* हजारों खूली आंखो ने देखा विहंगम दृष्य
अमरावती/दि.4 – शनिवार की रात 7.45 बजे आकाश में उल्का वर्षाव जैसा विहंगम नजारा देखने को मिला. लेकिन वह उल्का वर्षाव नहीं बल्कि ब्लैक स्काय उपग्रह के अवशेष रहने का अनुमान कई शास्त्रज्ञों ने लगाया है. महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में यह विहंगम दृष्य देखा गया. जिसके बाद सभी ने इसकी पडताल शुरु की. पहली नजर में वह उल्का वर्षाव जैसा प्रतित हो रहा था, लेकिन उल्का वर्षाव में इतना समय नहीं लगता. इसलिए वह दृष्य न्यूजिलैंड के माहिया द्बीपकल्प से छोडे गये ब्लैक स्काय इस उपग्रह के फ्यूवल बुस्टर के अवशेष रहने की बात स्काय वॉच ग्रुप ने बताया. ग्रुप के अध्यक्ष सुरेश चोपने ने संबंधित दावा किया.
वहीं सिंधेवाही तहसील के लाडबोरी गांव में जो बडा रिंग किया है तथा पवनपार के तालाब में जो बडा गोला तालाब के पास पडा मिला. यह भी उसी फ्यूवल बुस्टर के अवशेष है. लाडबोरी गांव में 7.45 बजे अचानक आग का गोला गिरा. यह अवशेष एक निर्माण स्थल पर गिरे, जिससे उस निर्माण के पीलर नष्ट हो गये है. इसी घटनास्थल से कुछ ही दूरी पर एक महिला बचत गुट का किचन है, जहां पर कुछ महिलाएं भजिए तल रही थी. उन्हें विस्फोट की आवाजें सुनाई देने पर उन्हें लगा की कोई विमान धाराशाही हो गया है. जैसे ही जमीन पर कुछ पडा दिखा, उन महिलाओं ने वहां से भागकर सभी को किसी प्रकार का विस्फोट होने के डर का अंदेशा जताया. जिसके बाद जब लोग दौडकर घटनास्थल की ओर आये तब वहां पर किसी यान के अवशेष स्वरुप रिंग, गोला दिखा. यह रिंग यदि किसी घर पर गिरता तो वह पूरा घर जलकर खाक हो जाता. जिससे गांव में डर का माहौल बन गया. वह रिंग 10 बाय 10 फीट व्यास की, 8 इंच मोटी व 40 किलो वजन वाली है, तो दुसरी गोल वस्तु 2 फीट व्यास की है. यह साहित्य समुंदर या निर्जन स्थल पर गिरे ऐसी व्यवस्था की जाती है. लेकिन कभी कबार गलती से दुर्घटनाएं हो जाती है. ऐसा भी शास्त्रज्ञ चोपने ने बताया.
रविवार को गूंजेवाही परिसर स्थित पवनपार टेकडी तालाब के पास जो सिलेंडर सदृष्य गोला लोगों को दिखा वह हाईड्रोजन स्पिअर है. इसका इस्तेमाल इंधन का प्रेशर नियंत्रण में रखने में होता है. इसे 2 व्हॉल है. रविवार की सुबह स्काय वॉच ग्रुप के चोपने, डॉ. योगेश दुधप्रचारे, डॉ. सचिन वझलवार ने घटनास्थल को भेंट देकर ब्लैक स्काय उपग्रह के अलावा अन्य कोई उपग्रह पृथ्वी से आकाश में छोडा नहीं गया था. इसलिए वह अवशेष उसी उपग्रह के रहने का दावा भी शास्त्रज्ञों ने किया.
* सॅटेलाईट का हिस्सा हो सकता है
महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश के कई इलाकों में शनिवार की रात आकाश से रहस्यमयी अग्निवर्षा होते अनेकों ने देखी. राज्य सरकार ने इसकी जानकारी दी है. 10 फीट व्यास की जो गोलाकार रिंग मिली है. उसे किसी सॅटेलाईट का हिस्सा बताया जा रहा है. लेकिन वह हिस्सा जब आसमान से गिर रहा था तब पूर्ण रफ्तार से आग की गोले की तरह पृथ्वी की ओर आते दिखा. अब इस पर अध्ययन किया जा रहा है. ऐसी जानकारी मंत्री विजय वडेट्टीवार ने दी.
* स्टेट डिझास्टर मैनेजमेंट को जानकारी दी
शनिवार को जो घटना घटी और जो वस्तूएं आकाश से जमीन पर गिरी उसकी जानकारी स्टेट डिझास्टर मैनेजमेंट को दी गई है. भारतीय स्पेस संशोधन संस्थाएं भी इसे लेकर मंथन कर रही है. कुछ शास्त्रज्ञों ने बताया है कि, वह अवशेष रॉकेट लॉन्चर के रह सकते है. इस पर जो टीम संशोधन कर रही है, उससे सच्चाई का पता चलेगा, ऐसा जिलाधीश डॉ. अजय गुल्हाने ने बताया.
* समुद्रपुर तहसील में मिले यंत्र के अवशेष
विदर्भ के अनेक जिलों में शनिवार को उल्कापात जैसा नजारा आकाश में देखा गया. कई लोगों ने इसे अपने मोबाइल में कैद किया है. वर्धा जिले के समुद्रपुर तहसील अंतर्गत वाघेडा व धामणगांव के खेत में आकाश से गिरे यंत्रों के अवशेष मिले है. समुद्रपुर पुलिस ने उसे अपने ताबे में लेकर आगे की जांच शुरु की है.
* इलेक्ट्रॉन रॉकेट के बुस्टर के टूकडे
2 अप्रैल को केवल एक ही रॉकेट के उडान भरने की जानकारी दर्ज है. जिससे उत्तर पूर्व महाराष्ट्र में दिखा वह नजारा इलेक्ट्रॉन रॉकेट के बुस्टर के टूकडे हो सकते है. 30 से 35 किलो मीटर से गिरे यह टूकडे मौसम के साथ घर्षन होकर एक के बाद एक जलते हुए जमीन पर गिरे. उस घटना का मार्ग तथा उसका प्रकाशमान समझते हुए पता लगाया गया तो वह उल्का वर्षाव नहीं बल्कि रॉकेट के अवशेष रहने का दावा औरंगाबाद के एपीजे अब्दूल कलाम विज्ञान केंद्र के संचालक श्रीनिवास औंधकर ने किया.
* अमरीकी शास्त्रज्ञ ने बताया चिनी रॉकेट का हिस्सा
महाराष्ट्र समेत देश के कई लोगों ने शनिवार को आसमान से रहस्यमय आग के गोले जमीन पर गिरने का दृष्य देखा. जिसे कुछ शास्त्रज्ञों ने उपग्रह के अवशेष बताया. पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते वक्त वे टूकडे जल रहे थे. लेकिन यह चिनी रॉकेट का हिस्सा रहने का दावा एक अमरीकी वैज्ञानिक ने किया. जो अवशेष आसमान से जलते हुए जमीन पर गिरे है, वह चिनी रॉकेट चेंगझेंग-3 बी के थे. पृथ्वी के वातावरण में दुबारा प्रवेश करते वक्त वह जलकर खाक हुए यह दावा अमरीकी वैज्ञानिक जोनाथन मॅकडॉल ने किया. उन्होंने दावा किया कि, चिनी रॉकेट चेंनझेंग-3 ई सिरीयल नंबर वाय-77 मार्ग से गिरने वाला था. वह आकाश में जलने से तेजस्वी रेषाएं तैयार हुई. इसमें से रंगबीरंगी प्रकाश दिख रहा था. उल्कापात में ऐसा नहीं होता है. किसी देश का उपग्रह गलती से या जानबूझकर गिराया गया हो, ऐसा नागपुर स्थित स्काय वॉच संस्था के अध्यक्ष सुरेश चोपडे ने बताया. उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिए इस्तेमाल होने वाले रॉकेट बुस्टर के वह टूकडे रहने की संभावना औरंगाबाद के एपीजे अब्दूल कलाम स्पेस सेंटर के वैज्ञानिकों ने बताया.