अमरावती/दि.17– आज से रंग-उमंग व उल्लास का पर्व होलिकोत्सव शुरू हुआ, जो शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र में भी बडे उत्साह के साथ मनाया जाता है और ग्रामीण क्षेत्र में इस पर्व को लेकर विभिन्न तरह की मान्यताएं व परंपराएं जुडी हुई है. इसमें भी आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में बडे ही अनूठे ढंग से होलिका पर्व मनाया जाता है. जिसकी चर्चा बडी दूर-दूर तक होती है. आज से आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में भी होली के पर्व का प्रारंभ होने जा रहा है. जिसके तहत यहां दो दिनों तक होलिका दहन किया जाता है. जिसमें पहले दिन छोटी होली व दूसरे दिन बडी होली जलाई जाती है. पश्चात सात दिनों तक रंगोत्सव की धुम चलती है.
बता दें कि, मेलघाट क्षेत्र की होली में बांबू का भी प्रयोग होता है और होली के बीचोंबीच दो बांबू लगाये जाते है. साथ ही बांबू के सबसे उपरी हिस्से पर गाठियां बांधी जाती है. होली के दोनों दिन मेलघाट क्षेत्र के आदिवासी पूरी श्रध्दा के साथ होली की पूजा-अर्चना करते है और होली जलने के बाद उसके आसपास घेरा बनाते हुए आदिवासी गीत-संगीत पर नृत्य किया जाता है. जिसमें सभी महिला-पुरूष शामिल होते है. होली की आग शांत हो जाने के बाद होली के आरपार छलांग व कूद लगाने की प्रथा भी मेलघाट में है. होलीवाले दिन आदिवासी समाजबंधु सफेद धोती-कुर्ता पहनने के साथ ही अपने सिर पर मोरपंखवाले फेटे पहनते है. वहीं महिलाएं भी पारंपारिक परिधानों के साथ-साथ आदिवासी संस्कृतिवाले गहने पहनती है.
मेलघाट में पूरे सात दिनों तक रंगोत्सव की धुम रहती है और ढोलकी के ताल व बांसूरी के सुरों के साथ-साथ घुंगरू की झन्कार पर आदिवासी बंधु नाचते-गाते व झुमते हुए होली का पर्व मनाते है. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, मेलघाट क्षेत्र के अधिकांश आदिवासी रोजगार की तलाश में राज्य सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में जाते है और वहां पर पूरा सालभर काम करते है. किंतु होली के पर्व पर सभी आदिवासी अपने-अपने गांव लौट आते है और अपने परिजनों व परिचितों के साथ गांव में रहकर पूरे उत्साह के साथ होली का पर्व मनाते है. ऐसे में इस समय मेलघाट क्षेत्र के सभी आदिवासी गांवों में अच्छी-खासी चहल-पहल दिखाई दे रही है और सभी गांवों में होली के पर्व की धुम में दिखाई दे रही है.