछ लगभग सुन्न हो गया था. किंतु उन्होंने अकेले ही तमाम विपरित हालात से संघर्ष करना शुरू किया. जिसके लिए उन्हें भीख मांगकर अपना गुजारा करना पडा और सिर छिपाने के लिए श्मशान में सहारा लेना पडा. जहां पर जलती हुई चिताओं की आग पर उन्होंने रोटियां सेंककर खाई, ताकि पेट की आग को बुझाया जा सके.
* मोहम्मद रफी के गानों की थी फैन
किसी समय सिंधुताई सपकाल ने अपने साक्षात्कार में बताया था कि, तमाम संघर्षों से गुजरते समय और विपरित हालातों से जूझते समय भी उन्हें मोहम्मद रफी के गाने बडे पसंद आया करते थे. रास्ते से गुजरते वक्त कहीं पर भी मोहम्मद रफी का गाना सुनाई देने पर वे सबकुछ भूल-भालकर कर उस गाने को सुना करती थी. साथ ही खुद भी गुनगुनाया करती थी. कालांतर में इन्हीं गानों को गाने के चलते उनके एक वक्त के भोजन का इंतजाम हो जाया करता था. वहीं आज-कल उन्हें उनके भाषणों के लिए राशन मिलता है. जिससे वे अपने बच्चों को भोजन कराती है. सबसे खास बात यह है कि, सिंधुताई सपकाल की एक भी शाला को सरकारी अनुदान नहीं मिलता.
* वेतनभोगी नहीं, ज्ञानदाता बनो गुरूजी
खुद अपने भीतर पढाई-लिखाई के लिए जबर्दस्त ललक रखनेवाली सिंधुताई सपकाल के मन में हमेशा ही पढाई-लिखाई से वंचित रह जाने का दु:ख बना रहा और वे हमेशा यह चाहती थी कि, हर बच्चे को पढाई-लिखाई का पूरा अवसर मिले. अपनी इसी इच्छा के तहत उन्होंने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा था कि, आप ज्ञानदाता है और देश का भविष्य तय कर सकते है. अपनी कक्षा में पढनेवाले गरीब से गरीब विद्यार्थी से भी स्नेह करे और ज्ञान व विद्या से कोई भी वंचित ना रहे. इसका ध्यान रखे. वे अक्सर शिक्षकों से यह आवाहन भी किया करती थी कि, शिक्षक केवल वेतन के लिए काम न करे, बल्कि विद्यार्थियों की शानदार व संस्कारित पीढी तैयार करने हेतु विद्यादान का काम करते हुए ज्ञानदाता की भूमिका निभाये.
* माई के जाने से महाराष्ट्र हुआ अनाथ
राज्य की महिला व बालविकास मंत्री यशोमति ठाकुर ने सिंधुताई सपकाल को समूचे महाराष्ट्र का मातृछत्र निरूपित करते हुए कहा कि, उनके चले जाने से आज महाराष्ट्र अनाथ हो गया है. बेहद कम उम्र में घर से निकाल दिये जाने के बाद आत्महत्या करने का विचार करते हुए घर से निकली सिंधुताई सपकाल ने आत्महत्या करने की बजाय विपरित हालात से लडने की सोची और अपने साथ ही अपने जैसे महिलाओं व अनाथ बच्चों का जीवन संवारने का प्रण लिया. जिसके बाद उन्होंने अपने आश्रम में डेढ हजार से अधिक बच्चों को खुले आसमान के नीचे पाल-पोसकर पढाया-लिखाया और उन्हें उस उंचाई तक पहुंचाया. जिसके बाद कई अनाथ बच्चे उच्च अधिकारी व व्यवसायी भी बने. उनके इन कार्यों को देखते हुए उन्हें हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया गया. साथ ही उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 9 से अधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके है. उनके यह सभी कार्य हमेशा अविस्मरणीय बने रहेंगे. ऐसा भी पालकमंत्री यशोमति ठाकुर का कहना रहा.

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