बच्चे के इलाज हेतु उन्हें दूसरों के सामने फैलाने पडे हाथ
कोरोना की वजह से दृष्टिहीन गायक दम्पत्ति की व्यथा
अमरावती/दि.23 – समीपस्थ तिवसा तहसील अंतर्गत शेंदोला खुर्द गांव निवासी रामेश्वर बांबल व उमा बांबल नामक दृष्टिहीन दम्पत्ति जन्मांध है. किंतु अपनी सुमधूर आवाज और विविध वाद्य बजाने के कौशल्य के चलते इस दम्पत्ति ने आज तक अपनी उपजिविका हेतु स्वाभिमान के साथ पैसा अर्जीत किया. जिससे उनकी जिंदगी चल रही थी. किंतु बीते एक वर्ष से कोविड संक्रमण की वजह से इस नेत्रहीन दम्पत्ति की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हुई है और इस दौरान विवाह समारोह व सार्वजनिक कार्यक्रम जैसे आयोजन नहीं हो रहे है. जिसकी वजह से इस गायक दम्पत्ति की आर्थिक आय का रास्ता ही बंद हो गया और धीरे-धीरे अब तक की जमापूूंजी में से भी पैसे खर्च हो गये. इसी दौरान इस दम्पत्ति के दो वर्षीय बेटे की तबियत बिगड गयी और बच्चे के इलाज हेतु अपने पास पैसा नहीं रहने की वजह से इस दम्पत्ति को दूसरों के सामने हाथ फैलाकर मदद मांगनी पडी और इस जरिये रक्कम इकठ्ठा होने के बाद बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल में भरती कराया जा सका. जहां पर अब बच्चे की हालत काफी हद तक ठीक है.
जानकारी के मुताबिक रामेश्वर बांबल बेहतरीन गायक है. साथ ही वे तबला व अन्य वाद्य भी बडे शानदार ढंग से बजाते है. कोरोना काल से पहले वे दृष्टिहीन बच्चों को संगीत सिखाने के साथ ही अन्य कई दृष्टिहीन सहयोगियों के साथ संगीत के कार्यक्रम करते थे. साथ ही अपने संगीत आर्केस्ट्रा के जरिये विवाह समारोह, जन्मदिवस पार्टी सहित अन्य कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपनी कला प्रस्तुति दिया करते थे. इसके अलावा भागवत सप्ताह जैसे धार्मिक आयोजनों में भी संगीत की संगत देने का काम करते थे. इन सभी कार्यक्रमोें में उनकी पत्नी उमा भी उन्हें सहयोग देती थी, क्योंकि उमा बांबल की आवाज भी बेहद सुमधूर है. ऐसे विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये बांबल दम्पत्ति को सालाना 70-80 हजार रूपये की आय हुआ करती थी. जिससे उनकी आजीविका चलती थी. किंतु कोरोना की वजह से विगत 13 माह से सबकुछ बंद पड गया और लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक कार्यक्रम होने बंद हो गये. वहीं विवाह समारोह भी सीमित लोगोें की उपस्थिति में होने लगे. जिसकी वजह से गायन के कार्यक्रम भी बंद हो गये. ऐसे में बांबल दम्पत्ति के समक्ष दो वक्त की रोजी-रोटी चलाने की समस्या आन पडी. इसी दौरान कुछ दिनों पहले उनका दो वर्षीय पुत्र श्लोक बीमार पड गया. जिसका गांव में ही इलाज कराना शुरू किया गया. किंतु इसका कोई फायदा नहीं हुआ. ऐसे में उसे शहर ले जाकर किसी बडे डॉक्टर को दिखाना जरूरी था. किंतु इसके लिए बांबल दम्पत्ति के पास पैसे ही नहीं थे. ऐसे में इस कलाकार दम्पत्ति ने अपने बच्चे की जान बचाने के लिए लोगों के सामने हाथ फैलाकर पैसे मांगे और इस जरिये जो पैसा जमा हुआ, उससे श्लोक का इलाज कराया गया.
परिवार के लोग है जीने का आधार
रामेश्वर बांबल के बडे भाई ने बताया कि, इस बार गुलाबी इल्लियों की वजह से कपास व अतिवृष्टि की वजह से सोयाबीन की फसल बर्बाद हुई. इसके बावजूद हम अपने आठ लोगोें के परिवार का जैसे-तैसे भरनपोषण कर रहे है. जिनमें रामेश्वर, उमा व उनके दो वर्षीय बेटे श्लोक का भी समावेश है. किंतु श्लोक के बीमार पडने पर हमारे पास भी उसके इलाज हेतु पैसा नहीं था. ऐसे में सरकार ने रामेश्वर व उमा जैसे गुणी व नेत्रहीन कलाकारों का विचार करते हुए उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान करनी चाहिए.
हम दूसरा कोई काम भी नहीं कर सकते
रामेश्वर बांबल ने बताया कि, वे विगत 12 वर्षों से गायन व वादन का काम करते है और कोरोना काल से पहले विविध स्थानों पर कार्यक्रम करते हुए प्रतिमाह औसतन पांच से छह हजार रूपये कमाया करते थे. जिससे उनकी आजीविका चलती थी. किंतु विगत एक वर्ष से उनके पास कोई काम नहीं है. ऐसे में आय का स्त्रोत बंद हो गया है. वहीं जन्मांध रहने की वजह से वे कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकते है.