अमरावती

हिंदी भाषा का इतिहास एक हजार साल से भी अधिक

साहित्यकार भगवान वैद्य ‘प्रखर’का प्रतिपादन

अमरावती/दि.24 – हिंदी भाषा विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है. इसका इतिहास 1 हजार साल से भी अधिक पुराना है. तमाम अवरोधों के चलते भले ही हिंदी देश की राष्ट्र भाषा नहीं बन पायी किंतु विश्व में सबसे अधिक बोली व समझे जाने वाली भाषा के रुप में हिंदी को सम्मान मिला है. पर्यटन तथा व्यापार को बढाने में हिंदी भाषा सर्वाधिक महत्वपूर्ण साबित हुई है इस आशय का प्रतिपादन साहित्यकार भगवान वैद्य प्रखर ने किया है. उनके अनुसार आगामी समय हिंदी भाषा के लिए गौरमय रहनेवाला है. क्योंकि जिस तेजी से हिंदी भाषा की लोकप्रियता बढ रही है उसे चमत्कार ही कहा जा सकता है.
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं देने के लिए साहित्यकार भगवान वैद्य प्रखर को 30 वां आचार्य आनंद ऋषि पुरस्कार प्रदान किया गया. उन्हें यह पुरस्कार आचार्य आनंदऋषि साहित्य निधि संस्था हैदराबाद व्दारा प्रदान कर सम्मानित किया गया. संस्था व्दारा हर साल अहिंदी साहित्कारों को यह पुरस्कार दिया जाता है. साहित्यकार भगवान वैद्य ने बताया कि देश आजाद होने के पश्चात राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय पक्षी सहित अन्य राष्ट्रीय चिन्ह तय किए जाने के बाद भी हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पायी. यह अलग बात है कि यह भाषा बोलने और समझने वालों की संख्या बढी है. संविधान संशोधन में राष्ट्रभाषा के लिए डाले गए मापदंड हैरत वाले है वह न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी जैसे ही स्थिति हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के मामले में सरकार की है.
साहित्यकार प्रखर ने बताया कि हिंदी भाषा का इतिहास 1 हजार साल से भी अधिक पुराना है. स्वयं के साथ ही यह दूसरों का भी सम्मान करने वाली भाषा है. वर्तमान में चारों धामों की यात्रा के साथ ही व्यापार बढोत्तरी में हिंदी भाषा की भूमिका महत्वपूर्ण है. सुविख्यात कवि तथा साहित्यकार प्रखर की एक हजार से अधिक रचनाएं व अनेको किताबें प्रकाशित हो चुकी है. भगवान प्रखर के मुताबिक हिंदी राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता को मजबूत करने में सशक्त भूमिका निभाने वाली भाषा है.
स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिंदी भाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. देश के विविध प्रांतों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी भावनाएं लोगों तक पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा को ही संपर्क भाषा के रुप में चुना था आजादी के पहले से लेकर देश को आजादी मिलने के बाद भी देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाली भाषा के रुप में इसे सम्मान मिला है. आजादी के बाद दक्षिण राज्यों में कुछ अग्रदूतों के कारण राष्ट्रभाषा बनने में भले दिक्कतें आयी है लेेकिन आज न केवल भारत में बल्कि विश्व में सर्वाधिक लोगों व्दारा बोले जाने वाली तथा समझने वाली भाषा हिंदी है.
भगवान प्रखर ने बताया कि 15 साल तक संघीय सरकार के कार्यालयों में कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देने के बाद हिंदी के साथ ही अंग्रेजी को भी महत्व दिया जाने लगा है. िंहंदी में भेजे जाने वाले पत्रों के साथ ही अंगे्रजी में भी पत्र भेजे जाने लगे है. सरकार व्दारा हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है यही कारण है कि आज देश में सर्वाधिक बोले व समझे जानेवाली भाषा हिंदी है. भगवान प्रखर ने यह भी बताया कि सबसे अधिक फिल्मे हिंदी में बनती है. विदेशों में भी इसे सर्वाधिक पंसद किया जाता है आज देश के हर राज्य में हिंदी फिल्में देखी जाती है जिसके माध्यम से हिंदी को बडे पैमाने पर बढावा मिला है ऐसी भावना भगवान वैद्य प्रखर ने 30 वां आचार्य आंनदऋषि साहित्य पुरस्कार प्राप्त होने पर व्यक्त की.

महान व्यक्ति थे आचार्य आनंदऋषि महाराज

आचार्य आनंदऋषि साहित्य पुरस्कार प्राप्त भगवान वैद्य प्रखर ने जब आचार्य आनंदऋषि महाराज के बारे में जानकारी जुटानी शुरु की तो वे भी हैरत में पड गए. महाराष्ट्र के अहमदनगर में जन्में महाराज श्री ने 92 वर्ष तक सेवाएं दी. अनगिनत सामाजिक साहित्य उपक्रमों को देशभर में चलाया उन्हें 16 भाषाओ का ज्ञान था जिसमें वे 9 भाषाओं में लिखना व बोलना व समझना जानते थे. उम्र के 84 साल में उन्होंने उर्दू तथा संस्कृत भाषा भी सिखी अपना प्रवचन उन्होंने हिंदी भाषा में ही दिया. उनके सम्मान में आचार्य आनंदऋषि साहित्य निधि संस्था व्दारा हर साल हैदराबाद यहां पर अहिंदी भाषिय साहित्यकारों कवियों को यह पुरस्कार दिया जाता है. भगवान वैद्य को 30 वां आचार्य आनंद ऋषि साहित्य पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया. इसके पूर्व इस पुरस्कार से डॉ. बाल शौरी रेड्डी, वसंत देदव, पं. नारायणदेव, शंकर पुणतांबेकर, श्रीपाद जोशी, डॉ. रुक्माजीराव अमर, डॉ. नाराण्यण रणसुंभे तथा डॉ. दामोदर खडसे को इस पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.

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